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This Article is From Dec 21, 2017

2जी घोटाले के जज ने कहा- सबूत के इंतजार में 7 साल से हर दिन सुबह 9 से शाम 5 बजे तक कोर्ट में बैठता था

विशेष अदालत के जज ओपी सैनी ने कहा कि मैं पिछले 7 साल से हर दिन गर्मी की छुट्टियों सहित सुबह नौ से 5 बजे तक पूरी निष्ठा से खुली अदालत में बैठता था और इंतजार करता था कि कोई आए और अपने पास से कोई ऐसा सबूत दे जो कानूनी तौर पर स्वीकार्य हो लेकिन सब बेकार रहा.

2जी घोटाले के जज ने कहा- सबूत के इंतजार में 7 साल से हर दिन सुबह 9 से शाम 5 बजे तक कोर्ट में बैठता था
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: सीबीआई की विशेष अदालत ने बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में फैसला सुनाते हुए ए राजा, कनिमोई समेत अन्य आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि घोटाला तो हुआ ही नहीं.  2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में राजस्व को भारी नुकसान के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) तथा सीबीआई के आकलन को बड़ा झटका देते हुए विशेष अदालत ने आज कहा कि कुछ लोगों ने ‘चालाकी से’ कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम किया और एक घोटाला पैदा कर दिया ‘जब कि कुछ हुआ ही नहीं था.’ कैग ने अपनी रिपोर्ट में आकलन व्यक्त किया था कि 2जी घोटाले की वजह से राजस्व को 1.76 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का भारी नुकसान हुआ. इससे उस समय की संप्रग सरकार हिल उठी थी. 

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सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में कहा था कि 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन में राजस्व को 30,984 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. उच्चतम न्यायालय ने दो फरवरी 2012 को लाइसेंस आवंटन निरस्त कर दिये थे. 2जी से संबंधित तीन मामलों में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और अन्य को आज बरी करने वाले विशेष सीबीआई न्यायाधीश ओपी सैनी ने कहा कि दूरसंचार के संबंधित सरकारी अधिकारियों के विभिन्न ‘कार्यकलापों और अकर्मण्यता’ की वजह से हर किसी ने समूचे मामले में एक बड़ा घोटाला देखा.

राजा और अन्य से संबंधित सीबीआई के मामले में अदालत ने अपने 1,552 पन्नों के आदेश में कहा, ‘हालांकि अधिकारियों के विभिन्न कार्यकलापों और अकर्मण्यता के चलते, जैसा कि ऊपर उल्लिखित है. किसी ने भी दूरसंचार विभाग के रुख पर भरोसा नहीं किया और हर किसी ने एक बड़ा घोटाला देखा, जब कुछ हुआ ही नहीं. इन कारकों ने लोगों को एक बड़े घोटाले के बारे में अटकलों के लिए विवश किया.’ सैनी ने कहा, ‘इस तरह, कुछ लोगों ने चालाकी से कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम कर और चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर एक घोटाला पैदा कर दिया.’ विशेष न्यायाधीश ने यह भी कहा कि दूरसंचार विभाग के नीतिगत फैसले विभिन्न फाइलों में ‘बिखरे हुए’ थे और इसलिए उनका पता लगाना तथा उन्हें समझना मुश्किल था.

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अदालत ने कहा, ‘ये महज कुछ उदाहरण हैं कि किस तरह नीतिगत मुद्दे अव्यवस्थित ढंग से इधर-उधर बिखरे हुए हैं. इस कारण, बाहरी एजेंसियों तथा संस्थानों के लिए मुद्दों को उचित ढंग से समझना मुश्किल हो जाता है तथा विवाद के लिए जगह बच जाती है.’ इसने कहा कि दूरसंचार विभाग में फाइलों को यहां तक कि किसी छोटे मुद्दे के लिए ‘अव्यवस्थित ढंग से’ जल्दबाजी में खोला गया और बंद भी कर दिया गया तथा वहां एक जगह पर एक फाइल में मुद्दों को सुसंगत ढंग से रखने का कोई व्यवस्थित तरीका नहीं था.

अदालत ने उल्लेख किया कि एक मुद्दे से संबंधित दस्तावेजों को मुद्दे की प्रासंगिकता पर किसी विचार के बिना मनमाने ढंग से रखा गया तथा यह जानना मुश्किल था कि किसी खास मुद्दे से निपटने के लिए कितनी फाइलें खोली गईं और क्यों.  इसने कहा, ‘जब दस्तावेज आसानी से नहीं मिलते हैं और आसानी से पढ़ने योग्य नहीं होते हैं तथा नीतिगत मुद्दे बहुत सी फाइलों में बेतरतीब ढंग से बिखरे होते हैं तो किसी के लिए भी मुद्दों को समझना मुश्किल हो जाता है.’ न्यायाधीश ने कहा, ‘मुद्दों को सही परिप्रेक्ष्य में न समझ पाने की वजह से बड़े पैमाने पर गलत चीजें होने का संदेह हुआ जब ऐसा कुछ भी नहीं था. इस कारक ने इस मामले में विवाद पैदा करने में बड़ा योगदान दिया क्योंकि दूरसंचार विभाग न तो प्रभावी ढंग से मुद्दों को दूसरों तक पहुंचा पाया और न ही दूसरे लोग इसे समझ सके.’ 

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सैनी ने कहा कि नीतियों और दिशा-निर्देशों में स्पष्टता की कमी के चलते भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई और दिशा निर्देश इस तरह की तकनीकी भाषा में तैयार किए गए कि बहुत से नियमों का अर्थ स्पष्ट नहीं था, यहां तक कि दूरसंचार विभाग के अधिकारियों के लिए भी. अदालत ने कहा कि जब दूरसंचार विभाग के अधिकारी खुद विभागीय निर्देशों और शब्दावली को नहीं समझ पाए तो वे इनके उल्लंघन के लिए कंपनियों और अन्य पर किस तरह आरोप लगा सकते हैं?

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