शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)
मुंबई:
जिला बैंकों पर लागू नोटबंदी के मुद्दे पर शिवसेना ने आक्रमक रुख़ इख़्तियार कर लिया है. पार्टी के लोकसभा में नेता आनंदराव अडसूल ने कहा है कि इस मुद्दे पर उनकी बात सुनी नहीं गई तो वे सत्ता से बाहर भी निकल सकते हैं. अडसूल ने मुंबई में संवाददाताओं से बात करते हुए यह भी बताया कि शिवसेना के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे से इस मुद्दे पर उनकी बात हो चुकी है और इस मुद्दे पर उद्धव ठाकरे की भी यही भूमिका है. सोमवार से शुरू होनेवाले संसदीय सत्र में शिवसेना इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का मन बना चुकी है.
केंद्र सरकार ने भारत के ज़िला सहकारी बैंकों को पुराने नोट वसूलने पर रोक लगा दी है. इसका सबसे बड़ा असर महाराष्ट्र में दिख रहा है. देश के जिला सहकारी बैंकों में से सर्वाधिक 31 केवल महाराष्ट्र में हैं. इनके 3 करोड़ के आसपास ग्राहक हैं और करीब 60 हजार करोड़ रुपये की इन बैंकों में FDs जमा हैं.
शुरुआती 4 दिनों में जब ज़िला सहकारी बैंकों को पुराने नोटों को स्वीकारने की अनुमति थी तब केवल महाराष्ट्र में ही 3200 करोड़ रुपये बैंकों में जमा हुए थे. जमा हुई रकम में बैंकों के पुराने कर्जे का बकाया भारी मात्रा में था.
महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी ज़िला सहकारी बैंकों की अपेक्स बैंक है. इस बैंक के एमडी प्रमोद कर्नाड ने भी ज़िला बैंकों के लिए लागू नोटबंदी को चिंताजनक बताया है. उनका तर्क है कि इस पाबंदी का प्रतिकूल असर ग्रामीण क्षेत्र पर और उसमें भी ख़ासकर किसान के रोजमर्रा के कामों पर होगा. क्योंकि ज़िला सहकारी बैंकों का नेटवर्क आज सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी पाया जाता है.
कर्नाड ने बताया कि इस पाबन्दी के खिलाफ़ अगर ज़िला बैंकों ने अपना काम बंद किया तो किसान के कर्जे की वसूली पर भी बुरा असर हो सकता है. राज्य में 7 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा किसान कर्जे दिए जा चुके हैं और इस साल के बेहतर मॉनसून की वजह से कर्जे के अच्छी वसूली की उम्मीद है.
महाराष्ट्र के सभी ज़िला सहकारी बैंकों ने केंद्र सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये के खिलाफ़ बॉम्बे हाइकोर्ट में याचिका भी दायर की है. गौरतलब है कि बीजेपी विधायक प्रवीण दरेकर ही इस मुहीम की अगुवाई कर रहे हैं. उधर पाबन्दी का समर्थन करती सरकार का कहना है कि ज़िला बैंकों के कई खातों में KYC नहीं है. जिससे काले धन को पकड़ पाना एक चुनौती है.
केंद्र सरकार ने भारत के ज़िला सहकारी बैंकों को पुराने नोट वसूलने पर रोक लगा दी है. इसका सबसे बड़ा असर महाराष्ट्र में दिख रहा है. देश के जिला सहकारी बैंकों में से सर्वाधिक 31 केवल महाराष्ट्र में हैं. इनके 3 करोड़ के आसपास ग्राहक हैं और करीब 60 हजार करोड़ रुपये की इन बैंकों में FDs जमा हैं.
शुरुआती 4 दिनों में जब ज़िला सहकारी बैंकों को पुराने नोटों को स्वीकारने की अनुमति थी तब केवल महाराष्ट्र में ही 3200 करोड़ रुपये बैंकों में जमा हुए थे. जमा हुई रकम में बैंकों के पुराने कर्जे का बकाया भारी मात्रा में था.
महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी ज़िला सहकारी बैंकों की अपेक्स बैंक है. इस बैंक के एमडी प्रमोद कर्नाड ने भी ज़िला बैंकों के लिए लागू नोटबंदी को चिंताजनक बताया है. उनका तर्क है कि इस पाबंदी का प्रतिकूल असर ग्रामीण क्षेत्र पर और उसमें भी ख़ासकर किसान के रोजमर्रा के कामों पर होगा. क्योंकि ज़िला सहकारी बैंकों का नेटवर्क आज सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी पाया जाता है.
कर्नाड ने बताया कि इस पाबन्दी के खिलाफ़ अगर ज़िला बैंकों ने अपना काम बंद किया तो किसान के कर्जे की वसूली पर भी बुरा असर हो सकता है. राज्य में 7 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा किसान कर्जे दिए जा चुके हैं और इस साल के बेहतर मॉनसून की वजह से कर्जे के अच्छी वसूली की उम्मीद है.
महाराष्ट्र के सभी ज़िला सहकारी बैंकों ने केंद्र सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये के खिलाफ़ बॉम्बे हाइकोर्ट में याचिका भी दायर की है. गौरतलब है कि बीजेपी विधायक प्रवीण दरेकर ही इस मुहीम की अगुवाई कर रहे हैं. उधर पाबन्दी का समर्थन करती सरकार का कहना है कि ज़िला बैंकों के कई खातों में KYC नहीं है. जिससे काले धन को पकड़ पाना एक चुनौती है.
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