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This Article is From Jun 25, 2021

UP: न्यूज पोर्टल पर महीने भर में दूसरी FIR,अब मस्जिद ढहने से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री मामले में केस दर्ज

'द वायर' के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने बयान में कहा है, "योगी आदित्यनाथ सरकार मीडिया की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं रखती है और राज्य में क्या हो रहा है, इसकी रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के कामों का अपराधीकरण कर रही है.

UP: न्यूज पोर्टल पर महीने भर में दूसरी FIR,अब मस्जिद ढहने से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री मामले में केस दर्ज
बाराबंकी जिला प्रशासन ने कहा है कि मस्जिद विध्वंस से पहले सभी उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था.
लखनऊ:

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गाजियाबाद (Ghaziabad) में एक मुस्लिम व्यक्ति पर हमले से जुड़े ट्वीट्स पर ऑनलाइन न्यूज प्लेटफॉर्म 'द वायर' और कई अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने के कुछ दिनों बाद, यूपी पुलिस ने उसी न्यूज पोर्टल के खिलाफ एक और मामला दर्ज किया है. इस बार बाराबंकी (Barabanki) में केस दर्ज हुआ है. बाराबंकी में एक मस्जिद के ढाहने से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री पर प्राथमिकी (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज कराई गई है. FIR में, मस्जिद को  "अनधिकृत संरचना" के रूप में वर्णित किया गया है और न्यूज वेबसाइट पर 'शत्रुता को बढ़ावा देने' और 'दंगा फैलने के कारणों को बढ़ावा देने' का आरोप लगाया गया है.

बाराबंकी के जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने ट्विटर पर एक वीडियो बयान में कहा, "न्यूज पोर्टल ने 23 जून को अपने ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री साझा की जो निराधार और झूठे बयान देती है. वीडियो में अतार्किक बात कही गई है, जिसमें यह भी शामिल है कि प्रशासन ने एक विशेष धर्म के धार्मिक ग्रंथों को अपवित्र किया और फिर एक नाले में फेंक दिया. ऐसा कुछ नहीं हुआ है." 

राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 30 किमी दूर बाराबंकी में जिलाधिकारी सिंह ने कहा, "द वायर ने ये बातें कहकर समाज में कलह को बढ़ावा देने और जिले में सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने की कोशिश की है." 

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FIR में न्यूज पोर्टल को नामजद करने के अलावा वहां काम करने वाले दो पत्रकारों को भी नामित किया गया है. इन पर  "दंगा भड़काने की मंशा", "धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने" और "आपराधिक साजिश रचने" जैसी धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है.

'द वायर' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने एक बयान में कहा है कि पोर्टल को "डराया नहीं जा सकता है" और यह मामला भी, यूपी पुलिस द्वारा पहले दर्ज किए गए तीन अलग-अलग मामलों के केस की तरह  "निराधार" है.

सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मस्जिद के विध्वंस को चुनौती देने और इसके जीर्णोद्धार की मांग करने वाली रिट याचिका दायर करने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को यूपी सरकार को नोटिस जारी किया था.

हाईकोर्ट के जजों की खंडपीठ ने मामले में नोटिस जारी करते हुए कहा, "जैसा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा आरोप लगाया गया है, ये याचिकाएं प्रथम दृष्टया महत्वपूर्ण सवाल उठाती हैं, अन्य बातों के साथ, सार्वजनिक उपयोग की भूमि पर एक मस्जिद के अस्तित्व के रूप में, यदि ऐसा है, साथ ही, सीआरपीसी की धारा 133 और अन्य संबंधित प्रावधानों के तहत राज्य के अधिकारियों द्वारा शक्ति का प्रयोग, इसका दायरा, विशेष रूप से शक्ति के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग के आरोप और जिस तरीके से इसे किया गया है."

इधर, बाराबंकी जिला प्रशासन ने कहा है कि विध्वंस से पहले सभी उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था.

मुस्लिम बुजुर्ग के वीडियो मामले में गाजियाबाद पुलिस को Twitter के जवाब का इंतजार

सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने बयान में कहा है, "योगी आदित्यनाथ सरकार मीडिया की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं रखती है और राज्य में क्या हो रहा है, इसकी रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के कामों का अपराधीकरण कर रही है. यूपी में, राजनेता और असामाजिक तत्व खुले तौर पर सांप्रदायिक नफरत फैला सकते हैं और हिंसा की वकालत कर सकते हैं, लेकिन पुलिस कभी भी इन कार्यों को सांप्रदायिक सद्भाव के खिलाफ और कानून-व्यवस्था के लिए खतरा नहीं मानती है."

उन्होंने कहा, "लेकिन जब पत्रकार उन लोगों के बयानों की रिपोर्ट करते हैं जो प्रशासन की ओर से गलत काम करने का आरोप लगाते हैं - इस मामले में भी एक मस्जिद के अवैध विध्वंस का आरोप है - तो पत्रकारों पर प्राथमिकी तुरंत दर्ज की जाती है." 

पिछले हफ्ते, गाजियाबाद के लोनी इलाके में एक मुस्लिम बुजुर्ग अब्दुल समद की पिटाई और उससे जुड़े वीडियो के वायरल होने के मामले में यूपी पुलिस ने 'द वायर', राणा अय्यूब और सबा नकवी सहित कई अन्य पत्रकारों और कुछ कांग्रेस नेताओं के खिलाफ "भ्रामक" ट्वीट साझा करने का मामला दर्ज किया था. एफआईआर में ट्विटर का भी नाम है. ऑनलाइन समाचार प्रकाशकों के लिए सरकार के नए नियम लागू होने के बाद सोशल मीडिया दिग्गज के खिलाफ यह पहला मामला है.

लोनी थाने में दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि ट्वीट "सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने" के स्पष्ट मकसद से साझा किए गए थे, जिसमें कहा गया था कि "भ्रामक" पोस्ट को हजारों लोगों ने री-ट्वीट किया था. शिकायत में आगे कहा गया है कि गाजियाबाद पुलिस ने सोमवार रात अपने ट्विटर हैंडल के माध्यम से "स्पष्टीकरण" दिया था, लेकिन उपयोगकर्ताओं ने पोस्ट को नहीं हटाया और ट्विटर ने उन्हें हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की.
 

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