लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण को 10 वर्ष की मूल अवधि से आगे बढ़ाने के मुद्दे पर सुनवाई के लिए एक नवंबर को कार्यक्रम तय करेगा. साथ ही, न्यायालय असम समझौते के तहत 1985 में नागरिकता कानून में शामिल किए गए एक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के लिए भी उस दिन (एक नवंबर को) तारीख तय करेगा.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वह दो अहम मामलों की सुनवाई के लिए कार्यक्रम तय करेगी. इसके साथ ही पीठ ने मामलों में पेश होने वाले वकीलों को अपने दस्तावेज पेश करने को कहा. पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्णा मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिंह भी शामिल हैं.
असम समझौता मामले में न्यायालय में पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजे गए कानून संबंधी 10 प्रश्नों में से एक यह भी था कि क्या मामले की सुनवाई में देरी से निहित स्वार्थ प्रभावित होगा. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देरी के प्रभाव के बारे में फैसला करने के लिए अदालत को संदर्भ आदेश में इंगित नागरिकता के वृहद मुद्दे पर जाना होगा.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि पीठ विभिन्न पक्षों द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेजों पर गौर करने के बाद सभी मुद्दों पर विचार करेगी. उल्लेखनीय है कि असम समझौते के तहत, असम में प्रवास करने वाले लोगों को नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता कानून में धारा 6ए शामिल की गयी थी. गुवाहाटी के एक गैर सरकारी संगठन ने 2012 में धारा 6ए को मनमाना, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी थी. 2014 में दो न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया था.
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