चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन अभी तक कोई सिग्नल नहीं मिला है. हालांकि, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष और चंद्रयान-3 के लिए टीम का नेतृत्व करने वाले एस. सोमनाथ (S Somanath) ने कहा कि चंद्रयान-3 में सभी वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं, और टीम एकत्र किए गए डेटा से संतुष्ट है. अब डेटा का विश्लेषण किया जाएगा, जो एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कई साल लग सकते हैं. उन्होंने बताया कि चंद्रयान -1 से मिले डेटा का विश्लेषण अभी तक किया जा रहा है. NDTV से एक खास बातचीत में एस. सोमनाथ ने पहले के चंद्रमा मिशन की चुनौतियों, लैंडर और रोवर की कार्यप्रणाली और भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के भविष्य पर विस्तार से अपने विचार रखे.
एस. सोमनाथ ने चंद्रयान-2 मिशन को इसरो के लिए "बहुत कठिन सीख" बताया और कहा कि उन्होंने यह समझने के लिए कड़ी समीक्षा की कि क्या गलत हुआ. इसके मलबे का मिलना और फिर उसका अध्ययन करना संभव नहीं था. इसलिए संभावनाओं को देखने के लिए इसका यहीं से अनुमान लगाना पड़ा. यह बेहद मुश्किल सफर था, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के एक्सपर्ट ने भाग लिया और इससे समस्या को समझने में मदद मिली."
इसरो प्रमुख ने कहा कि अध्ययन के दौरान पता चला कि यह केवल एक दिक्कत नहीं थी, जो समस्या का कारण बनी, बल्कि ऐसी घटनाओं की एक चेन है. उन्होंने बताया, "पहली बात यह है कि हम चंद्रयान-2 को भेजने से पहले धरती पर इसका पूरा परीक्षण नहीं कर सकते थे. लेकिन अब हमारे पास समान और वास्तविक परिदृश्य हैं, इसलिए हमारे पास बड़ी मात्रा में डेटा है. डेटा के साथ हमें इसे संशोधित करने का अधिक आत्मविश्वास मिला. एक बार आप संशोधन पर गौर करें, हमें यह देखने की जरूरत है कि क्या हमें केवल उन समस्याओं को ठीक करने की जरूरत है, जो हमने देखे हैं या संभावित दिक्कतें जो बाद में समझ के आधार पर सामने आ सकती हैं. इस पर लंबे समय तक फिर से बहस हुई. इसमें उपकरणों के नए विकास, सॉफ्टवेयर परीक्षण और सैकड़ों परीक्षण करने की भी आवश्यकता थी."
चंद्रमा लैंडर द्वारा सफलतापूर्वक किए गए "हॉप परीक्षण" पर एस. सोमनाथ ने बताया कि यह भविष्य में सैंपल वापसी और मानव मिशन की दिशा में एक कदम था. उन्होंने कहा, "आखिरकार, हम चंद्रमा पर इसलिए जाते हैं, ताकि यह देख सकें कि यह मानवता के लिए कैसे उपयोगी हो सकता है. इसके लिए, हमें चंद्रमा पर जाने और वापस आने की जरूरत है. यह सिर्फ वहां उतरना नहीं है. हमें घर वापस आना होगा और फिर वापस जाना होगा. इसलिए, हमने देखा कि हम इस सफलता का उपयोग कैसे कर सकते हैं और इसे चंद्रमा से उतारने और कक्षा में ले जाने के लिए एक और अवसर की रूपरेखा बना सकते हैं."
ऐसे मिशनों की आवश्यकता पर जोर देते हुए इसरो प्रमुख ने कहा कि यदि मानवता को पृथ्वी से परे यात्रा करनी है, तो चंद्रमा, मंगल और एक्सोप्लैनेट पर आवास निर्माण की आवश्यकता है, और भारतीयों को वहां होना चाहिए. उन्होंने कहा, "हम आज खुद को हीन समझते हैं कि हम तकनीकी रूप से उन्नत नहीं हैं, आर्थिक रूप से बहुत शक्तिशाली नहीं हैं, और हम हमेशा सोचते हैं कि हम गरीब हैं. इसलिए हम इसमें निवेश नहीं कर सकते. लेकिन मेरा मानना है कि हमें ऐसे मिशन करने चाहिए. एक ऐसे राष्ट्र के लिए जो सोचता है कि वे ही ज्ञान के निर्माता हैं."
सोमनाथ ने कहा कि अमेरिका जैसे देश भी केवल इसलिए बड़े हो पाए, क्योंकि उन्होंने विश्व शक्ति बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि वह भारत को किस प्रकार की विश्व शक्ति बनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि विश्व शक्ति का प्रश्न बहुत, बहुत महत्वपूर्ण है. उस शक्ति का नहीं जिसके बारे में हम हमेशा बात करते हैं, जैसे कि सैन्य शक्ति, दूसरों पर कब्ज़ा करने की ताकत. मेरा मानना है कि भारत को भविष्य में एक टेक्नोलॉजी लीडर बनना चाहिए, क्योंकि जब आप एक टेक्नोलॉजी लीडर होंगे, तो आप स्वाभाविक रूप से ऐसे व्यक्ति हैं जो संभावनाओं के बारे में कोई दूसरा विचार नहीं रखते हैं.
ये भी पढ़ें :-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं