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This Article is From Apr 18, 2016

सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, संवैधानिक संदेश है लैंगिक समानता

सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, संवैधानिक संदेश है लैंगिक समानता
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लैंगिक समानता 'संवैधानिक संदेश' है और ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में एक खास आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को मंदिर प्रबंधन द्वारा धार्मिक मामलों के प्रबंधन के अधिकार के तौर पर नहीं माना जा सकता।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'लैंगिक समानता संवैधानिक संदेश है और वे (मंदिर प्रबंधन) यह नहीं कह सकते कि यह (महिलाओं पर पाबंदी) धार्मिक मामलों के प्रबंधन के उनके अधिकार के तहत आता है।' पीठ ने दोहराया कि वह संविधान के प्रावधानों के तहत 'तथाकथित' प्रचलित परंपराओं की जांच करेगी। इस पीठ में जस्टिस वी गोपाल गौड़ा और जस्टिस कुरियन जोसेफ भी शामिल थे।

'हैप्पी टू ब्लीड' एनजीओ ने दायर की थी याचिका
सुनवाई शुरू होने पर, केरल के इस ऐतिहासिक मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मांग करने वाले एनजीओ 'हैप्पी टू ब्लीड' की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि कानून 'सामाजिक बुराइयों को समाप्त' करने के लिए है और संवैधानिक सिद्धांत भेदभावपूर्ण परंपराएं तथा विश्वास से ऊपर है। अधिवक्ता ने विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए अपनी दलीलों को ठोस रूप दिया और कहा कि महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को मंदिर जैसे सार्वजनिक धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के अधिकार का हिस्सा नहीं कहा जा सकता।

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)

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