- बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 202 सीटें जीतकर 2010 का रिकॉर्ड तोड़ दिया और महागठबंधन को हरा दिया.
- महागठबंधन और आरजेडी का सरकार बनाने का दावा चुनाव परिणामों में खोखला साबित हुआ है.
- विकासशील इंसान पार्टी को इस चुनाव में कोई सीट नहीं मिली और मुकेश सहनी का डिप्टी सीएम का सपना अधूरा रह गया.
बिहार में एनडीए ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है. 202 सीटें जीतकर 2010 का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. 2010 के 15 साल बाद बिहार विधानसभा चुनाव में इस तरह के प्रदर्शन से एनडीए ने महागठबंधन को जड़ सहित उखाड़ फेंका है. महागठबंधन के कई दिग्गज नेताओं के लिए साख बचाना भी मुश्किल हो गया. इन सब का श्रेय बिहार की महिला मतदाताओं को दिया जा रहा है, जिनका 71 वाला फॉर्मूला जहां नीतीश कुमार के लिए संजीवनी बना, वहीं महागठबंधन को पता भी नहीं चल पाया कि कैसे इन मतदाताओं ने उनकी राजनीतिक जड़ें खोदकर रख दी है.
RJD का सबसे बड़ी पार्टी बनने का दावा खोखला निकला
दरअसल, महागठबंधन की तरफ से सरकार बनाने का दावा और आरजेडी के प्रवक्ताओं द्वारा प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने का दावा दोनों खोखला साबित हुआ है. इस चुनाव के लिए दो चरणों के मतदान के बाद जानकार इस बात का दावा करते रहे कि एनडीए को महिलाओं, ओबीसी और ईबीसी वर्ग का मजबूत समर्थन मिलेगा, लेकिन महागठबंधन इसे सिरे से खारिज करता रहा.
वैसे इस चुनाव में महागठबंधन एसआईआर (मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण) को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाने की हरसंभव कोशिश कर रहा था, लेकिन जमीनी हकीकत यह रही कि जनता को विपक्ष का यह चुनावी मायाजाल उलझा नहीं पाया.
राजद 'हाफ', सन ऑफ मल्लाह साफ
बिहार चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो यहां हालात ऐसे हो गए हैं कि राजद हाफ, सन ऑफ मल्लाह साफ, कांग्रेस को लगभग पंजे की अंगुलियों के बराबर ही सीटें मिल पाई हैं. बिहार चुनाव में महागठबंधन सीटों की हाफ सेंचुरी भी नहीं लगा पाई. नतीजों से साफ है कि नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रभुत्व महिला-केंद्रित कल्याणकारी नीतियों पर उनके रणनीतिक फोकस की वजह से है, जिसकी वजह से इस विधानसभा चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड), बीजेपी और एनडीए के अन्य सहयोगी दलों को व्यापक सफलता मिली है.
दूसरी तरफ महागठबंधन पूरी तरह से महिला मतदाताओं को आकर्षित करने में फेल रहा. तेजस्वी यादव की 'माई बहन मान' योजना तक को नीतीश कुमार की पहले से ही चल रही योजनाओं के सामने महिलाओं ने नहीं स्वीकारा.
मुकेश सहनी की VIP का हुआ बुरा हाल
बिहार की राजनीति में अपने आप को 'सन ऑफ मल्लाह' कहने वाले महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी, जिनकी राजनीतिक शुरुआत ही एनडीए की बैसाखी के सहारे हुई थी, ने एनडीए से अलग रास्ता चुना और महागठबंधन में शामिल हुए, लेकिन अब हालत ऐसी है कि उनकी पार्टी को एक भी सीट मिलती नहीं मिली. जबकि वह तो बिहार का उपमुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे थे.
कांग्रेस महज 6 सीटों पर सिमट गई
कांग्रेस की भी बिहार में यह हालत पहले नहीं हुई थी. इस बार तो कांग्रेस से अच्छा स्ट्राइक रेट जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की पार्टियों का नजर आ रहा है जो एनडीए के खेमे में हैं, जबकि कांग्रेस 60 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. 2020 में कांग्रेस को 19 सीटों पर जीत मिली थी, जो अब 6 सीटों पर सिमट कर रह गई.
मतलब बिहार की जनता, खासकर वहां की महिला मतदाताओं को नीतीश सरकार में ही आशा की किरण नजर आई और इसी कारण मतदान का जो प्रतिशत रहा, उसमें महिला मतदाताओं ने पुरुष मतदाताओं से लगभग 10 प्रतिशत ज्यादा मतदान किया और यही मतदान सरकार बनाने के लिए निर्णायक साबित हुआ.
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