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This Article is From Feb 29, 2020

Delhi Violence: हिंसा ने शहर के निवासियों को ही बना डाला शरणार्थी, जमापूंजी जलकर हुई खाक

दिल्ली में हुई हिंसा ने दर्जनों परिवारों को अपने ही शहर में शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया है. दंगों का जख्म इतना गहरा है कि सरकार इन्हें अब मनोचिकित्सक की मदद देने की सोच रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली:

दिल्ली में हुई हिंसा ने दर्जनों परिवारों को अपने ही शहर में शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया है. दंगों का जख्म इतना गहरा है कि सरकार इन्हें अब मनोचिकित्सक की मदद देने की सोच रही है. गढ़ी मांडू गांव में बीस साल से रहने वाली साजिया का परिवार अब सोनिया विहार के कम्यूनिटी हाल में रहने आया है. साजिया का कहना है कि हिंसा में हमारा घर जला दिया गया, हमें इतना मौका भी नहीं मिला कि अपना जरूरी सामान भी घर से निकाल सकें, किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भाग कर आए हैं. 

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गढ़ी मांडू गांव में रहने वाले निसार का तीन मंजिला घर जलकर खाक हो चुका है, एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने बताया कि दो जवान बेटियों समेत पूरे परिवार को लेकर किसी तरह शरणार्थी शिविर में पहुंचे हैं. निसार ने चिंता जताई कि अब पूरा घर जल जाने के बाद परेशानियां बहुत बढ़ गई हैं, मैं अपने बच्चों को किस तरह पढ़ाउंगा, पहनने के लिए कपड़े तक नहीं हैं. जो कपड़े पहनकर निकले थे वहीं बचे हैं, उन्हीं के साथ फिलहाल शरणार्थी शिविर में जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं. 

साजिया और निसार जैसे कई दंगा पीड़ित परिवार  सोनिया विहार के इस कम्यूनिटी सेंटर में रह रहे हैं. दंगे ने रातो रात इन्हें आम शहरी से शरणार्थी में तब्दील कर दिया है जो अब मानिसक से लेकर आर्थिक सहारे के लिए सरकार और मदद करने वाले लोगों पर निर्भर हो गए हैं. उत्तरी पूर्वी दिल्ली के तहसीलदार सुनील कुमार का कहना है, कि हम इन्हें 25 हजार रुपये की आर्थिक मदद मुहैया कराने के लिए फार्म भरवा रहे हैं, इन्हें मेडिकल सुविधाएं भी दे रहे हैं, साथ ही जिन लोगों को इस घटना से गहरा सदमा लगा है, उनकी काउंसलिंग मनोचिकित्सक से करवाने की तैयारी कर रहे हैं.

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इसी तरह दिल्ली में ब्रह्मपुरी, जाफराबाद और करावल नगर के इलाके में कई हिन्दू समुदाय के घरों को जलाया गया है जो खाने से लेकर आर्थिक मदद के लिए सरकार के मोहताज हो गए हैं.
 

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