नई दिल्ली:
हाल ही के दिनों में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए कुछ फैसलों और दिए गए बयानों से भले ही भारतीय राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रिश्ते दोबारा जुड़ते दिखाई देने लगे हों, लेकिन ब्रिटेन के मीडिया की नज़र में यह कतई सही नहीं है, और वह मोदी को माफ करने के मूड में कतई नहीं दिखता, भले ही वह भारत के प्रधानमंत्री क्यों न बन जाएं।
ब्रिटेन के प्रमुख समाचारपत्रों में से एक 'द फाइनेंशियल टाइम्स' ने नरेंद्र मोदी के प्रति नरमी बरतने को लेकर ब्रिटेन और अन्य देशों को नसीहत देते हुए कहा है कि मोदी वर्ष 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों का दाग कभी नहीं धो सकते, भले ही वह भारत के प्रधानमंत्री बनने में भी कामयाब क्यों न हो जाएं।
'Gujarat's Shame, Rehabilitation does not absolve Modi's government' (गुजरात की शर्मिन्दगी, मोदी सरकार को पुनर्वास दोषमुक्त नहीं करवा सकता) शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय आलेख में समाचारपत्र ने बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए साफ लिखा है कि ब्रिटेन ऐसे समय में नरेंद्र मोदी से संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहा है, जब उनके (नरेंद्र मोदी के) राज्य में दिसम्बर में चुनाव होने वाले हैं, और इसका (मोदी की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता का) लाभ उन्हें मिल सकता है।
'द फाइनेंशियल टाइम्स' के मुताबिक मोदी के साथ काम करने का निर्णय लेने के लिए ब्रिटेन द्वारा यह समय चुने जाने पर ही एक बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है। अख़बार ने लिखा, "उनकी (नरेंद्र मोदी की) नई अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता से उनका बहुमत बढ़ सकता है, और इसके बाद भारत में वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनावों में भी उनकी संभावनाओं को बढ़ा सकता है, जहां उन्हें संभावित प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है।"
समाचारपत्र ने गुजरात के मुख्यमंत्री से दोस्ती बढ़ाने की फिराक में लगे ब्रिटेन और दूसरे देशों को सलाह देते हुए कहा है कि यूरोपीय देश वर्ष 2002 के दौरान दिखे नरेंद्र मोदी के उग्र राष्ट्रवाद और उनके द्वारा दंगों के बाद किए गए पुनर्वास के कामों को एक ही तराजू में न तोलें। समाचारपत्र ने कहा है कि मोदी से रिश्ते जोड़ रहे इन देशों को स्पष्ट करना चाहिए कि नरसंहार के दौरान 'आग में घी' का काम करने वाले राष्ट्रवाद जैसी चीजों के लिए मोदी द्वारा बाद में किए गए पुनर्वास कार्य लाइसेंस नहीं हो सकते।
हालांकि अख़बार ने मोदी को 'गुजरात का कलंक' बताने के बावजूद गुजरात विधानसभा के दिसम्बर में होने जा रहे चुनावों में मोदी की जीत की प्रबल संभावनाएं जताईं, और साफ कहा, "हम (द फाइनेंशियल टाइम्स) भी मानते हैं कि चाहे जो हो जाए, मोदी ही फिर गुजरात में सरकार बनाएंगे, और हो सकता है कि वह भारत के अगले प्रधानमंत्री भी हो जाएं, लेकिन इससे उनके ऊपर लगा दाग धुलने वाला नहीं है।"
अखबार ने यह भी लिखा है, "मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री, भारत के सबसे सक्रिय और उद्योग-समर्थक नेताओं में से एक हैं, लेकिन पिछले 10 वर्ष से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनसे किनारा किया जा रहा है, क्योंकि वह एक क्षेत्रीय सरकार के हिन्दू राष्ट्रवादी नेता हैं, जिन पर दंगों में लिप्त होने का आरोप है, और इन दंगों में अनुमानत: 2,000 मुसलमान मारे गए थे।"
ब्रिटेन के प्रमुख समाचारपत्रों में से एक 'द फाइनेंशियल टाइम्स' ने नरेंद्र मोदी के प्रति नरमी बरतने को लेकर ब्रिटेन और अन्य देशों को नसीहत देते हुए कहा है कि मोदी वर्ष 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों का दाग कभी नहीं धो सकते, भले ही वह भारत के प्रधानमंत्री बनने में भी कामयाब क्यों न हो जाएं।
'Gujarat's Shame, Rehabilitation does not absolve Modi's government' (गुजरात की शर्मिन्दगी, मोदी सरकार को पुनर्वास दोषमुक्त नहीं करवा सकता) शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय आलेख में समाचारपत्र ने बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए साफ लिखा है कि ब्रिटेन ऐसे समय में नरेंद्र मोदी से संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहा है, जब उनके (नरेंद्र मोदी के) राज्य में दिसम्बर में चुनाव होने वाले हैं, और इसका (मोदी की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता का) लाभ उन्हें मिल सकता है।
'द फाइनेंशियल टाइम्स' के मुताबिक मोदी के साथ काम करने का निर्णय लेने के लिए ब्रिटेन द्वारा यह समय चुने जाने पर ही एक बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है। अख़बार ने लिखा, "उनकी (नरेंद्र मोदी की) नई अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता से उनका बहुमत बढ़ सकता है, और इसके बाद भारत में वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनावों में भी उनकी संभावनाओं को बढ़ा सकता है, जहां उन्हें संभावित प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है।"
समाचारपत्र ने गुजरात के मुख्यमंत्री से दोस्ती बढ़ाने की फिराक में लगे ब्रिटेन और दूसरे देशों को सलाह देते हुए कहा है कि यूरोपीय देश वर्ष 2002 के दौरान दिखे नरेंद्र मोदी के उग्र राष्ट्रवाद और उनके द्वारा दंगों के बाद किए गए पुनर्वास के कामों को एक ही तराजू में न तोलें। समाचारपत्र ने कहा है कि मोदी से रिश्ते जोड़ रहे इन देशों को स्पष्ट करना चाहिए कि नरसंहार के दौरान 'आग में घी' का काम करने वाले राष्ट्रवाद जैसी चीजों के लिए मोदी द्वारा बाद में किए गए पुनर्वास कार्य लाइसेंस नहीं हो सकते।
हालांकि अख़बार ने मोदी को 'गुजरात का कलंक' बताने के बावजूद गुजरात विधानसभा के दिसम्बर में होने जा रहे चुनावों में मोदी की जीत की प्रबल संभावनाएं जताईं, और साफ कहा, "हम (द फाइनेंशियल टाइम्स) भी मानते हैं कि चाहे जो हो जाए, मोदी ही फिर गुजरात में सरकार बनाएंगे, और हो सकता है कि वह भारत के अगले प्रधानमंत्री भी हो जाएं, लेकिन इससे उनके ऊपर लगा दाग धुलने वाला नहीं है।"
अखबार ने यह भी लिखा है, "मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री, भारत के सबसे सक्रिय और उद्योग-समर्थक नेताओं में से एक हैं, लेकिन पिछले 10 वर्ष से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनसे किनारा किया जा रहा है, क्योंकि वह एक क्षेत्रीय सरकार के हिन्दू राष्ट्रवादी नेता हैं, जिन पर दंगों में लिप्त होने का आरोप है, और इन दंगों में अनुमानत: 2,000 मुसलमान मारे गए थे।"
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