भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने सोमवार को कहा कि देश भर में संशोधित नागरिकता अधिनियम के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन में बेकसूर और गुनेहगार दोनों लोग मारे गए हैं. माधव ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के एक कार्यक्रम में कहा, "विपक्ष के विरोध के कारण देश के कई हिस्सों में हिंसा और अशांति हुई है. साथ ही बेकसूर और गुनेहगार लोगों की जान गई." राम माधव ने कहा, "यह अधिनियम किसी को बाहर करने के लिए नहीं है, बल्कि यह उन लोगों को नागरिकता देने के लिए है, जिन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया है."
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उन्होंने कहा कि बीजेपी मुस्लिमों को नागरिकता देने के खिलाफ नहीं है, ऐसा होता तो हम पाकिस्तान के गायक अदनान सामी को नागरिकता न देते. माधव ने विपक्ष के नेताओं पर तंज कसते हुए कहा, ''नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का विरोध करने वाले नेताओं के दिमाग नॉलेज और इन्फॉर्मेशन प्रूफ हैं. स्कूल के दिनों में, वाटरप्रूफ घड़ियों का फैशन होता था. यह ऐसी घड़ी होती थी, जिसमें पानी नहीं जाता था. कुछ इसी तरह विपक्ष नेताओं का दिमाग भी, जो CAA का विरोध कर रहे हैं; नॉलेज प्रूफ और इनफॉर्मेशन प्रूफ है.''
कैसे शुरु हुआ विवाद?
बता दें कि नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) लोकसभा में 9 दिसंबर, 2019 को पास होने के बाद 11 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने पेश किया जहां एक लंबी बहस के बाद यह बिल पास हो गया. इस बिल के पास होने के बाद यह नागरिकता संशोधन कानून बन गया. इस कानून के विरोध में असम, बंगाल समेत देश के कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए.
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15 दिसंबर को इस कानून के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई. इस प्रदर्शन में कई छात्रों समेत पुलिस के कुछ जवान भी घायल हो गए. जामिया की घटना के अगले दिन 16 दिसंबर, 2019 को नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सीलमपुर में जमकर प्रदर्शन हुए. 17 दिसंबर को देश के दूसरे हिस्सों में भी प्रदर्शन शुरू हो गए. जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों के समर्थन में देश के कई यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए. कई यूनिवर्सिटी को 5 जनवरी, 2020 के लिए बंद कर दिया गया है और छात्रों से हॉस्टल खाली करा लिया गया. विरोध प्रदर्शन को देखते हुए 19 दिसंबर, 2019 को देश के कई हिस्सों में धारा 144 लागू हुई.
उधर गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि चाहे जितना भी विरोध हो इस कानून को वापस नहीं लिया जाएगा. उनका कहना है कि यह कानून देश की जनता के लिए नहीं है, यह कानून उन अल्पसंख्यक लोगों के लिए है जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर भारत में शरणार्थी के रूप में आए हैं.
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