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Wilson’s Disease क्या है, जिससे पीड़ित बहन की रक्षाबंधन पर लिवर देकर बचाई जान, लिवर दान कितना सेफ?

रक्षाबंधन पर भाई ने अपना लिवर डोनेट करके जिस बहन की जान बचाई, उसे दुर्लभ विल्सन बीमारी (Wilson’s Disease) थी. आइए बताते हैं कि ये बीमारी क्या है, कितनी खतरनाक है? और ये भी कि लिवर दान करने के बाद क्या प्रभाव पड़ता है.

  • विल्सन बीमारी से पीड़ित बहन हुमैरा को भाई अनस ने लिवर का टुकड़ा दान कर नई जिंदगी दी है.
  • विल्सन डिजीज में दुर्लभ जेनेटिक बीमारी है, जिसमें शरीर में तांबा जहर बनकर जमा होने लगता है.
  • डॉक्टरों का कहना है कि लिवर डोनेट करने के बाद व्यक्ति सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है.
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रक्षाबंधन पर जब बहनें अपने भाइयों की कलाई पर बांधकर उनका मुंह मीठा करा रही थीं, उसी समय एक खबर मुंबई से आई. यहां लिवर की गंभीर बीमारी से पीड़ित हुमैरा की जिंदगी बचाने के लिए उसके भाई अनस ने अपने लिवर का टुकड़ा उसे दान कर दिया. हुमैरा को एक दुर्लभ विल्सन बीमारी (Wilson's Disease) थी, जो शरीर में जहर बनाने लगती है. आइए बताते हैं कि ये विल्सन डिजीज होती क्या है और जब कोई शख्स अपने लिवर का टुकड़ा किसी को डोनेट करता है तो उस पर क्या प्रभाव पड़ता है. 

विल्सन डिजीज आखिर है क्या?

विल्सन रोग (Wilson's Disease)एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी है. यह बीमारी तब होती है, जब शरीर खासकर लिवर में तांबा (copper) काफी ज्यादा मात्रा में जमा होने लगता है. डॉक्टरों के मुताबिक, यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो माता-पिता से बच्चों में फैलता है. हमारा शरीर भोजन और पानी से अंदर आने वाले कॉपर की मात्रा को कंट्रोल करता है. जब ज्यादा तांबा इकट्ठा होने लगता है तो लिवर उसे पित्त (bile) के जरिए बाहर निकाल देता है. लेकिन विल्सन बीमारी के मरीजों में लिवर यह काम नहीं कर पाता. 

कितनी खतरनाक, क्या हैं लक्षण?

  • विल्सन डिजीज से कॉपर शरीर के लिवर, दिमाग, आंखों और अन्य अंगों में जमा होने लगता है.
  • समय पर इलाज न मिले तो यह लिवर फेलियर, न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का कारण बन जाता है.
  • सही से इलाज न किया जाए तो तांबा शरीर में ज्यादा होने से मरीज की मौत भी हो सकती है.
  • विल्सन डिजीज के प्रमुख लक्षण लिवर, आंख के अलावा न्यूरोलॉजिकल भी दिखाई देते हैं.
  • लिवर खराब होने पर पीलिया, थकान, पेट में दर्द और लिवर सिरोसिस हो जाता है.
  • आंख के कॉर्निया पर भूरे रंग का छल्ला जैसा दिखता है, जिसे केसर-फ्लेशर रिंग कहा जाता है.
  • इसके अलावा हाथ कांपना, बोलने में कठिनाई और मांसपेशी में अकड़न जैसी समस्याएं भी होती हैं.

ज्यादा गंभीर केस तो लिवर ट्रांसप्लांट ही उपाय

डॉक्टरों का कहना है कि विल्सन बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं माना जाता, लेकिन सही समय पर उपचार शुरू करके इसे कंट्रोल किया जा सकता है. इसके इलाज में शरीर से अतिरिक्त कॉपर निकालने और भविष्य में जमा होने से रोकने पर फोकस रहता है. अगर विल्सन डिजीज के कारण लिवर को गंभीर नुकसान हो चुका होता है या लिवर फेल हो जाता है तो लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय बचता है. 

लिवर ट्रांसप्लांट से यह बीमारी काफी हद तक ठीक हो जाती है क्योंकि नया लिवर ठीक से काम करने लगे तो शरीर से अतिरिक्त तांबे को बाहर निकालने लगता है. लेकिन लिवर ट्रांसप्लांट के अपने जोखिम होते हैं. यह एक बड़ी सर्जरी होने के कारण इसमें इन्फेक्शन फैलना, खून बहने लगना और नए लिवर को शरीर द्वारा स्वीकार न करने जैसे खतरे रहते हैं.  

लिवर डोनेट करने से क्या असर पड़ता है?

लिवर इंसानी शरीर का इकलौता ऐसा अंग है, जो खुद को फिर से बना सकता है. ऐसे में लिवर डोनेट करना आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है. इस प्रक्रिया में लिवर का एक हिस्सा काटकर निकाला जाता है और मरीज के लिवर में लगा दिया जाता है. लिवर दान करने वाले और ग्रहण करने वाले दोनों का बचा हुआ लिवर धीरे-धीरे वापस अपने सामान्य आकार में आ जाता है. अक्सर यह प्रक्रिया कुछ महीनों में पूरी हो जाती है.

डोनेट करके स्वस्थ जीवन जी सकते हैं?

  • लिवर डोनेट करने का आमतौर पर लंबे समय में कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता.
  • सर्जरी के कुछ दिनों बाद तक दर्द और थकान हो सकती है. इसके लिए दवा दी जाती है.
  • कुछ हफ्तों तक आराम करना होता है. एक हफ्ते तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है.
  • हालांकि किसी भी बड़ी सर्जरी की तरह, लिवर ट्रांसप्लांट में भी कुछ जोखिम होते हैं.
  • ध्यान रखना होता है कि इन्फेक्शन न फैले, खून न बहने लगे, पित्त नली में समस्या न आ जाए.
  • ये जोखिम हालांकि कम होते हैं. अच्छे डॉक्टरों की निगरानी में इनसे बचा जा सकता है.
  • लिवर डोनेट करने के बाद व्यक्ति सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है.

भाई अनस और बहन हुमैरा की कहानी

32 साल के अनस और 27 वर्षीय हुमैरा की कहानी भाई-बहन के प्यार प्रेम और हिम्मत का नायाब उदाहरण है. गुजरात के पालनपुर की रहने वाली हुमैरा के बड़े भाई ओवैस में 2017 में विल्सन डिजीज का पता चला था. इसके बाद परिवार के सभी सदस्यों की मेडिकल जांच हुई तो हुमैरा भी इस बीमारी से पीड़ित मिलीं. 2018 से ही हुमैरा का इलाज चल रहा था, लेकिन 2025 आते-आते उनकी हालत बिगड़ने लगी. उनमें इंटरनल ब्लीडिंग, पेट में सूजन और पीलिया जैसे गंभीर लक्षण दिखने लगे, जो लिवर फेल होने की तरफ इशारा कर रहे थे.

बहन को बचाने के लिए भाई ने दिया लिवर

डॉक्टरों ने उनकी हालत देखकर कह दिया कि हुमैरा को बचाने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र रास्ता है. इसके बाद भाई अनस आगे आए. मेडिकल जांच में अनस का लिवर हुमैरा के लिए पूरी तरह से सही पाया गया. अनस ने अपनी बहन की जिंदगी बचाने के लिए लिवर का एक टुकड़ा दान करने का तुरंत फैसला कर लिया. 

9 जुलाई को मुंबई के फोर्टिस अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन किया गया. डॉक्टरों ने हुमैरा में लगाने के लिए अनस के लिवर का बायां हिस्सा निकाला और ट्रांसप्लांट कर दिया. अब दोनों भाई-बहन स्वस्थ होकर ठीक हो रहे हैं. अनस अपने गारमेंट स्टोर पर लौटने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं हुमैरा अपने पति के साथ नई और स्वस्थ जिंदगी की शुरुआत करने जा रही हैं. 

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