गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन की फाइल फोटो
अहमदाबाद:
गुजरात में विवादास्पद गुजकोकोक (गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम, GUJCoTOCA) बिल को राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है। गुजरात विधानसभा में विरोध के बीच यह बिल 30 मार्च को चौथी बार पास हुआ था। तभी से इसे लेकर गुजरात में कई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। ये संगठन अपनी बात कहने के लिए 18 अप्रैल को राज्यपाल से मिले थे और इस बिल को नामंजूर करने की उनसे गुजारिश की थी।
लेकिन, अब ये खबर आ रही है कि राज्यपाल ने इस बिल पर अपनी मंजूरी की मुहर लगा दी है और राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेज दिया है।
ये बिल दोबारा से अब राष्ट्रपति के पास पहुंचा है, महत्वपूर्ण है कि इससे पहले दो राष्ट्रपति इस बिल के आपत्तिजनक प्रावधानों के चलते इस बिल को नामंजूर कर चुके हैं।
इस बिल के जिन प्रावधानों को लेकर विरोध है वे हैं, पुलिस के सामने दिया गया बयान सबूत माना जा सकता है और उसे सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश भी किया जा सकता है, पुलिस रिमांड की मियाद आम तौर पर 15 दिन तक की ही होती है जो इसके तहत दर्ज होनेवाले मामलों में 30 दिन तक की हो सकती है। साथ ही किसी मामले में चार्जशीट दायर करने की समयसीमा जो आम तौर पर 90 दिनों की होती है, उसे बढ़ाकर 180 दिन की जा रही है।
विरोध दल कांग्रेस और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भय है कि इन प्रावधानों से पुलिस के पास काफी ताकत आ जाएगी जिसका दुरुपयोग होने की पूरी आशंका है। आखिर इससे पहले पोटा कानून के तहत ऐसे ही प्रावधानों के दुरुपयोग होने की घटनायें सामने आई हैं।
इस बीच मानवाधिकार कार्यकर्ता 1 मई को दबाव बनाने के लिए अहमदाबाद में इस बिल के प्रावधानों के खिलाफ बड़ी रैली करने की तैयारी कर रहे हैं और राष्ट्रपति से समय मांगा गया है ताकि उनसे मिलकर ये अनुरोध किया जा सके कि इस बिल को वो भी अपने पूर्व राष्ट्रपतियों की तरह ठुकरा दें। अब सभी की निगाहें इस पर लगी हैं कि आखिर राष्ट्रपति इस पर क्या रुख अपनाते हैं।
उल्लेखनीय है कि इस बिल का नाम पहले गुजरात संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम (Gujarat Control of Organised Crime Act - GUJCOCA) था, जिसे इस बार बदलकर गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम (Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime Act - GUJCoTOCA) कर दिया गया है।
लेकिन, अब ये खबर आ रही है कि राज्यपाल ने इस बिल पर अपनी मंजूरी की मुहर लगा दी है और राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेज दिया है।
ये बिल दोबारा से अब राष्ट्रपति के पास पहुंचा है, महत्वपूर्ण है कि इससे पहले दो राष्ट्रपति इस बिल के आपत्तिजनक प्रावधानों के चलते इस बिल को नामंजूर कर चुके हैं।
इस बिल के जिन प्रावधानों को लेकर विरोध है वे हैं, पुलिस के सामने दिया गया बयान सबूत माना जा सकता है और उसे सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश भी किया जा सकता है, पुलिस रिमांड की मियाद आम तौर पर 15 दिन तक की ही होती है जो इसके तहत दर्ज होनेवाले मामलों में 30 दिन तक की हो सकती है। साथ ही किसी मामले में चार्जशीट दायर करने की समयसीमा जो आम तौर पर 90 दिनों की होती है, उसे बढ़ाकर 180 दिन की जा रही है।
विरोध दल कांग्रेस और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भय है कि इन प्रावधानों से पुलिस के पास काफी ताकत आ जाएगी जिसका दुरुपयोग होने की पूरी आशंका है। आखिर इससे पहले पोटा कानून के तहत ऐसे ही प्रावधानों के दुरुपयोग होने की घटनायें सामने आई हैं।
इस बीच मानवाधिकार कार्यकर्ता 1 मई को दबाव बनाने के लिए अहमदाबाद में इस बिल के प्रावधानों के खिलाफ बड़ी रैली करने की तैयारी कर रहे हैं और राष्ट्रपति से समय मांगा गया है ताकि उनसे मिलकर ये अनुरोध किया जा सके कि इस बिल को वो भी अपने पूर्व राष्ट्रपतियों की तरह ठुकरा दें। अब सभी की निगाहें इस पर लगी हैं कि आखिर राष्ट्रपति इस पर क्या रुख अपनाते हैं।
उल्लेखनीय है कि इस बिल का नाम पहले गुजरात संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम (Gujarat Control of Organised Crime Act - GUJCOCA) था, जिसे इस बार बदलकर गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम (Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime Act - GUJCoTOCA) कर दिया गया है।
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