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This Article is From May 26, 2011

दो दोषियों की फांसी को राष्ट्रपति की मंजूरी

New Delhi: हत्या के मामलों के दो दोषियों को सुनाई गई मौत की सजा के सात साल बाद राष्ट्रपति की ओर से उनकी दया याचिकाओं को खारिज किए जाने के बाद संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु और राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों आदि को मृत्युदंड देने मंजूरी की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिशों के बाद पंजाब के देविंदर पाल सिंह भुल्लर और असम के महेंद्र नाथ सिंह की दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है। मंत्रालय के सूत्रों ने यह जानकारी दी। राष्ट्रपति भवन ने इस बारे में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। भुल्लर को 25 अगस्त 2001 को एक निचली अदालत ने 1991 में पंजाब के पुलिस अधिकारी सुमेध सिंह सैनी पर तथा 1993 में युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एमएस बिट्टा पर आतंकी हमलों की साजिश रचने के मामले में मौत की सजा सुनाई थी। भुल्लर के वकील केटीएस तुलसी ने कुछ साल पहले उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई थी कि या तो उसकी दया याचिका पर तेजी से फैसला किया जाए या उसे सुनाई मौत की सजा को बदल देना चाहिए। राष्ट्रपति ने महेंद्र नाथ दास की भी दया याचिका को खारिज कर दिया है जिसे हरकांत दास नामक शख्स की हत्या का दोषी पाया गया। वर्ष 2004 के बाद पहली बार राष्ट्रपति की ओर से किसी दोषी को मृत्युदंड की सजा पर मुहर लगाई गई है। 2004 में धनंजय चटर्जी को फांसी की सजा सुनाई गयी थी। विपक्षी दल जहां संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की याचिका पर फैसले में देरी का आरोप लगाते हुए सरकार को बार बार आड़े हाथों लेते रहे हैं वहीं गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि दया याचिकाओं पर फैसला लेने का कोई तय समय नहीं होता। चिदंबरम वर्ष 2008 में गृह मंत्री के तौर पर कामकाज संभालने के बाद से दया याचिकाओं पर फैसला लेने में सिलसिलेवार चलने की नीति अपना रहे हैं। अब तक कम से कम 15 मामले अग्रेषित किये गये हैं जिनमें से 11 में फैसला हुआ है। सूची में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषी तीन लोगों का मामला अफजल गुरू के मामले से उपर है। अफजल की पत्नी तबस्सुम अफजल ने तीन अक्तूबर 2006 को राष्ट्रपति को अपने पति की मौत की सजा को बदलने के लिए याचिका दी थी। इस बारे में दिल्ली सरकार का विचार पूछा गया था। जून 2010 में दिल्ली के उपराज्यपाल ने सरकार की ओर से विचार दिये और गृह मंत्रालय उन्हें राष्ट्रपति को भेजने के लिए अध्ययन कर रहा है। संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को किसी दोषी की मौत की सजा को माफ करने या उसकी सजा पर मुहर लगाने का अधिकार है।

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