नई दिल्ली:
धर्म आधारित जनगणना के आकड़ों को लेकर अब बिहार की राजनीति गर्माती दिख रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि केंद्र की ओर से जारी धार्मिक आधार पर जनगणना के आंकड़े बिहार के चुनावी गणित में असर डाल सकते हैं।
जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में मुस्लिमों की जनसंख्या में 2001 से 2011 के बीच 28 फीसदी बढ़ी है, जबकि हिन्दूओं की 24 फीसदी। हालांकी बीजेपी का कहना है कि वह इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाएगी, लेकिन हिन्दू समुदाय में शंका बीजेपी को फायदा पहुंचा सकती है।
शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन आंकड़ों को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। हालांकी वह इनके जारी होने की टाइमिंग पर सवाल जरूर उठा रहे हैं। वहीं सीपीएम के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी ने भी आंकड़े आने की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि इससे राजनीतिक फायदा मिलेगा।
एक नजर बिहार में हिंदू और मुस्लिमों पर :
बिहार की आबादी में 82.69% हिन्दू और 16.87% मुस्लिम हैं। अगर 2001 से 2011 के बीच बढ़ोतरी को देखें तो हिंदुओं की आबादी 24.61%, मुस्लिमों में 27.95%, जैन समुदाय में 17.58% और बौद्धों में 41.25% फीसदी की दर बढ़ी है। बिहार में मुसलमानों की आबादी 1.32 करोड़ से बढ़कर 1.76 करोड़ पंहुच गई है, यानी 10 सालों में बिहार में 38 लाख मुस्लिम बढ़ गए।
चुनावी नतीजों पर मुस्लिम वोटों का असर:
बिहार में कुछ दिनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार के चार जिलों किशनगंज, अररिया, पु्र्णिया और कठिहार में मुस्लमानों की संख्या 40 फीसदी से ज्यादा है। इन चार जिलों में पड़ने वाली विधानसभा की 24 सीटों (प्रत्येक में 6 सीट) पर जीत और हार की कुंजी मुसलमानों के हाथ में है। इनके अलावा 54 सीटों पर इनकी आबादी 16.5 से 25% है, और किसी पार्टी की जीत में यह अहम भूमिका निभा सकते है। तो बिहार की कुल 243 में से 80 सीटों पर मुस्लिम वोट सीधे-सीधे नतीजों पर असर डाल सकते हैं।
अगर पुराने आंकड़ों पर नज़र डालें तो पिछले लोकसभा चुनावों में बिहार की 40 सीटों में से NDA ने 31 सीटें जीती थी। उस वक्त चुनावी पंडितों ने मुस्लिम वोटों के धुव्रीकरण के विरुद्ध हिन्दू वोटों के धुव्रीकरण को बीजेपी की इतनी बड़ी जीत का कारण बता रहे थे। ऐसे में यहां अगर इस बार भी हिन्दू वोट एकजुट होते हैं, तो बीजेपी की पौ-बारह है और यही वजह है कि उसके विरोधी दल जनगणना के ये आंकड़े जारी करने की केंद्र की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।
जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में मुस्लिमों की जनसंख्या में 2001 से 2011 के बीच 28 फीसदी बढ़ी है, जबकि हिन्दूओं की 24 फीसदी। हालांकी बीजेपी का कहना है कि वह इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाएगी, लेकिन हिन्दू समुदाय में शंका बीजेपी को फायदा पहुंचा सकती है।
शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन आंकड़ों को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। हालांकी वह इनके जारी होने की टाइमिंग पर सवाल जरूर उठा रहे हैं। वहीं सीपीएम के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी ने भी आंकड़े आने की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि इससे राजनीतिक फायदा मिलेगा।
एक नजर बिहार में हिंदू और मुस्लिमों पर :
बिहार की आबादी में 82.69% हिन्दू और 16.87% मुस्लिम हैं। अगर 2001 से 2011 के बीच बढ़ोतरी को देखें तो हिंदुओं की आबादी 24.61%, मुस्लिमों में 27.95%, जैन समुदाय में 17.58% और बौद्धों में 41.25% फीसदी की दर बढ़ी है। बिहार में मुसलमानों की आबादी 1.32 करोड़ से बढ़कर 1.76 करोड़ पंहुच गई है, यानी 10 सालों में बिहार में 38 लाख मुस्लिम बढ़ गए।
चुनावी नतीजों पर मुस्लिम वोटों का असर:
बिहार में कुछ दिनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार के चार जिलों किशनगंज, अररिया, पु्र्णिया और कठिहार में मुस्लमानों की संख्या 40 फीसदी से ज्यादा है। इन चार जिलों में पड़ने वाली विधानसभा की 24 सीटों (प्रत्येक में 6 सीट) पर जीत और हार की कुंजी मुसलमानों के हाथ में है। इनके अलावा 54 सीटों पर इनकी आबादी 16.5 से 25% है, और किसी पार्टी की जीत में यह अहम भूमिका निभा सकते है। तो बिहार की कुल 243 में से 80 सीटों पर मुस्लिम वोट सीधे-सीधे नतीजों पर असर डाल सकते हैं।
अगर पुराने आंकड़ों पर नज़र डालें तो पिछले लोकसभा चुनावों में बिहार की 40 सीटों में से NDA ने 31 सीटें जीती थी। उस वक्त चुनावी पंडितों ने मुस्लिम वोटों के धुव्रीकरण के विरुद्ध हिन्दू वोटों के धुव्रीकरण को बीजेपी की इतनी बड़ी जीत का कारण बता रहे थे। ऐसे में यहां अगर इस बार भी हिन्दू वोट एकजुट होते हैं, तो बीजेपी की पौ-बारह है और यही वजह है कि उसके विरोधी दल जनगणना के ये आंकड़े जारी करने की केंद्र की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं