बेंगलुरू:
पिछले साल अप्रैल में बेंगलुरू के रहने वाले उस समय भौंचक्के रह गए थे, जब शहर की तीन झीलें - वारथुर, बेलांदुर और येमालुर - झाग से इतनी भर गई थीं कि सफेद दिखने लगी थीं. इसके बाद हवा की वजह से वही फेन उड़-उड़कर सड़कों पर पहुंचा तथा कारों और राहगीरों को ढकने लगा. उस फेन के विश्लेषण से पता लगा कि उसमें साबुन, तथा मल-मूत्र मौजूद है, जो विशेषज्ञों के मुताबिक सीवेज के पानी को परिशोधित किए बिना झीलों में बहा देने का परिणाम था.
एक साल बीत चुका है, लेकिन समस्या जस की तस है. इस साल जुलाई में भी फेन देखने को मिला, जब भारी बारिश की वजह से बेंगलुरू की सड़कें पानी से भर गईं. सो, भले ही कांग्रेस-शासित राज्य में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस ओर ध्यान दिया जाना बाकी है, लेकिन शहर के बच्चे जागरूक हैं, और उन्होंने इस मुद्दे को लेकर खुद ही कुछ करने का फैसला किया है.
वारथुर झील से बमुश्किल एक किलोमीटर दूर बने केके स्कूल के 1,000 विद्यार्थियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर अनुरोध किया है कि वह हस्तक्षेप कर झीलों को बचाएं. पहली से 10वीं कक्षा तक के बच्चों द्वारा लिखे गए सभी पोस्टकार्ड गुरुवार को डाक से रवाना किए गए.
झील में झाग के दिखने के बाद स्कूल के विद्यार्थियों ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पानी का परीक्षण करवाया. एक विद्यार्थी ने NDTV को बताया कि पानी कठोर पाया गया, उसमें विषैलापन भी सामान्य से ज़्यादा पाया गया. इस झील का वर्षों से अध्ययन कर रहे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में प्रोफेसर टीवी रामचंद्रन ने कहा कि पानी में पाए गए कुछ प्रदूषक तत्व कार्सिनोजेनिक थे.
दूसरी ओर, शहर के पर्यावरण अधिकारी स्वास्थ्य को खतरे की बात को खारिज कर रहे हैं, और उनका दावा है कि सिर्फ बदबू ही चिंता का विषय है. साथ ही वे यह भी कहते हैं कि अगर काम तुरंत भी शुरू कर दिया जाए, तो भी झीलों की सफाई में एक साल लग जाएगा.
एक साल बीत चुका है, लेकिन समस्या जस की तस है. इस साल जुलाई में भी फेन देखने को मिला, जब भारी बारिश की वजह से बेंगलुरू की सड़कें पानी से भर गईं. सो, भले ही कांग्रेस-शासित राज्य में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस ओर ध्यान दिया जाना बाकी है, लेकिन शहर के बच्चे जागरूक हैं, और उन्होंने इस मुद्दे को लेकर खुद ही कुछ करने का फैसला किया है.
वारथुर झील से बमुश्किल एक किलोमीटर दूर बने केके स्कूल के 1,000 विद्यार्थियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर अनुरोध किया है कि वह हस्तक्षेप कर झीलों को बचाएं. पहली से 10वीं कक्षा तक के बच्चों द्वारा लिखे गए सभी पोस्टकार्ड गुरुवार को डाक से रवाना किए गए.
झील में झाग के दिखने के बाद स्कूल के विद्यार्थियों ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पानी का परीक्षण करवाया. एक विद्यार्थी ने NDTV को बताया कि पानी कठोर पाया गया, उसमें विषैलापन भी सामान्य से ज़्यादा पाया गया. इस झील का वर्षों से अध्ययन कर रहे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में प्रोफेसर टीवी रामचंद्रन ने कहा कि पानी में पाए गए कुछ प्रदूषक तत्व कार्सिनोजेनिक थे.
दूसरी ओर, शहर के पर्यावरण अधिकारी स्वास्थ्य को खतरे की बात को खारिज कर रहे हैं, और उनका दावा है कि सिर्फ बदबू ही चिंता का विषय है. साथ ही वे यह भी कहते हैं कि अगर काम तुरंत भी शुरू कर दिया जाए, तो भी झीलों की सफाई में एक साल लग जाएगा.
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