दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन का 64वां वार्षिक सम्मेलन मेडिकॉन (Medicon) रविवार को दिल्ली के अशोक होटल में हुआ. इसमें दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन से जुड़े न केवल 20 हज़ार डॉक्टरों ने अंग दान की शपथ ली, बल्कि भरोसा दिलाया कि वो अपने मरीजों को भी अंग दान (Organ Donation) को लेकर समझ बढ़ाएंगे और प्रेरित करेंगे, ताकि जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे मरीजों और उनके परिवार को तकलीफ कम हो पाए.
इस मौके पर दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर अश्विनी डालमिया ने कहा कि ये मौका है, जब हम एक मंच पर जुटते हैं. जानकारी साझा करते हैं. जरूरी है कि साइंटिफिक सोशल समागम में हमारी तकलीफ और हमारे मुद्दों को भी आपस में हम साझा करें और उन ज़रूरी चीज़ों को भी, जिनसे सामाजिक सोच भी बदले और राष्ट्र प्रगति के पथ पर भी आगे बढ़े. ऐसे में एक मुद्दा ऑर्गन डोनेशन का है. लिहाज़ा न सिर्फ यहां मौजूद डॉक्टरों, बल्कि एसोसिएशन से जुड़े हमारे 20 हज़ार साथी डॉक्टर्स ने भी आज ऑर्गन डोनेशन का प्रण लिया और यही नहीं, जहां वो मरीजों से मिलेंगे उनको अंगदान को लेकर प्रेरित करेंगे. अंगदान की शपथ NOTTO यानी नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन के निदेशक अनिल कुमार ने दिलवाई.
डीएमए के सचिव डॉक्टर अजय बेदी और पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर विनय अग्रवाल ने डॉक्टरों के साथ मारपीट का मुद्दा दोहराया. उन्होंने कहा, "जब डॉक्टर पिटते रहेंगे, तो भला इलाज कौन करेगा? ठोस नीति और ठीक नियत का अभाव दिखता है. आए दिन मरीज के तीमारदार गुस्से में आपा खो देते हैं और शिकार डॉक्टर हो जाता है. ये गलत है. डॉक्टर की सुरक्षा को लेकर सरकार की सजगता जरूरी है. साथ ही पब्लिक को भी समझना होगा कि अस्पताल में डॉक्टर मरीजों की सेवा के लिए है, जान बचाने के लिए है... जान लेने के लिए नहीं. इस मारपीट की घटना को डॉक्टर मैरिज के बीच का संवाद भी रोक सकता है और अगर अस्पताल में प्रबंधन की तरफ से किसी चीज की कमी है तो ध्यान उस दिशा में देने की जरूरत भी."
डीएमसी यानी दिल्ली मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉक्टर गिरीश त्यागी ने कहा कि हमने मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से राजघाट तक पैदल मार्च भी किया, एकजुट भी हुए, लेकिन हालात बदलने को लेकर सिवाय आश्वासन मिलने के अलावा अब तक कुछ नहीं हुआ. आश्वासन आज से नहीं लंबे वक्त से मिल रहा है, लेकिन हालात अब तक नहीं सुधरे. ये गंभीर मुद्दा है और हम डॉक्टरों के लिए काफी अहम.
करीब 2000 की डॉक्टरों को जुटी भीड़ ने अशोक होटल में फिर से राजघाट के तर्ज पर वहां पैदल मार्च किया... अपनी नाराज़गी और आपत्ति ज़ाहिर की. इस व्यवस्था से, जो अब तक डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर उदासीन है.
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉक्टर अरुण गुप्ता ने मेडिकल एथिक्स का मुद्दा दोहराया. उन्होंने कहा कि डॉक्टर गलत हो, तो उसको टांग दो...सजा दो...फांसी पर लटका दो, लेकिन आखिर तय कौन करेगा कि गलती डॉक्टर की है...? कोर्ट, मीडिया ट्रायल गलत है. धारा 304 भी पुलिस का खुद से लगाना गलत है, क्योंकि इस धारा को लेकर पहले दिल्ली मेडिकल कमीशन के कमिटी की अनुमति चाहिए. पर नहीं, बिना उसके ये करना गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी स्थिति इसपर साफ की है, तो पुलिस का मनमर्जी का धारा लगाने का हम विरोध करते हैं. आज चुप रहे, तो ये परंपरा बन जायेगी.
डीएमए के मेडिकॉन में अलग-अलग बीमारी और उनके उपचार को लेकर भी कई सेशन हुए. इनमें कैंसर, स्ट्रोक, हार्ट डिजीज, नेफ्रो, नी रिप्लेसमेंट सर्जरी के क्षेत्र में हासिल उपलब्धि और चुनौती पर अलग-अलग सत्र का आयोजन हुआ. जहां आपस में इलाज के ज्ञान का आदान प्रदान भी किया गया. यही नहीं, दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के इस कार्यक्रम के दौरान "मेडिकल प्रोफेशन एट क्रॉसरोड्स, रोल ऑफ काउंसिल, मीडिया, ज्यूडिशियरी एंड पुलिस पर पैनल डिस्कशन" भी किया गया.
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर अश्विनी डालमिया ने कार्यक्रम के अंत में दोहराया कि आपस के संवाद से समस्याओं का हल आसानी से निकलता है. और यही वजह है कि साल में एक बार मिलना ज़रूरी है, ताकि एक मंच पर अपनी समस्या, मेडिकल जगह में नए सुधार और समाज के लिए कुछ नया करने की कोशिश को लेकर मंथन करते हैं और यहां से हासिल ऊर्जा, सुझाव और निर्णय के सहारे आगे बढ़ते हैं.
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