पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के सांसदों को संसद भवन में प्रवेश करने से रोकने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में सवाल खड़े किए हैं. याचिका में आरोप लगाए गए हैं कि राज्य भंग किए जाने के बावजूद वे अवैध रूप से अपनी सीटों पर काबिज हैं. संसदीय मामलों के मंत्रालय ने हाइकोर्ट में कहा कि याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त प्रोफेसर को अदालत जाने से पहले अधिकारियों के समक्ष मुद्दे को उठाना चाहिए था. कोर्ट में मंत्रालय का प्रतिनिधित्व केंद्र सरकार के वकील अनिल सोनी ने किया. याचिकाकर्ता ने कहा कि कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला सहित जम्मू-कश्मीर के दस सांसद अब भी सीट पर काबिज हैं और सरकारी खर्च पर अब भी सारी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं. न्यायाधीश बृजेश सेठी ने दोनों पक्षों को सुना और मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
सेवानिवृत्त प्रोफेसर अब्दुल गनी भट ने याचिका में आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती राज्य से लोकसभा के छह सांसद और राज्यसभा के चार सदस्य 'अवैध रूप से' अपनी सीटों पर काबिज हैं. याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि दसों सांसदों को संसद में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाए.
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गौरतलब है कि संसद ने पिछले वर्ष पांच अगस्त को संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त कर दिया था और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित क्षेत्रों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में बांट दिया था.
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