![आकाशीय बिजली का कहर : 400 वर्ष पुराने रत्नेश्वर महादेव मंदिर का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त आकाशीय बिजली का कहर : 400 वर्ष पुराने रत्नेश्वर महादेव मंदिर का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त](https://i.ndtvimg.com/i/2016-03/ratneshwar-mahadev-temple_650x400_51457863661.jpg?downsize=773:435)
आकाशीय बिजली गिरने से मंदिर को नुकसान पहुंचा है...
वाराणसी:
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट स्थित रत्नेश्वर महादेव के मंदिर पर बीती रात बारिश और बिजली का कहर कुछ ऐसा टूटा कि मंदिर के ऊपरी भाग का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। रात लगभग 12:45 बजे तेज बारिश में हुए वज्रपात में मणिकर्णिका स्थित लगभग 400 वर्ष पुराना रत्नेश्वर महादेव मंदिर बुरी तरह छतिग्रस्त हुआ।
शिलाखंड दूर जा गिरे
आकाशीय वज्रपात इतनी तीव्रता से मंदिर शिखर से टकराया कि उसके शिलाखण्ड दूर-दूर तक छटक कर जा गिरे। किसी अन्य जानमाल के नुकसान की कोई खबर नहीं है। स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बिजली की आवाज इतनी तीव्र थी कि लगा कान का पर्दा फट जाएगा और धरती में भी तेजी के साथ कंपन हुई थी।
मंदिर से जुड़ी है ये कहानी
इस मंदिर के निर्माण बारे में भिन्न-भिन्न कथाएं कही जाती हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जिस समय रानी अहिल्या बाई होलकर शहर में मंदिर और कुण्डों आदि का निर्माण करा रही थीं उसी समय रानी की दासी रत्ना बाई ने भी मणिकर्णिका कुण्ड के समीप एक शिव मंदिर का निर्माण कराने की इच्छा जताई, जिसके लिए उसने अहिल्या बाई से रुपये भी उधार लिए और इसे निर्मित कराया।
अहिल्या बाई इसे देख अत्यंत प्रसन्न हुईं, लेकिन उन्होंने दासी रत्ना बाई से कहा कि वह अपना नाम इस मंदिर में न दें, लेकिन दासी ने बाद में अपने नाम पर ही इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रख दिया। इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन पूजन की जा सकेगी। वर्ष में ज्यादातर समय यह मंदिर डूबा रहता है।
कलाकार मिलकर कराना चाहते हैं जीर्णोद्धार
मंदिर का मलबा इधर-उधर बिखरा है। फोटो वाकर ग्रुप के मनीष खत्री ने बताया कि दुनिया भर के लोग इस मंदिर की फोटोग्राफी करने आते हैं। इसकी नक्काशी और पत्थर की जीवंतता हर किसी को अपनी तरफ खींचती है। बिजली गिरने से उसके स्वरूप को जो भी नुकसान पहुंचा है उसे हम और हमारे साथी ठीक करना चाहते हैं। प्रशासन अगर अनुमति दे तो हम जैसे कलाकार मिलकर इसका जीर्णोद्धार करना चाहते हैं। साथ ही यह भी अपील करते हैं कि प्रशासन तत्काल प्रभाव से इस क्षेत्र में बिखरे शिलाखंडों को अपने कब्जे में ले और पुरातत्व विभाग इसका जीर्णोद्धार करवाए।
शिलाखंड दूर जा गिरे
आकाशीय वज्रपात इतनी तीव्रता से मंदिर शिखर से टकराया कि उसके शिलाखण्ड दूर-दूर तक छटक कर जा गिरे। किसी अन्य जानमाल के नुकसान की कोई खबर नहीं है। स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बिजली की आवाज इतनी तीव्र थी कि लगा कान का पर्दा फट जाएगा और धरती में भी तेजी के साथ कंपन हुई थी।
मंदिर से जुड़ी है ये कहानी
इस मंदिर के निर्माण बारे में भिन्न-भिन्न कथाएं कही जाती हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जिस समय रानी अहिल्या बाई होलकर शहर में मंदिर और कुण्डों आदि का निर्माण करा रही थीं उसी समय रानी की दासी रत्ना बाई ने भी मणिकर्णिका कुण्ड के समीप एक शिव मंदिर का निर्माण कराने की इच्छा जताई, जिसके लिए उसने अहिल्या बाई से रुपये भी उधार लिए और इसे निर्मित कराया।
अहिल्या बाई इसे देख अत्यंत प्रसन्न हुईं, लेकिन उन्होंने दासी रत्ना बाई से कहा कि वह अपना नाम इस मंदिर में न दें, लेकिन दासी ने बाद में अपने नाम पर ही इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रख दिया। इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन पूजन की जा सकेगी। वर्ष में ज्यादातर समय यह मंदिर डूबा रहता है।
कलाकार मिलकर कराना चाहते हैं जीर्णोद्धार
मंदिर का मलबा इधर-उधर बिखरा है। फोटो वाकर ग्रुप के मनीष खत्री ने बताया कि दुनिया भर के लोग इस मंदिर की फोटोग्राफी करने आते हैं। इसकी नक्काशी और पत्थर की जीवंतता हर किसी को अपनी तरफ खींचती है। बिजली गिरने से उसके स्वरूप को जो भी नुकसान पहुंचा है उसे हम और हमारे साथी ठीक करना चाहते हैं। प्रशासन अगर अनुमति दे तो हम जैसे कलाकार मिलकर इसका जीर्णोद्धार करना चाहते हैं। साथ ही यह भी अपील करते हैं कि प्रशासन तत्काल प्रभाव से इस क्षेत्र में बिखरे शिलाखंडों को अपने कब्जे में ले और पुरातत्व विभाग इसका जीर्णोद्धार करवाए।
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