बिहार में जब भी यादव नेताओं ने किया विद्रोह तो लालू की पार्टी को मिली मात, क्या पूर्णिया में परपंरा कायम रखेंगे पप्पू यादव?

बिहार की राजनीति में यादवों का लंबे समय से वर्चस्व रहा है.  दारोगा प्रसाद राय के बाद यादव राजनीति की कमान लालू प्रसाद यादव के हाथों में आ गयी. लालू यादव की पकड़ पूरे राज्य के यादवों पर रही है. हालांकि कई दफे उन्हें यादव छत्रपों से कड़ी टक्कर मिली है.

बिहार में जब भी यादव नेताओं ने किया विद्रोह तो लालू की पार्टी को मिली मात, क्या पूर्णिया में परपंरा कायम रखेंगे पप्पू यादव?

नई दिल्ली:

बिहार की राजनीति में इस लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक पूर्णिया लोकसभा सीट (Purnia Lok Sabha Seat) की चर्चा हो रही है. पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने के लिए पप्पू यादव (Pappu Yadav) ने इंडिया गठबंधन से विद्रोह कर दिया है. कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी पूर्णिया की सीट नहीं मिलने पर पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. बिहार में हुए जातिगत गणना के रिपोर्ट के अनुसार राज्य में यादवों की आबादी 14.2 प्रतिशत है. यादव मतों राजनीति पर लालू यादव की दबदबा रहा है. हालांकि कई बार उन्हें यादव वोटर्स का साथ नहीं भी मिला है. 

बिहार की राजनीति में यादवों का लंबे समय से वर्चस्व रहा है.  दारोगा प्रसाद राय के बाद यादव राजनीति की कमान लालू प्रसाद यादव के हाथों में आ गयी. माना जाता है कि यादव वोटर्स का बड़ा हिस्सा लालू प्रसाद के साथ खड़ा रहता है. हालांकि कई ऐसे मौके आए हैं जब यादव क्षत्रपों ने लालू यादव के खिलाफ विद्रोह कर लालू यादव के उम्मीदवार को या उन्हें मात दी है. 

शरद यादव से लेकर गुलाब यादव तक कई नेताओं ने दी मात
लालू यादव पिछले 3 दशक से अधिक समय से बिहार की राजनीति में राज करते रहे हैं. हालांकि कई मौकों पर उनके आसपास ही राजनीति करने वाले नेताओं ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया और चुनावी मैदान में लालू यादव को मात भी दी. इन नामों में शरद यादव, रंजन यादव, रामकृपाल यादव, गुलाब यादव और अब पप्पू यादव का नाम प्रमुख है. 

शरद यादव ने लालू प्रसाद को उनके गढ में दी थी मात
बिहार में एक कहावत चर्चित है कि रोम पोप का मधेपुरा गोप(यादव) का. एक ही साथ राजनीति की शुरुआत करने वाले शरद यादव और लालू यादव लंबे समय तक साथ रहे थे. साल 1996-1997 में लालू यादव ने जनता दल से अलग हटकर राष्ट्रीय जनता दल बना लिया था. 1998 के चुनाव में लालू यादव को जीत मिली थी. हालांकि 1999 के चुनाव में शरद यादव ने लालू यादव को उस दौर में मधेपुरा से मात दे दी थी जब लालू बिहार की राजनीति में चमके हुए थे. शरद यादव उस चुनाव में एनडीए का हिस्सा थे. वहीं लालू यादव को कांग्रेस का समर्थन मिला था. मधेपुरा में चुनाव जीतकर शरद यादव केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बने थे.

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पाटलिपुत्र से रेल मंत्री रहते, रंजन यादव से चुनाव हार गए थे लालू यादव
रंजन यादव एक जमाने में लालू यादव के बेहद करीबी थे. रंजन यादव की राष्ट्रीय जनता दल में नंबर 2 की हैसियत थी. हालांकि रंजन यादव ने लालू यादव के खिलाफ विद्रोह कर दिया और वो राजद से अलग हो गए. 2009 के चुनाव में परिसीमन के बाद बने पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर लालू यादव के खिलाफ रंजन यादव ने जनता दल यूनाइटेड की टिकट पर हुंकार भरी. रंजन यादव ने लालू यादव को 2.69 लाख वोट लाकर चुनाव मैदान में पराजित कर दिया था. रेल मंत्री रहते हुए लालू लोकसभा चुनाव हार गए थे.2009 के चुनाव में उनकी पार्टी का भी बेहद खराब प्रदर्शन रहा था.

रामकृपाल यादव ने मीसा भारती को 2 बार हराया
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अदालत से सजा मिलने के कारण लालू यादव चुनाव मैदान में नहीं उतरे. पाटलिपुत्र सीट पर दावेदारी को लेकर लालू यादव के बेहद करीबी रहे रामकृपाल यादव ने लालू यादव के खिलाफ विद्रोह कर दिया. रामकृपाल यादव ने लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती के खिलाफ पाटलिपुत्र सीट से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा. रामकृपाल यादव ने न सिर्फ 2014 में बल्कि 2019 के चुनाव में भी मीसा भारती को हराया. 

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गुलाब यादव ने एमएलसी चुनाव में विद्रोह कर जीत हासिल की
बिहार के झंझारपुर विधानसभा सीट से पूर्व विधायक गुलाब यादव ने 2022 में हुए एमएलसी चुनाव में राजद से विद्रोह कर दिया. चुनाव में विद्रोह कर उन्होंने अपनी पत्नी अंबिका गुलाब यादव को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतारा.  अंबिका गुलाब यादव ने मधुबनी में निर्दलीय विधानपरिषद की सीट पर कब्जा कर लिया. 

यादव बहुल सीटों पर अन्य पार्टियों के छत्रपों ने भी दी मात
लालू यादव को बिहार की प्रमुख यादव बहुल सीटों पर कई बार हार का सामना करना पड़ा है. बिहार के मधुबनी लोकसभा सीट को यादव बहुल माना जाता है. यहां कभी भी राजद के प्रत्याशी को जीत नहीं मिली है. बीजेपी के उम्मीदवार रहते हुए पहले हुकुमदेव नारायण यादव और बाद में उनके बेटे अशोक यादव ने कई दफा राजद और उसके सहयोगी दलों को परास्त किया है. हालांकि हुकुमदेव नारायण यादव कभी भी लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के सदस्य नहीं रहे हैं लेकिन उनकी राजनीति की शुरुआत भी उसी समाजवादी धारा के साथ हुई थी जिससे लालू यादव निकले हैं. 

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उजियारपुर को भी यादव बहुल सीट माना जाता है. इस सीट पर भी केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने राजद के उम्मीदवार को कई बार हराया है. वहीं मधेपुरा सीट पर राजद को जदयू के उम्मीदवार के हाथों हार का सामना करना पड़ा. 

पप्पू यादव लालू यादव के लिए अन्य यादव नेताओं की तुलना में हैं बड़ी चुनौती?
बिहार में जितने भी यादव नेता रहे हैं उन्होंने लालू यादव के साथ विद्रोह करने के बाद एनडीए का दामन थाम लिया है. या बाद में वो लालू यादव के साथ ही आ गए हैं. हालांकि पप्पू यादव की बिहार में राजनीति अलग रही है. उन्होंने कई बार लालू प्रसाद के खिलाफ विद्रोह किया है लेकिन कभी भी पूरी तरह से उन्होंने बीजेपी या एनडीए के साथ गठबंधन नहीं की है. पप्पू यादव लालू यादव के यादव के साथ-साथ मुस्लिम वोट बैंक पर भी दावा करते रहे हैं. हालांकि अंतिम दफा राजद की टिकट पर 2014 में सांसद बनने के बाद से पप्पू यादव कोई भी चुनाव जीतने में सफल नहीं रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

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