- हरियाणा का नूंह इलाका पिछले कुछ वर्षों में देश का सबसे ख़ौफनाक साइबर-क्राइम हॉटस्पॉट बन चुका है
- मध्यप्रदेश के 1,000 से अधिक बैंक खातों को ठगी का पैसा इधर से उधर करने के लिए इस्तेमाल किया गया
- एमपी साइबर सेल के एसपी नागवंशी बताते हैं कि साइबर ठग आतंकी घटनाओं के डर को तेजी से कैश करते हैं
हरियाणा के नूंह जिले और मध्यप्रदेश के दिल में एक खतरनाक नेटवर्क जन्म ले रहा है. अपराध, धोखाधड़ी और संभावित आतंकी फंडिंग का ऐसा जाल, जो देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक नया सिरदर्द बन चुका है. लंबे समय से बेरोजगारी, पुलिस ढांचे और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन से जूझता रहा दक्षिण-पूर्वी हरियाणा का यह इलाका पिछले कुछ वर्षों में देश का सबसे ख़ौफनाक साइबर-क्राइम हॉटस्पॉट बन चुका है. यह नया जामताड़ा है लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक.
3 हजार करोड़ के साइबर क्राइम रैकेट का खुलासा
इस साल की शुरुआत में मध्यप्रदेश पुलिस ने राज्य के इतिहास का सबसे बड़ा साइबर क्राइम रैकेट पकड़ा था. इसकी रकम 3,000 करोड़ रुपए से अधिक थी. इसमें खुलासा हुआ था कि इस पूरे ऑपरेशन के असली मास्टरमाइंड एमपी में नहीं, बल्कि नूंह में बैठे थे. हैरानी की बात यह थी कि उनमें से अधिकांश मुश्किल से स्कूल पास युवक थे, लेकिन गुरुग्राम के एक फ़्लैट से वो पूरे भारत में लाखों लोगों को ठगने वाला डिजिटल साम्राज्य चला रहे थे. इसी फ़्लैट में चल रहे अवैध कॉल सेंटर से रोज़ नौकरी, निवेश, क्रिप्टो घोटालों से लेकर फर्जी पुलिस-एजेंसी के नाम पर धमकियों के कॉल किए जाते थे.

एमपी के 1000 बैंक खातों में घुमाई ठगी की रकम
मध्यप्रदेश से इसका सीधा और गहरा संबंध है. विंध्य और महाकौशल क्षेत्रों के गरीब ग्रामीणों के 1,000 से अधिक बैंक खातों को पैसा इधर से उधर करने के लिए म्यूल अकाउंट्स की तरह इस्तेमाल किया गया. लोगों को बताया गया कि सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा, लेकिन उनकी अनभिज्ञता का फायदा उठाकर उन्हीं खातों से करोड़ों रुपए देशभर में घुमाए गए. दो साल से कम समय में 3,000 करोड़ रुपए इन खातों से होकर देश के कई शहरों और फिर विदेशों में ट्रांसफर हुए. जांच अधिकारियों के मुताबिक, बड़ी रकम मध्य-पूर्व तक पहुंची. क्या यह पैसा केवल साइबर फ्रॉड का था या धार्मिक फंडिंग, हवाला ट्रेल या आतंकी फंडिंग से जुड़ा था, इसकी जांच जारी है.
सैकड़ों सिम कार्ड भी मध्यप्रदेश से जुटाए गए
इन खातों के साथ-साथ सैकड़ों फर्जी सिम कार्ड भी मध्यप्रदेश से ही जुटाए गए थे. ये सिम पहले एमपी से पटना पहुंचे, जहां बिचौलिये इन्हें पैक करके नूंह तक भेजते थे. ये सिम साइबर ठगी का सबसे बड़ा हथियार थे. नूंह के ऑपरेटर हैदराबाद और महाराष्ट्र में कई शेल कंपनियां भी चलाते थे, जिनके जरिये वे अवैध फंड को छुपाते थे. इस गोरखधंधे की हर कड़ी भर्ती, सिम सप्लाई, म्यूल अकाउंट, पैसा रूटिंग आखिरकार नूंह तक जाकर जुड़ती थी.

मध्यप्रदेश साइबर सेल के एसपी प्रणय नागवंशी ने NDTV से खास बातचीत की.
बैंक कर्मियों की मदद से खोले गए खाते
मध्यप्रदेश साइबर सेल के एसपी प्रणय नागवंशी ने बताया कि जबलपुर, कटनी, रीवा, सीधी, सतना और आसपास के इलाकों में बड़ी संख्या में फर्जी सिम बेचे जा रहे थे. पिछले महीने जब हमने ऑपरेशन चलाया तो दमोह, डिंडोरी, शिवपुरी, ग्वालियर और इंदौर के आसपास भी नए केंद्र मिले. नागवंशी बताते हैं कि गड़बड़ी केवल स्थानीय एजेंटों तक सीमित नहीं थी. कुछ मामलों में बैंक कर्मचारियों तक शामिल पाए गए. कई म्यूल अकाउंट्स उनके रेफरेंस से खोले गए थे. हमने उन पर भी कार्रवाई की है.
मध्यप्रदेश में साइबर क्राइम का बाढ़
- इस सबका मध्यप्रदेश पर विनाशकारी असर रहा है. राज्य में साइबर अपराधों की बाढ़ आ चुकी है.
- इंदौर में एक रिटायर्ड मेडिकल अधिकारी को एक महीने तक डिजिटल अरेस्ट रखकर 4.32 करोड़ रुपये ठग लिए गए.
- भोपाल में 67 वर्षीय बैंक मैनेजर दंपती को यह कहकर डरा दिया गया कि उनके खातों से दिल्ली ब्लास्ट के आतंकियों को फंडिंग हुई है और 24 घंटे के भीतर उनकी पूरी जमा-पूंजी 67 लाख रुपये गायब कर दी गई.
- कटनी में एक डॉक्टर को एनआईए अधिकारी का झांसा देकर धमकी दी गई कि उसका नाम लाल किला हमले में आया है. वह आखिरी पल में ठगी से उस समय बचा, जब उसके बेटे ने ठगों की चाल भांपकर साइबर सेल को सूचित कर दिया.
आतंकी घटनाओं के डर को कैश करते हैं ठग
मध्यप्रदेश साइबर सेल के एसपी नागवंशी मानते हैं कि राष्ट्रीय त्रासदियों का दुरुपयोग अपराधी बड़ी तेजी से करते हैं. दिल्ली बम धमाकों और जम्मू-कश्मीर की घटनाओं के बाद ऐसे धमकियां बहुत बढ़ गईं. साइबर अपराधी हर नई घटना को हथियार बना लेते हैं. वे डर को तुरंत कैश करते हैं और लोगों को धमकाकर, डराकर लूटते हैं.
जांच आगे बढ़ी तो और भी भयावह तथ्य सामने आए. हजारों करोड़ रुपये ऐसे खातों से गुज़रे जो आगे जाकर हैदराबाद और महाराष्ट्र की शेल कंपनियों में बदल दिए गए थे. नागवंशी बताते हैं कि हजारों करोड़ की ट्रांज़ैक्शन्स सिर्फ एक क्लस्टर में मिलीं. कई म्यूल अकाउंट्स से शेल कंपनियां खोली गईं और उन्हीं के नाम पर भारी रकम ट्रांसफर या जमा की गई.

मनोवैज्ञानिक हिंसा का हथियार बना साइबर क्राइम
भोपाल के सीनियर एडवोकेट शिवकुमार वर्मा इस डिजिटल आतंक की दहशत नहीं झेल पाए और आत्महत्या कर ली. उन्हें फोन पर बताया गया था कि उनके नाम से खोला गया एक फर्जी बैंक खाता पहलगाम के आतंकियों को फंड कर रहा है. अपने अंतिम पत्र में उन्होंने लिखा- “देशद्रोही कहलाने का कलंक मैं नहीं सह सकता.” यह घटना बताती है कि साइबर अपराध अब सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि मानसिक और मनोवैज्ञानिक हिंसा का हथियार भी बन चुका है.
1054 करोड़ की ठगी, रिकवरी महज 2%
मध्यप्रदेश विधानसभा में पेश आंकड़े बताते हैं कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है. मई 2021 से जुलाई 2025 तक 1,054 करोड़ रुपये की साइबर ठगी हुई, लेकिन पुलिस सिर्फ 19.4 करोड़ रुपये यानी 2 प्रतिशत से भी कम वापस ला सकी. 2020 से 2022 तक हर साल चार लाख से अधिक साइबर शिकायतें दर्ज हुईं. 1,193 एफआईआर में से केवल 585 में चार्जशीट दाखिल हो पाई.

25 से ज्यादा साइबर ठग गिरफ्तार
विपक्ष के विधायक जयवर्धन सिंह ने सदन में कहा था कि ये बेहद गंभीर मामला है. हजार करोड़ से अधिक की ठगी और रिकवरी नगण्य, ये दिखाता है कि पुलिस के पास न तो संसाधन हैं और न ही गंभीरता. इन सबके बावजूद, मध्यप्रदेश साइबर सेल अब तक 25 से अधिक मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है. लेकिन वे मानते हैं कि यह केवल शुरुआत है. मुख्य मास्टरमाइंड जिन्होंने पूरे जाल की डोर संभाल रखी थी, अब भी नूंह में छिपे हैं.
अब सबसे बड़ा सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने है. अगर मध्यप्रदेश के म्यूल अकाउंट्स से पैसा विदेश गया, अगर यही नेटवर्क साइबर ठगी और आतंकी फंडिंग दोनों जगह दिख रहा है, और अगर नूंह इन दोनों का साझा केंद्र है तो क्या भारत एक नए साइबर–आतंक गलियारे के उभरने के मुहाने पर है?
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