विज्ञापन
Story ProgressBack

बिना मंजूरी के किसी नए चिड़ियाघर, सफारी की शुरुआत नहीं की जा सकती: उच्चतम न्यायालय

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रदान किए जाने वाले ‘‘वन जैसे क्षेत्र, अवर्गीकृत वन भूमि और सामुदायिक वन भूमि’’ संबंधी विवरण को 15 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा.

बिना मंजूरी के किसी नए चिड़ियाघर, सफारी की शुरुआत नहीं की जा सकती: उच्चतम न्यायालय
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने देश भर में वन संरक्षण के लिए सोमवार को कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि वन भूमि पर चिड़ियाघर खोलने या ‘सफारी' शुरू करने के किसी भी नए प्रस्ताव के लिए अब न्यायालय की मंजूरी की आवश्यकता होगी.

शीर्ष अदालत ने इस अभ्यावेदन पर गौर किया कि संरक्षण संबंधी 2023 के संशोधित कानून के तहत वन की परिभाषा में लगभग 1.99 लाख वर्ग किलोमीटर वन भूमि को ‘जंगल' के दायरे से बाहर रखा गया है और इसका उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने 2023 के वन संरक्षण कानून में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर आने वाली वन भूमि का विवरण केंद्र को इस वर्ष 31 मार्च तक मुहैया कराने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रदान किए जाने वाले ‘‘वन जैसे क्षेत्र, अवर्गीकृत वन भूमि और सामुदायिक वन भूमि'' संबंधी विवरण को 15 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा.

अदालत ने कहा, ‘‘पूर्व अनुमति के बिना वन भूमि के तहत किसी चिड़ियाघर/सफारी को अधिसूचित नहीं किया जाएगा... संरक्षित क्षेत्रों के अलावा अन्य वन क्षेत्रों में सरकार या किसी प्राधिकरण के स्वामित्व वाले वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में संदर्भित चिड़ियाघर/सफारी की शुरुआत के किसी भी प्रस्ताव को न्यायालय की पूर्व मंजूरी के बिना अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा.''

पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से टी एन गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम भारत संघ मामले में 1996 के फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित ‘‘वन'' की परिभाषा के अनुसार कार्य करने को कहा.

उसने इस बात का उल्लेख किया कि सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया संशोधित कानून के अनुसार जारी है.

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि शीर्ष अदालत के फैसले में ‘‘वन'' की व्यापक परिभाषा को संशोधित कानून में शामिल धारा 1ए के तहत संकुचित कर दिया गया है. संशोधित कानून के अनुसार, ‘‘वन'' के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए भूमि को या तो जंगल के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिए या सरकारी रिकॉर्ड में विशेष रूप से जंगल के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए.

केंद्र ने 27 मार्च, 2023 को वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक पेश किया था. याचिकाओं में संशोधित कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है और इसे अमान्य करार दिए जाने का अनुरोध किया गया है.

ये भी पढ़ें- चंडीगढ़ में भारी बारिश के बीच गिरे ओले, दिल्ली में फिर बदलेगा मौसम का मिज़ाज; IMD का लेटेस्ट अपडेट

ये भी पढ़ें- लद्दाख के करगिल में भूकंप, रिक्टर स्केल पर तीव्रता 5.2 मापी गयी

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
भगोड़े कारोबारी विजय माल्‍या को झटका, सेबी ने 3 साल के लिए प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित किया
बिना मंजूरी के किसी नए चिड़ियाघर, सफारी की शुरुआत नहीं की जा सकती: उच्चतम न्यायालय
वित्त मंत्री के बजट पर गदगद PM मोदी : 84 मिनट के भाषण में 78 बार थपथपाई मेज
Next Article
वित्त मंत्री के बजट पर गदगद PM मोदी : 84 मिनट के भाषण में 78 बार थपथपाई मेज
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;