उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत ज्यादातर सांसदों ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत ऐसे गांव गोद लिए हैं, जहां मुस्लिम आबादी या तो है ही नहीं और अगर है भी तो न के बराबर।
उमा भारती, कलराज मिश्र, योगी आदित्यनाथ, संजीव बालियान और यहां तक की पार्टी के मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी द्वारा गोद लिए गांवों में मुस्लिम आबादी नहीं है। राजनाथ सिंह और वरुण गांधी के गोद लिए गावों में मुस्लिम आबादी आधा फीसदी से कम है।
वैसे तो बनारस में 10 लाख मुस्लिम रहते हैं, लेकिन देश के प्रधानमंत्री ने जो गांव गोद लिया, उसमें कोई मुस्लिम नहीं रहता है। यह आरएसएस का गढ़ है और पिछले 35 साल से यहां आरएसएस की शाखा लगती है। आरएसएस इस गांव को पीएम द्वारा गोद लिए जाने से 12 साल पहले गोद ले चुका है।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ का बेंती गांव गोद लिया, तो खुशी में गांव में घंटे-घड़ियाल बजे। रफीक इस गांव में उतने ही 'अल्पसंख्यक' हैं, जितने बीजेपी में मुख्तार अब्बास नकवी। 15 हजार की आबादी में रफीक और उनके भाई अकेले मुसलमान हैं।
गांव में भले और मुस्लिम न हों, लेकिन बेंती गांव का नाम ही एक सूफी फकीर बेंती शाह बाबा के नाम पर पड़ा है। उनकी मजार अब मिटने को है। रफीक से जब हमने पूछा कि आप राजनाथ जी से क्या चाहते हैं, तो उन्होंने कहा, यह मजार टूटी-फूटी पड़ी है, चमत्कारी हो जाए...इसे बनवा दें तो लोग यहां दूर-दूर से भी आया करेंगे। गांव के लोग भी चाहते हैं कि मजार ठीक हो जाए।
राजनाथ सिंह यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, और उनकी छवि भेदभाव करने वाले नेता की नहीं रही है, तो हम यह मान लेते हैं कि यह महज इत्तेफाक है, लेकिन सवाल यह है कि बीजेपी के ज्यादातर सांसदों द्वारा गोद लिए गांवों में यह इत्तेफाक दोहराया जा रहा है।
यूपी की 13 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 30-52 फीसदी तक है। हैरत की बात यह है कि उन सीटों पर भी बीजेपी सांसदों ने जो गांव गोद लिए हैं, उनमें भी मुस्लिम या तो नहीं हैं, या न के बराबर हैं। बहुत कम ऐसे गांव गोद लिए गए हैं, जहां मुस्लिम आबादी नजर आती है।
मिसाल के लिए मुजफ्फरनगर सीट पर मुस्लिम आबादी 37 फीसदी है, लेकिन सांसद संजीव बालियान के रसूलपुर गांव में कोई मुस्लिम नहीं है। रामपुर में 52 फीसदी मुस्लिम हैं, लेकिन मुख्तार अब्बास नकवी के मानपुर ओझा गांव में कोई मुस्लिम नहीं है। कैराना में करीब 39 फीसदी मुस्लिम हैं, लेकिन हुकुम सिंह के सुखेड़ी गांव में कोई नहीं है।
संभल में करीब 46 फीसदी मुस्लिम हैं, लेकिन सांसद सत्यपाल सिंह के लहरावां गांव में सिर्फ 1.33 फीसदी मुसलमान हैं। श्रावस्ती में 32 फीसदी मुस्लिम हैं, लेकिन दद्दन मिश्रा के जयचंदपुर गांव में 2.33 फीसदी मुसलमान हैं। सहारनपुर में 39 फीसदी मुस्लिम हैं, लेकिन राघव लखनपाल के खुशहालीपुर गांव में सिर्फ 3.5 फीसदी मुस्लिम आबादी है।
मेरठ में 31 फीसदी मुसलमान हैं, लेकिन सांसद राजेंद्र अग्रवाल द्वारा गोद लिए भगवानपुर गांव में सिर्फ 3.75 फीसदी मुस्लिम हैं। बीजेपी के दूसरे बड़े नेताओं उमा भारती, कलराज मिश्रा और योगी आदित्नयाथ ने भी ऐसे गांव गोद लिए हैं, जिनमें एक भी मुस्लिम नहीं हैं।
लेकिन बीजेपी इसे महज इत्तेफाक बताती है। यूपी बीजेपी के प्रवक्ता विजय पाठक कहते हैं, आप इसको एक इत्तेफाक भी मान सकते हैं कि स्वाभाविक रूप से राय आई और लॉटरी में जो गांव निकला उसे चयन करना ही था। अब संयोग से उसकी आबादी क्या रही, क्या परिस्थिति रही, वह अलग बात है।
बीजेपी के इस इत्तेफाक पर एक पुराना गाना याद आता है, जिंदगी इत्तेफाक है, कल भी इत्तेफाक थी, आज भी इत्तेफाक है।
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