इम्फाल:
मणिपुर की 'लौह महिला' इरोम शर्मिला ने 16 साल तक चली अपनी भूख हड़ताल को समाप्त कर दिया है. हालांकि इस मुहीम में उनका साथ दे रहे लोगों को इरोम का यह फैसला कुछ हजम नहीं हो रहा है. अस्पताल से छुट्टी लेकर जब वहां से चार किलोमीटर की दूरी पर एक दोस्त के घर वह रहने गईं, तो इलाके के लोगों ने उन्हें अंदर घुसने नहीं दिया. यहां तक की स्थानीय इस्कोन मंदिर ने भी उन्हें आश्रय देने से इंकार कर दिया.
निराश होकर शर्मिला को उसी अस्पताल में वापस आना पड़ा जहां वह पिछले 16 साल से रह रहीं थीं. बुधवार की शाम इंडियन रेड क्रॉस की मणिपुर शाखा ने शर्मिला को अपने यहां तब तक ठहरने का प्रस्ताव दिया जब तक की उन्हें कोई और ठिकाना नहीं मिला जाता. रेड क्रॉस, मणिपुर के अवैतनिक सचिव डॉ वाय मोहन सिंह कहते हैं 'जब मुझे पता चला कि शर्मिला के पास कोई ठिकाना नहीं है तो मुझे बहुत बुरा लगा. हमने इस मुद्दे पर तफ़सील से चर्चा की, क्योंकि इससे कई सामाजिक और सुरक्षा के पहलू जुड़े हुए हैं.' सिंह कहते हैं 'आखिरकार हमने एकमत होकर फैसला लिया कि हमें उन्हें मानवीय आधार पर शरण देनी चाहिए.'
'वह काफी कठोर निकले..'
उधर अस्पताल में शर्मिला हॉर्लिक्स में शहद डालकर पी रही हैं और अपने दिल के दर्द को बयां कर रही हैं. वह कहती हैं 'उन्होंने मेरे इस कदम को गलत तरीके से लिया है. मैंने संघर्ष नहीं छोड़ा है, बस अपना तरीका बदला है. मैं चाहती हूं कि वे मेरे सिर्फ एक वर्ज़न को नहीं, मुझे उससे ज्यादा भी जानें. एक मासूम इंसान को लेकर उनकी प्रतिक्रिया बहुत कठोर रही...वह काफी कठोर निकले.' इसके बाद इरोम कुछ वक्त के लिए चुप हो गईं.
'विरोध को अंजाम तक पहुंचाना था'
डॉ टीएच सुरेश जिन्होंने इरोम को अपने घर ठहरने का प्रस्ताव दिया था कहते हैं 'मुझे बहुत बुरा लगा जब हमने शर्मिला को वापस भेज दिया. लेकिन स्थानीय लोगों को लगा कि उनकी मौजूदगी से सुरक्षा का मसला उठ सकता है क्योंकि उग्रवादियों ने इरोम को धमकी दी है.' लेकिन सुरेश के दफ्तर के बाहर एक युवा छात्र बताते हैं 'इरोम शर्मिला ने अफ्सपा के खिलाफ जंग में हमें निराश किया है इसलिए हम उन्हें यहां नहीं देखना चाहते. उन्होंने एक विरोध शुरू किया था. उन्हें इसे अंजाम तक पहुंचाना चाहिए था.'
वहीं सब्ज़ी मंडी से वापस लौट रही एक महिला जिनकी उम्र तकरीबान शर्मिला जितनी ही थी, कहती हैं 'शर्मिला को अपनी जिंदगी जीने, शादी करने और परिवार बनाने का अधिकार है. लेकिन अफ्सपा के खिलाफ विरोध शुरू करना और फिर उसे बीच रास्ते में ही छोड़ देना...यह नहीं होना चाहिए था.' इम्फाल की सड़कों पर शर्मिला के खिलाफ गुस्सा दिखाई दे रहा है लेकिन सिक्का का दूसरा पहलू भी है. सामाजिक कार्यकर्ता विक्टर ने इरोम का पक्ष लेते हुए कहा 'हम उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी कर रहे हैं. इरोम शर्मिला को अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है.'
निराश होकर शर्मिला को उसी अस्पताल में वापस आना पड़ा जहां वह पिछले 16 साल से रह रहीं थीं. बुधवार की शाम इंडियन रेड क्रॉस की मणिपुर शाखा ने शर्मिला को अपने यहां तब तक ठहरने का प्रस्ताव दिया जब तक की उन्हें कोई और ठिकाना नहीं मिला जाता. रेड क्रॉस, मणिपुर के अवैतनिक सचिव डॉ वाय मोहन सिंह कहते हैं 'जब मुझे पता चला कि शर्मिला के पास कोई ठिकाना नहीं है तो मुझे बहुत बुरा लगा. हमने इस मुद्दे पर तफ़सील से चर्चा की, क्योंकि इससे कई सामाजिक और सुरक्षा के पहलू जुड़े हुए हैं.' सिंह कहते हैं 'आखिरकार हमने एकमत होकर फैसला लिया कि हमें उन्हें मानवीय आधार पर शरण देनी चाहिए.'
'वह काफी कठोर निकले..'
उधर अस्पताल में शर्मिला हॉर्लिक्स में शहद डालकर पी रही हैं और अपने दिल के दर्द को बयां कर रही हैं. वह कहती हैं 'उन्होंने मेरे इस कदम को गलत तरीके से लिया है. मैंने संघर्ष नहीं छोड़ा है, बस अपना तरीका बदला है. मैं चाहती हूं कि वे मेरे सिर्फ एक वर्ज़न को नहीं, मुझे उससे ज्यादा भी जानें. एक मासूम इंसान को लेकर उनकी प्रतिक्रिया बहुत कठोर रही...वह काफी कठोर निकले.' इसके बाद इरोम कुछ वक्त के लिए चुप हो गईं.
'विरोध को अंजाम तक पहुंचाना था'
डॉ टीएच सुरेश जिन्होंने इरोम को अपने घर ठहरने का प्रस्ताव दिया था कहते हैं 'मुझे बहुत बुरा लगा जब हमने शर्मिला को वापस भेज दिया. लेकिन स्थानीय लोगों को लगा कि उनकी मौजूदगी से सुरक्षा का मसला उठ सकता है क्योंकि उग्रवादियों ने इरोम को धमकी दी है.' लेकिन सुरेश के दफ्तर के बाहर एक युवा छात्र बताते हैं 'इरोम शर्मिला ने अफ्सपा के खिलाफ जंग में हमें निराश किया है इसलिए हम उन्हें यहां नहीं देखना चाहते. उन्होंने एक विरोध शुरू किया था. उन्हें इसे अंजाम तक पहुंचाना चाहिए था.'
वहीं सब्ज़ी मंडी से वापस लौट रही एक महिला जिनकी उम्र तकरीबान शर्मिला जितनी ही थी, कहती हैं 'शर्मिला को अपनी जिंदगी जीने, शादी करने और परिवार बनाने का अधिकार है. लेकिन अफ्सपा के खिलाफ विरोध शुरू करना और फिर उसे बीच रास्ते में ही छोड़ देना...यह नहीं होना चाहिए था.' इम्फाल की सड़कों पर शर्मिला के खिलाफ गुस्सा दिखाई दे रहा है लेकिन सिक्का का दूसरा पहलू भी है. सामाजिक कार्यकर्ता विक्टर ने इरोम का पक्ष लेते हुए कहा 'हम उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी कर रहे हैं. इरोम शर्मिला को अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है.'
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