हरिद्वार (Haridwar) की धर्मसंसद (Dharma Sansad) में देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिए गए नफरती भाषणों को एक हफ़्ते से भी ज्यादा वक्त बीत चुका है लेकिन अब तक उत्तराखंड पुलिस ने नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है. खानपूर्ति करने के लिए सिर्फ एक आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. उत्तराखंड के डीजीपी का कहना है कि पुलिस की जांच जारी है. देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरती भाषण देने वाले, देश के संविधान को गलत बताने वाले अब तक खुले घूम रहे हैं. नफरती वीडियो वायरल होने के बाद उत्तराखंड पुलिस ने खानापूर्ति करने के लिए सिर्फ एक आरोपी वसीम रिज़वी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी के ख़िलाफ़ हल्की धारा के तहत मुक़दमा दर्ज़ किया. गिरफ़्तारी तो दूर की बात है उत्तराखंड पुलिस ने जितेंद्र नारायण त्यागी को पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया है, वसीम रिज़वी उर्फ़ जितेंद्र नारायण अब भी नफ़रती बयानबाजी कर रहा है.
वसीम उर्फ जितेंद्र नारायण ने कहा कि ''मेरे खिलाफ जो मुकदमा किया गया है वह कट्टरपंथियों की साजिश है.'' देश और विदेश दोनों से नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई ना करने पर तीखी आलोचना झेल रहे उत्तराखंड पुलिस प्रमुख का कहना है कि जांच जारी है और किसी को बख्शा नहीं जाएगा. लेकिन डीजीपी साहब खुद बता रहे हैं कि किसी को एक हफ्ते बाद भी गिरफ्तार नहीं किया गया है.
उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि, ''इसमें हरिद्वार में मुक़दमा दर्ज किया है. एक अभियुक्त को नामजद किया है, बाकियों को भी विवेचना के बाद शामिल किया जाएगा. अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है.''
सबसे ज़्यादा जहर उगलने वालों के खिलाफ न तो FIR हुई है और न कोई पूछताछ. प्रबोधानंद ने एक बयान में कहा था, “म्यांमार की तरह भारत में हर हिंदू पुलिस, नेता को शस्त्र उठाकर इनकी (मुसलमानों) सफाई करनी चाहिए.“ इस पर कार्रवाई कुछ भी नहीं हुई. यति नरसिंहानंद का बयान था, “मुसलमानों के ख़िलाफ़ आधुनिक हथियारों की ज़रूरत, शस्त्रमेव जयते.” इस पर भी कार्रवाई नहीं हुई.
पुलिस की चुप्पी को लेकर समाज के नामचीन लोग और विपक्षी दल पुलिस पर सवाल उठा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि ''इनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं, क्यों बचा रही है पुलिस, इन पर देशद्रोह की धारा क्यों नहीं लगाई जा रही है.''
सवाल उठ रहे हैं कि जिन लोगों ने नफ़रती भाषण दिए उनके सत्ताधारी दलों से मज़बूत संबंध हैं. क्या यही वजह है कि उत्तराखंड पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही.जो मुक़दमा दर्ज़ किया गया है वो भी धारा 153A, यानी किसी कृत्य से सामाजिक शांति भंग हो या भंग होने की संभावना हो. मुक़दमा दर्ज़ होने के बाद भी नफ़रती भाषण देने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं. कार्रवाई तो दूर की बात है, पुलिस ने अभी तक उन्हें पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया. सवाल यही है कि संविधान को गाली देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करके पुलिस उन्हें शह देने का काम कर रही है.
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