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This Article is From Jan 08, 2020

कैसे दी जाती है फांसी? क्या-क्या किया जाता है फांसी से पहले और उसके बाद

तिहाड़ में फांसी की समूची प्रक्रिया के बारे में NDTV ने 35 साल तक तिहाड़ जेल में लॉ ऑफिसर रहे सुनील गुप्ता से जानकारी हासिल की. गुप्ता तिहाड़ जेल के प्रवक्ता भी रहे हैं और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने आठ अपराधियों को फांसी पर लटकाए जाते देखा भी है.

नई दिल्ली:

वर्ष 2012 के निर्भया केस में सुनवाई अदालत ने सभी चारों दोषियों मुकेश सिंह (32), पवन गुप्ता (25), विनय शर्मा (26) और अक्षय कुमार सिंह (31) के खिलाफ डेथ वॉरंट जारी कर दिया है, और चारों को बुधवार, 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी दे दी जाएगी. किसी भी अपराधी को फांसी कैसे दी जाती है, और फांसी पर लटकाए जाने से पहले क्या-क्या किया जाता है, इसकी समूची प्रक्रिया के बारे में NDTV ने 35 साल तक तिहाड़ जेल में लॉ ऑफिसर रहे सुनील गुप्ता से जानकारी हासिल की. सुनील गुप्ता तिहाड़ जेल के प्रवक्ता भी रहे हैं, और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने आठ अपराधियों को फांसी पर लटकाए जाते देखा भी है.

सुनील गुप्ता ने बताया, "जिस दिन फांसी दी जानी होती है, सुबह 4:30 या 5 बजे के करीब अपराधी को चाय पिलाई जाती है... वे नहाना चाहें, तो नहा भी लेते हैं... नाश्ता करना चाहते हैं, तो नाश्ता भी करवाया जाता है... उसके बाद मजिस्ट्रेट अपराधी के पास जाते हैं... वह एक्ज़ीक्यूटिव मजिस्ट्रेट होते हैं, जो अपराधी से किसी वसीयत आदि के बारे में पूछते हैं, पूछते हैं कि आपको अपनी कोई जायदाद किसी के नाम करनी है, तो कर सकते हैं... अपराधी की वसीयत रिकॉर्ड हो जाने के बाद हैंगमैन पहुंचता है, जो अपराधी को काली पोशाक पहनाता है, उसके हाथ शरीर के पीछे बांध दिए जाते हैं, और उसे फांसी के तख्ते पर लाया जाता है... तख्ते पर जेल सुपरिंटेंडेंट का इशारा होते ही लीवर खींचकर तख्ते को एक वेल में गिरा दिया जाता है... लीवर खींचे जाने के दो घंटे बाद डॉक्टर को यह सुनिश्चित करना होता है कि अपराधी की ज़िन्दगी खत्म हो चुकी है, और फिर पोस्टमॉर्टम भी होता है..."

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तिहाड़ जेल के प्रवक्ता रह चुके सुनील गुप्ता ने बताया कि जिस वक्त किसी अपराधी को फांसी दी जाती है, उस वक्त पूरी जेल को बंद रखा जाता है. नियम के मुताबिक, जब फांसी की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तब जेल को दोबारा खोला जाता है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइनों के तहत फांसी और पोस्टमॉर्टम (अब पोस्टमॉर्टम को अनिवार्य कर दिया गया है) के बाद अपराधी के परिजनों को शव सौंपने की प्रक्रिया के बारे में पूछे जाने पर सुनील गुप्ता ने बताया, "जब लगता है कि बॉडी या अपराधी की बिलॉन्गिंग का मिसयूज़ हो सकता है, तो जेल सुपरिंटेंडेंट को अधिकार है कि वह शव या बिलॉन्गिंग देने से इंकार कर सकता है.

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तिहाड़ जेल के लॉ ऑफिसर रह चुके सुनील गुप्ता से पूछा गया, "फिल्मों में देखा जाता है कि अपराधी से उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है, वह क्या है...?" इसके जवाब में उन्होंने कहा, "आखिरी इच्छा वाली कोई बात नहीं होती... मान लीजिए, अपराधी आखिरी इच्छा के तौर पर कह दे कि उसे फांसी नहीं दी जाए, तो उसकी बात नहीं मानी जा सकती... या कोई भी ऐसी चीज़ मांग ले, जो आप नहीं दे सकते... तो यह भ्रम है, जेल मैनुअल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है...?" सुनील गुप्ता ने फांसी की रस्सी के विशेष होने और उसे बक्सर जेल से मंगाए जाने के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा, "यह रस्सी कुछ लचीली होती है और इसके फाइबर कुछ मज़बूत होते हैं, जिनमें वैक्सिंग भी की गई होती है... इससे फायदा यह है कि जब फांसी दी जाती है, तो अपराधी का टॉर्चर नहीं होता... बक्सर की रस्सी की अपनी विशेषता है, जैसे तिहाड़ के प्रोडक्ट की है... आजकल वैसे भी ज्यादा फांसी होती ही कहां हैं, सो, मुझे नहीं लगता कि उनकी रस्सी ज्यादा मंगाई जाती होगी..."

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