
आज भारत आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पर हर कोई सुभाष चंद्र बोस के योगदान को याद कर रहा है. आज पीएम ने भी लाल किले से दिए भाषण में भी नेताजी का जिक्र किया. इस मौके पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनीता बोस फाफ ने कहा है कि उनके पिता के अवशेषों को भारत वापस लाने का समय आ गया है. इसके साथ ही नेताजी की बेटी ने ये सुझाव दिया है कि डीएनए परीक्षण उन लोगों को जवाब दे सकता है जिन्हें 18 अगस्त, 1945 को उनकी मृत्यु के बारे में अभी भी संदेह है.
जर्मनी में रहनी वाली ऑस्ट्रियाई मूल की अर्थशास्त्री अनीता बोस फाफ ने कहा कि डीएनए परीक्षण से वैज्ञानिक प्रमाण प्राप्त करने का मौका मिलता है. टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में रखे गए अवशेष नेताजी के हैं और जापानी सरकार इस तरह की प्रक्रिया के लिए सहमत हो गई है. एक बयान में, नेताजी की इकलौती संतान ने कहा कि चूंकि उनके पिता आजादी की खुशी का अनुभव करने के लिए जीवित नहीं थे, इसलिए समय आ गया है कि कम से कम उनके अवशेष भारतीय धरती पर लौट सकें.
उन्होंने कहा, "मंदिर के पुजारी और जापानी सरकार इस तरह के परीक्षण के लिए सहमत हुए, जैसा कि नेताजी की मौत (न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग) की अंतिम सरकारी भारतीय जांच के दस्तावेजों में दिखाया गया है," "तो हम अंत में उन्हें घर लाने की तैयारी करें! नेताजी के लिए उनके जीवन में उनके देश की आजादी से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं था. विदेशी शासन से मुक्त भारत में रहने से ज्यादा कुछ भी नहीं था! अब समय आ गया है कि कम से कम उनके अवशेष भारत की धरती पर लौट सकें."
दरअसल नेताजी की मृत्यु आज भी लोगों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं, हालांकि माना ये जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी. जबकि दो जांच आयोगों इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई थी. जबकि न्यायमूर्ति एम के मुखर्जी की अध्यक्षता वाले तीसरे जांच पैनल ने इसका विरोध किया था और ये दावा किया था कि बोस उसके बाद भी जीवित थे.
फाफ ने कहा, "नेताजी की इकलौती संतान के रूप में मैं यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हूं कि उनकी सबसे प्रिय इच्छा, अपने स्वतंत्रत देश में लौटने की, आखिरकार इस रूप में पूरी हो और उन्हें सम्मानित करने के लिए उचित समारोह किया जाएगा." देशवासियों ने उनके समर्पण और उनके बलिदान के लिए उन्हें धन्यवाद दिया. उन्होंने उनके लिए कई स्मारकों का निर्माण किया, इस प्रकार उनकी स्मृति को आज तक जीवित रखा." उन्होंने कहा, "एक और भव्य स्मारक बनाया गया है और 15 अगस्त को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई दिल्ली में एइसका अनावरण किया जा रहा है."
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फाफ ने कहा कि भारत में कुछ पुरुषों और महिलाओं ने नेताजी के प्रति उनकी प्रशंसा और प्रेम से प्रेरित होकर न केवल उन्हें याद किया बल्कि आशा व्यक्त की कि उनकी मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को नहीं हुई थी. "लेकिन आज हमारे पास 1945 और 1946 की मूल रूप से वर्गीकृत पूछताछ तक पहुंच है. वे दिखाते हैं कि नेताजी की मृत्यु उस दिन एक विदेशी देश में हुई थी. जापान ने टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में उनके अवशेषों को एक 'अस्थायी' घर प्रदान किया है, जिनकी देखभाल की जाती है. फाफ ने यह भी कहा कि "सभी भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी, जो अब स्वतंत्रता में रह सकते हैं, मैं आप सभी को अपने भाइयों और बहनों के रूप में सलाम करती हूं! और मैं आपको नेताजी को घर लाने के मेरे प्रयासों का समर्थन करने के लिए आमंत्रित करती हूं!"
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