बेंगलुरु:
शहरी विकास मंत्रालय के ताजे आंकड़ों ने कर्नाटक की सांस्कृतिक राजधानी मैसूर को देश के जाने माने 476 शहरों में सबसे साफ सुथरे शहर का दर्जा दिया है। इस सर्वे में महानगरों को भी शामिल किया गया। वास्तव में मैसूर आज जिस मुकाम पर पहुंचा है वह कुछ वर्षों की बात नहीं बल्कि करीब डेढ़ सौ साल पहले शुरू किए गए प्रयासों का सुफल है।
मैसूर शहर की साफ सफाई में महानगरपालिका की मदद पिछले 15 सालों से कर रहे समाजसेवी डॉ केएस नागापति ने बताया कि साफ सुथरे शहर को परखने का जो पैमाना बनाया गया है उसमें खास है कूड़ा कर्कट यानि वेस्ट डिस्पोजल मैनेजमेंट, पीने के पानी का इंतजाम, गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था, साफ पर्यावरण और प्रदूषित पानी की वजह से बच्चों की मौतों पर नियंत्रण पाना। इन पैमानों को परखने पर मैसूर ने देश के दूसरे शहरों से बाजी मार ली। यह संभव हो सका स्थानीय लोगों की मदद से जिन्होंने सफाई को तरजीह दी।
वाडेयार राजाओं की दूरदृष्टि
मैसूर के इस मुकाम तक पहुंचाने में यहां के वाडेयार राजाओं ने अहम भूमिका निभाई। तकरीबन 150 साल पहले, यानी 1865 के आसपास भी मैसूर की गिनती देश की सबसे प्लांड सिटी के तौर पर होती थी। क्योंकि इसी जमाने में मौजूदा मैसूर की नींव राखी जा रही थी। इसी साल कृष्णाराजा वाडेयार तृतीय ने शहर में पीने के पानी के लिए कावेरी नदी से शहर को वाणी विलास पेयजल प्रोजेक्ट से जोड़ा। फिर इस शहर ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।
चामराजेंद्रा वाडेयार 10 ने सन 1888 में एक समिति बनाई जिसे प्रजा प्रतिनिधि सभा कहा। इसे आप आज की विधानसभा का शुरुआती स्वरूप कह सकते हैं। इसका मकसद जनता की जरूरत को समझना और राजा की बात प्रजा तक सीधे पहुंचाना था। इस सभा के गठन से पहले तक यह काम दीवान, यानी प्रधानमंत्री के जरिए किया जाता था।
सन 1904 से सिटी इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बोर्ड
प्रजा प्रतिनिधि सभा के गठन के बाद मैसूर शहर का बाजार चार हिस्सों में बांट दिया गया, ताकि सफाई व्यवस्थित तरीके से हो सके। प्रजा प्रतिनिधि सभा सन 1904 से सिटी इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बोर्ड के तौर पर जाना जाने लगा। इस बोर्ड के गठन के बाद पीने का पानी, अस्पताल, शौचालय और गंदे पानी को निकालने के लिए नाले का विकास शुरू हो गया। इस सिलसिले ने न सिर्फ मैसूर शहर का विकास किया बल्कि यहां के वाडेयार राजवंश को लोगों के दिलों तक पहुंचा दिया।
आज मैसूर पैलेस के पास सफाई का जायजा लेते समय इस संवाददाता को फ्रांस से आए पर्यटकों का दल मिला। उन्होंने बताया कि वे कुछ दिनों से भारत में हैं और दूसरे शहरों की तुलना में मैसूर को बेहतर पाते हैं। हर साल तकरीबन 70 हजार विदेशी पर्यटक मैसूर शहर और यहां के शाही दशहरे को देखने आते हैं।
मैसूर शहर की साफ सफाई में महानगरपालिका की मदद पिछले 15 सालों से कर रहे समाजसेवी डॉ केएस नागापति ने बताया कि साफ सुथरे शहर को परखने का जो पैमाना बनाया गया है उसमें खास है कूड़ा कर्कट यानि वेस्ट डिस्पोजल मैनेजमेंट, पीने के पानी का इंतजाम, गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था, साफ पर्यावरण और प्रदूषित पानी की वजह से बच्चों की मौतों पर नियंत्रण पाना। इन पैमानों को परखने पर मैसूर ने देश के दूसरे शहरों से बाजी मार ली। यह संभव हो सका स्थानीय लोगों की मदद से जिन्होंने सफाई को तरजीह दी।
मैसूर शहर के दृश्य।
वाडेयार राजाओं की दूरदृष्टि
मैसूर के इस मुकाम तक पहुंचाने में यहां के वाडेयार राजाओं ने अहम भूमिका निभाई। तकरीबन 150 साल पहले, यानी 1865 के आसपास भी मैसूर की गिनती देश की सबसे प्लांड सिटी के तौर पर होती थी। क्योंकि इसी जमाने में मौजूदा मैसूर की नींव राखी जा रही थी। इसी साल कृष्णाराजा वाडेयार तृतीय ने शहर में पीने के पानी के लिए कावेरी नदी से शहर को वाणी विलास पेयजल प्रोजेक्ट से जोड़ा। फिर इस शहर ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।
शासन के साथ जोड़े आम जन
चामराजेंद्रा वाडेयार 10 ने सन 1888 में एक समिति बनाई जिसे प्रजा प्रतिनिधि सभा कहा। इसे आप आज की विधानसभा का शुरुआती स्वरूप कह सकते हैं। इसका मकसद जनता की जरूरत को समझना और राजा की बात प्रजा तक सीधे पहुंचाना था। इस सभा के गठन से पहले तक यह काम दीवान, यानी प्रधानमंत्री के जरिए किया जाता था।
सन 1904 से सिटी इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बोर्ड
प्रजा प्रतिनिधि सभा के गठन के बाद मैसूर शहर का बाजार चार हिस्सों में बांट दिया गया, ताकि सफाई व्यवस्थित तरीके से हो सके। प्रजा प्रतिनिधि सभा सन 1904 से सिटी इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बोर्ड के तौर पर जाना जाने लगा। इस बोर्ड के गठन के बाद पीने का पानी, अस्पताल, शौचालय और गंदे पानी को निकालने के लिए नाले का विकास शुरू हो गया। इस सिलसिले ने न सिर्फ मैसूर शहर का विकास किया बल्कि यहां के वाडेयार राजवंश को लोगों के दिलों तक पहुंचा दिया।
पर्यटकों के दिलों में बस जाता है मैसूर
आज मैसूर पैलेस के पास सफाई का जायजा लेते समय इस संवाददाता को फ्रांस से आए पर्यटकों का दल मिला। उन्होंने बताया कि वे कुछ दिनों से भारत में हैं और दूसरे शहरों की तुलना में मैसूर को बेहतर पाते हैं। हर साल तकरीबन 70 हजार विदेशी पर्यटक मैसूर शहर और यहां के शाही दशहरे को देखने आते हैं।
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