जाट आंदोलन के दौरान पुलिसवाले (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मुरथल में जो हिंसा हुई उसे एक हफ्ते से ज्यादा हो गया है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर पुलिस प्रशासन और केंद्र सरकार एकदम चुप है। पुलिस तर्क दे रही है कि कोई रेप पीड़ित बयान देने सामने नहीं आ रही और केन्द्रीय गृह मंत्रालय चुप इसलिए है कि कानून-व्यवस्था राज्य की जिम्मेदारी है।
सवाल यहां दोनों से यह पूछा जाना चाहिए कि जिस महिला की मदद पुलिस ने उस वक्त नहीं की जब वह मदद के लिए चिल्ला रही थी, अब क्या वह उसी पुलिस पर विश्वास कर पाएगी और उनके सामने आकर बयान दे पाएगी। अगर नहीं तो क्या मुरथल हिंसा को लेकर कोई कार्रवाई नहीं होगी।
वैसे भी माना जा रहा है कि इस घटना में ज्यादातर मुसाफिर महिलाएं थीं, जो अब अपने शहर पहुंच चुकी होंगी। उनमें से कोई भी किस तरह से हरियाणा पुलिस तक पहुंचेगी, तब जब रेप को लेकर अलग तरह की विचारधारा समाज के कई तबकों में देखी जाती है।
उधर, केन्द्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि राज्य पुलिस ने मामले दर्ज करने शुरू कर दिए हैं। अभी तक 60 के करीब मामले दर्ज किए जा चुके हैं। मुरथल को लेकर भी एक मामला दर्ज किया जा चुका है।
हसनपुर गांव की एक महिला का कहना है कि उसने दो बच्चों के साथ एक महिला को जाते हुए देखा था। महिला मदद के लिए चिल्ला रही थी। उसके बदन पर कोई कपड़ा नहीं था, लेकिन डर के मारे कोई उसकी मदद के लिए सामने नहीं आया।
केंद्रीय गृहमंत्रालय का कहना है कि इस तरह मामलों को संजीदगी से देखा जा रहा है और अगर राज्य पुलिस जल्द इन मामलों की तह तक नहीं जा पाएगी तो केंद्र निश्चित तौर पर कार्रवाई करेगा।
एक सीनियर अफसर ने एनडीटीवी से कहा, अगर महिलाओं को पुलिस पर विश्वास नहीं तो वह किसी भी कोर्ट के सामने जा सकती हैं, लेकिन एक हफ्ता बीत चुका है और जैसे-जैसे समय बीतता चला जाएगा मामला धुंधला होता चला जाएगा।
दरअसल, इस तरह के मामलों में जल्द से जल्द करवाई की जरूरत होती है ताकि उपद्रवियों को कड़ा संदेश दिया जा सके। अगर जवाबदेही जल्द तय की जाएगी तो ही जनता दोबारा खाकी वर्दी और प्रशासन पर विश्वास कर पाएगी।
कार्रवाई के नाम पर सिर्फ निचले स्तर के मुलाजिम ही नहीं ऊपर के लोगों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। अगर अफसरों को बर्खास्त करने की ज़रूरत हो तो राज्य और केंद्र सरकार को हिचकना नहीं चाहिए क्योंकि कानून व्यवस्था हरियाणा में एकदम खत्म हो गई लगती है।
केंद्र अपना पल्ला यह कहकर झाड़ नहीं सकता कि उसने केंद्रीय बल भेज दिए थे, लेकिन अगर हर आंदोलन में केन्द्रीय बलों को जाकर ही कार्रवाई करनी है तो फिर लोकल पुलिस की जरूरत क्या है। क्यों उनको हजारों करोड़ बजट दिया जाना चाहिए। इसका जवाब भी जनता को मिलना चाहिए।
यही नहीं इतने दिनों से हरियाणा में जगह-जगह आंदोलन हो रहे थे तो क्या स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो ने कोई रिपोर्ट केंद्र को नहीं भेजी। इसका भी पता लगना चाहिए। वैसे हमारे देश में सबसे कम जवाबदेही अगर किसी विभाग की है तो वह इंटेलिजेंस ब्यूरो की है।
केंद्र सरकार जो 19 फरवरी को हरकत में आई और अपने सुरक्षा बल हरियाणा में भेजने लगी उसके बाद भी इस तरह का हादसा कैसे हुआ, इस पर भी जवाब मिलना चाहिए।
देश के गृहमंत्री के घर पर बैठकें हुईं, फ़ैसले लिए गए कि प्रशासन को सख्ती दिखाने की ज़रूरत है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक हरियाणा सरकार मुरथल पर कोई करवाई नहीं कर पाई है। गृह मंत्रालय की तरफ से एक कड़ा राजनीतिक संदेश दिया जाना भी ज़रूरी है।
वैसे बीजेपी हमेशा जंगल राज की दुहाई देती रहती है, खासकर बिहार को लेकर, लेकिन दिल्ली की सीमा से 48 किलोमीटर दूर जो जंगल राज का नमूना हमें देखने को मिला इस बारे में क्यों कुछ नहीं कह रही।
सवाल यहां दोनों से यह पूछा जाना चाहिए कि जिस महिला की मदद पुलिस ने उस वक्त नहीं की जब वह मदद के लिए चिल्ला रही थी, अब क्या वह उसी पुलिस पर विश्वास कर पाएगी और उनके सामने आकर बयान दे पाएगी। अगर नहीं तो क्या मुरथल हिंसा को लेकर कोई कार्रवाई नहीं होगी।
वैसे भी माना जा रहा है कि इस घटना में ज्यादातर मुसाफिर महिलाएं थीं, जो अब अपने शहर पहुंच चुकी होंगी। उनमें से कोई भी किस तरह से हरियाणा पुलिस तक पहुंचेगी, तब जब रेप को लेकर अलग तरह की विचारधारा समाज के कई तबकों में देखी जाती है।
उधर, केन्द्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि राज्य पुलिस ने मामले दर्ज करने शुरू कर दिए हैं। अभी तक 60 के करीब मामले दर्ज किए जा चुके हैं। मुरथल को लेकर भी एक मामला दर्ज किया जा चुका है।
हसनपुर गांव की एक महिला का कहना है कि उसने दो बच्चों के साथ एक महिला को जाते हुए देखा था। महिला मदद के लिए चिल्ला रही थी। उसके बदन पर कोई कपड़ा नहीं था, लेकिन डर के मारे कोई उसकी मदद के लिए सामने नहीं आया।
केंद्रीय गृहमंत्रालय का कहना है कि इस तरह मामलों को संजीदगी से देखा जा रहा है और अगर राज्य पुलिस जल्द इन मामलों की तह तक नहीं जा पाएगी तो केंद्र निश्चित तौर पर कार्रवाई करेगा।
एक सीनियर अफसर ने एनडीटीवी से कहा, अगर महिलाओं को पुलिस पर विश्वास नहीं तो वह किसी भी कोर्ट के सामने जा सकती हैं, लेकिन एक हफ्ता बीत चुका है और जैसे-जैसे समय बीतता चला जाएगा मामला धुंधला होता चला जाएगा।
दरअसल, इस तरह के मामलों में जल्द से जल्द करवाई की जरूरत होती है ताकि उपद्रवियों को कड़ा संदेश दिया जा सके। अगर जवाबदेही जल्द तय की जाएगी तो ही जनता दोबारा खाकी वर्दी और प्रशासन पर विश्वास कर पाएगी।
कार्रवाई के नाम पर सिर्फ निचले स्तर के मुलाजिम ही नहीं ऊपर के लोगों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। अगर अफसरों को बर्खास्त करने की ज़रूरत हो तो राज्य और केंद्र सरकार को हिचकना नहीं चाहिए क्योंकि कानून व्यवस्था हरियाणा में एकदम खत्म हो गई लगती है।
केंद्र अपना पल्ला यह कहकर झाड़ नहीं सकता कि उसने केंद्रीय बल भेज दिए थे, लेकिन अगर हर आंदोलन में केन्द्रीय बलों को जाकर ही कार्रवाई करनी है तो फिर लोकल पुलिस की जरूरत क्या है। क्यों उनको हजारों करोड़ बजट दिया जाना चाहिए। इसका जवाब भी जनता को मिलना चाहिए।
यही नहीं इतने दिनों से हरियाणा में जगह-जगह आंदोलन हो रहे थे तो क्या स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो ने कोई रिपोर्ट केंद्र को नहीं भेजी। इसका भी पता लगना चाहिए। वैसे हमारे देश में सबसे कम जवाबदेही अगर किसी विभाग की है तो वह इंटेलिजेंस ब्यूरो की है।
केंद्र सरकार जो 19 फरवरी को हरकत में आई और अपने सुरक्षा बल हरियाणा में भेजने लगी उसके बाद भी इस तरह का हादसा कैसे हुआ, इस पर भी जवाब मिलना चाहिए।
देश के गृहमंत्री के घर पर बैठकें हुईं, फ़ैसले लिए गए कि प्रशासन को सख्ती दिखाने की ज़रूरत है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक हरियाणा सरकार मुरथल पर कोई करवाई नहीं कर पाई है। गृह मंत्रालय की तरफ से एक कड़ा राजनीतिक संदेश दिया जाना भी ज़रूरी है।
वैसे बीजेपी हमेशा जंगल राज की दुहाई देती रहती है, खासकर बिहार को लेकर, लेकिन दिल्ली की सीमा से 48 किलोमीटर दूर जो जंगल राज का नमूना हमें देखने को मिला इस बारे में क्यों कुछ नहीं कह रही।
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