फाइल फोटो
लखनऊ:
क्या मुलायम सिंह यादव बिहार में हुए महागठबंधन को तोड़ देंगे? ये सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि मुलायम सिंह यादव बिहार में समाजवादी पार्टी को मिली 5 सीटों से नाराज़ हैं और उनकी पार्टी के कई नेता मुलायम सिंह यादव पर गठबंधन तोड़ने का दबाव बना रहे हैं। लेकिन मुलायम सिंह यादव की दुविधा ये भी है कि कहीं उनके इस कदम से ये संदेश न चला जाए कि वो बीजेपी को फ़ायदा पहुंचाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे। इस मुद्दे पर आख़िरी फ़ैसला 8 या 9 तारीख़ को पार्टी की संसदीय मीटिंग में हो सकता है।
पहले दो दिल मिले फिर दो खानदान। मुलायम के पोते की मुहब्बत लालू की बेटी से हो गई। दोनों शादी के बंधन में बंधे और नतीजे में दोनों खानदान एक खानदान हो गए। लेकिन मुहब्बत और सियासत में फर्क है ना। मुहब्बत की बैलेंसशीट भले ना बनती हो लेकिन सियासत तो नफा नुकसान देखकर होती है। इसलिए बिहार चुनाव में सिर्फ 5 सीटें मिलने से मुलायम खफा हैं। हालांकि शादी के वक्त वो उसे जनम-जनम का साथ बता रहे थे।
नाराज मुलायम लालू-नीतीश और सोनिया की महारैली में भी नहीं पहुंचे। लालू के मनाने पर छोटे भाई शिवपाल को भेज दिया। ये महागठबंधन शिवपाल की ही राजनीति का नतीजा है। भले बिहार में मुलायम और यूपी में लालू-नीतीश बड़ी ताकत ना हों लेकिन राष्ट्रीय स्तर ये बड़ा गठबंधन दिखता है और बिहार चुनाव एक बड़ी ताकत नजर आता है। सपा के कुछ नेता चाहते हैं कि मुलायम गठबंधन तोड़ लें लेकिन मुलायम से रिश्ते को लालू सीमेंट का जोड़ बता चुके हैं।
इसके पहले मुलायम के भाई शिवपाल ने 6 समाजवादी दलों समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल, सेकुलर/नेशनल लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी का विलय कर राष्ट्रीय स्तर पर एक पार्टी बनाने की कोशिश शुरू की थी, लेकिन मुहिम कामयाब नहीं हुई। उसके बाद ये चुनावी गठबंधन बना। समाजवादी पार्टी में एक वर्ग का मानना है कि अगर मुलायम गठबंधन से अलग हुए तो ये लग सकता है कि ऐसा उन्होंने बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए किया है, जिसका यूपी में उसे खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
यूपी के कैबिनेट मंत्री और मुलायम के भाई शिवपाल यादव ने कहा, 'देखिए हम सब लोग इकट्ठा होकर जो ये भाजपा है, इनको हमलोग बेनकाब करेंगे, जो झूठ बोल कर के जनता को गुमराह किया है। तो हमलोग एक होकर रहेंगे।
बिहार में समाजवादी पार्टी उतनी ही मजबूत है जितनी यूपी में आरजेडी या जेडीयू। हालांकि नजरिये की लड़ाई में गठबंधन का महत्व है। लेकिन गठबंधन तोड़ने से लालू-नीतीश को जितना नुकसान होगा, शायद मुलायम को उससे ज्यादा हो। लेकिन होगा क्या ये 8-9 सितंबर तक ही पता चल पाएगा।
पहले दो दिल मिले फिर दो खानदान। मुलायम के पोते की मुहब्बत लालू की बेटी से हो गई। दोनों शादी के बंधन में बंधे और नतीजे में दोनों खानदान एक खानदान हो गए। लेकिन मुहब्बत और सियासत में फर्क है ना। मुहब्बत की बैलेंसशीट भले ना बनती हो लेकिन सियासत तो नफा नुकसान देखकर होती है। इसलिए बिहार चुनाव में सिर्फ 5 सीटें मिलने से मुलायम खफा हैं। हालांकि शादी के वक्त वो उसे जनम-जनम का साथ बता रहे थे।
नाराज मुलायम लालू-नीतीश और सोनिया की महारैली में भी नहीं पहुंचे। लालू के मनाने पर छोटे भाई शिवपाल को भेज दिया। ये महागठबंधन शिवपाल की ही राजनीति का नतीजा है। भले बिहार में मुलायम और यूपी में लालू-नीतीश बड़ी ताकत ना हों लेकिन राष्ट्रीय स्तर ये बड़ा गठबंधन दिखता है और बिहार चुनाव एक बड़ी ताकत नजर आता है। सपा के कुछ नेता चाहते हैं कि मुलायम गठबंधन तोड़ लें लेकिन मुलायम से रिश्ते को लालू सीमेंट का जोड़ बता चुके हैं।
इसके पहले मुलायम के भाई शिवपाल ने 6 समाजवादी दलों समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल, सेकुलर/नेशनल लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी का विलय कर राष्ट्रीय स्तर पर एक पार्टी बनाने की कोशिश शुरू की थी, लेकिन मुहिम कामयाब नहीं हुई। उसके बाद ये चुनावी गठबंधन बना। समाजवादी पार्टी में एक वर्ग का मानना है कि अगर मुलायम गठबंधन से अलग हुए तो ये लग सकता है कि ऐसा उन्होंने बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए किया है, जिसका यूपी में उसे खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
यूपी के कैबिनेट मंत्री और मुलायम के भाई शिवपाल यादव ने कहा, 'देखिए हम सब लोग इकट्ठा होकर जो ये भाजपा है, इनको हमलोग बेनकाब करेंगे, जो झूठ बोल कर के जनता को गुमराह किया है। तो हमलोग एक होकर रहेंगे।
बिहार में समाजवादी पार्टी उतनी ही मजबूत है जितनी यूपी में आरजेडी या जेडीयू। हालांकि नजरिये की लड़ाई में गठबंधन का महत्व है। लेकिन गठबंधन तोड़ने से लालू-नीतीश को जितना नुकसान होगा, शायद मुलायम को उससे ज्यादा हो। लेकिन होगा क्या ये 8-9 सितंबर तक ही पता चल पाएगा।
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