फाइल फोटो
नई दिल्ली:
आजकल सांसद दूसरों से सब्सिडी छोड़ने की अपील करते दिखते हैं। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी एक रैली के दौरान समर्थ लोगों से गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी, लेकिन संसद कैंटीन में बाजार से कई गुना सस्ता खाने की सुविधा लेने वाले खुद सब्सिडी क्यों नहीं छोड़ते, यह सवाल एक आरटीआई से मिली सूचना के बाद उठने लगा है।
आरटीआई के तहत मिले एक जवाब के अनुसार, संसद परिसर में स्थित कैंटीनों को पिछले पांच साल के दौरान 60.7 करोड़ रुपये की कुल सब्सिडी दी गई और पूड़ी-सब्जी जैसी चीजें 88 प्रतिशत सब्सिडी पर बेची जा रही हैं।
सूचना का अधिकार कानून के तहत मिली सूची से खुलासा होता है कि भत्तों के साथ 1.4 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी वाले सांसदों के लिए स्वादिष्ट ‘फ्राइड फिश’ और चिप्स 25 रुपये में, मटन कटलेट 18 रुपये में, सब्जियां पांच रुपये में, मटन करी 20 रुपये में और मसाला डोसा छह रुपये में उपलब्ध हैं। इनकी कीमतों में क्रमश: 63 प्रतिशत, 65 प्रतिशत, 83 प्रतिशत, 67 प्रतिशत और 75 प्रतिशत की सब्सिडी है।
सब्जियों जैसे कई खाद्य पदार्थों के लिए कच्चा सामान जहां 41.25 रुपये में मिलता है, लेकिन सांसदों के लिए यह चार रुपये में उपलब्ध है और इस पर करीब 90 प्रतिशत सब्सिडी है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को मिले जवाब के अनुसार, मांसाहारी व्यंजनों के लिए कच्चा सामान 99.05 रुपये में खरीदा जाता है, जबकि सांसदों को वह 66 प्रतिशत सब्सिडी के साथ 33 रुपये में परोसा जाता है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि खाने की मौजूदा दरें 20 दिसंबर 2010 के बाद से संशोधित नहीं की गई हैं। संसद की कैंटीनों में पापड़ एक रुपये में मिलता है, जबकि इस पर 1.98 रुपये का खर्च आता है।
आरटीआई जवाब के अनुसार, संसद की कैंटीनों में 76 लजीज व्यंजन परोसे जाते हैं, जिनमें उबले अंडों से लेकर मटन और चिकन तक के व्यंजन भी शामिल हैं। इन पर 63 प्रतिशत से लेकर 150 प्रतिशत से ज्यादा तक की सब्सिडी दी जाती है। इसमें कहा गया है कि रोटी एकमात्र ऐसी चीज है, जो मुनाफे में बेची जाती है। रोटी के लिए कच्चा सामान 77 पैसे में आता है, जबकि इसे एक रुपये में बेचा जाता है। ‘खोमानी का मीठा’ को बाजार भाव यानी 15 रुपये में तीन की दर से बेचा जाता है।
उत्तर रेलवे द्वारा संचालित इन कैंटीनों के लिए कच्चा सामान सरकार द्वारा चलाई जा रही एजेंसियों से खरीदा जाता है। इनमें केंद्रीय भंडार, मदर डेरी और डीएमएस आदि शामिल हैं।
आरटीआई जवाब में कहा गया है कि 2009-10 में 10.4 करोड़ रुपये और 2010-11 में 11.7 करोड रुपये की सब्सिडी दी गई। इसके अलावा 2011-12 में 11.9 करोड़ रुपये, 2012-13 में 12.5 करोड़ रुपये और 2013-14 में 14 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई। इस प्रकार कुल 60.7 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
संसद भवन परिसर में चार कैंटीनें हैं। इनमें से एक संसद भवन इमारत में है, जबकि एक संसद भवन एनेक्सी में, एक संसद भवन के स्वागत कक्ष में और एक संसद भवन लाइब्रेरी में है। सभी कैंटीन उत्तर रेलवे द्वारा संचालित हैं और हर कैंटीन में खाने की चीजों की कीमतें एक हैं।
कैंटीन के लिए राशि लोकसभा के बजटीय अनुदान से मिलती है। संसद भवन परिसर में खाद्य प्रबंधन की संयुक्त समिति रोजमर्रा की गतिविधियों पर नजर रखती है।
आरटीआई के तहत मिले एक जवाब के अनुसार, संसद परिसर में स्थित कैंटीनों को पिछले पांच साल के दौरान 60.7 करोड़ रुपये की कुल सब्सिडी दी गई और पूड़ी-सब्जी जैसी चीजें 88 प्रतिशत सब्सिडी पर बेची जा रही हैं।
सूचना का अधिकार कानून के तहत मिली सूची से खुलासा होता है कि भत्तों के साथ 1.4 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी वाले सांसदों के लिए स्वादिष्ट ‘फ्राइड फिश’ और चिप्स 25 रुपये में, मटन कटलेट 18 रुपये में, सब्जियां पांच रुपये में, मटन करी 20 रुपये में और मसाला डोसा छह रुपये में उपलब्ध हैं। इनकी कीमतों में क्रमश: 63 प्रतिशत, 65 प्रतिशत, 83 प्रतिशत, 67 प्रतिशत और 75 प्रतिशत की सब्सिडी है।
सब्जियों जैसे कई खाद्य पदार्थों के लिए कच्चा सामान जहां 41.25 रुपये में मिलता है, लेकिन सांसदों के लिए यह चार रुपये में उपलब्ध है और इस पर करीब 90 प्रतिशत सब्सिडी है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को मिले जवाब के अनुसार, मांसाहारी व्यंजनों के लिए कच्चा सामान 99.05 रुपये में खरीदा जाता है, जबकि सांसदों को वह 66 प्रतिशत सब्सिडी के साथ 33 रुपये में परोसा जाता है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि खाने की मौजूदा दरें 20 दिसंबर 2010 के बाद से संशोधित नहीं की गई हैं। संसद की कैंटीनों में पापड़ एक रुपये में मिलता है, जबकि इस पर 1.98 रुपये का खर्च आता है।
आरटीआई जवाब के अनुसार, संसद की कैंटीनों में 76 लजीज व्यंजन परोसे जाते हैं, जिनमें उबले अंडों से लेकर मटन और चिकन तक के व्यंजन भी शामिल हैं। इन पर 63 प्रतिशत से लेकर 150 प्रतिशत से ज्यादा तक की सब्सिडी दी जाती है। इसमें कहा गया है कि रोटी एकमात्र ऐसी चीज है, जो मुनाफे में बेची जाती है। रोटी के लिए कच्चा सामान 77 पैसे में आता है, जबकि इसे एक रुपये में बेचा जाता है। ‘खोमानी का मीठा’ को बाजार भाव यानी 15 रुपये में तीन की दर से बेचा जाता है।
उत्तर रेलवे द्वारा संचालित इन कैंटीनों के लिए कच्चा सामान सरकार द्वारा चलाई जा रही एजेंसियों से खरीदा जाता है। इनमें केंद्रीय भंडार, मदर डेरी और डीएमएस आदि शामिल हैं।
आरटीआई जवाब में कहा गया है कि 2009-10 में 10.4 करोड़ रुपये और 2010-11 में 11.7 करोड रुपये की सब्सिडी दी गई। इसके अलावा 2011-12 में 11.9 करोड़ रुपये, 2012-13 में 12.5 करोड़ रुपये और 2013-14 में 14 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई। इस प्रकार कुल 60.7 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई।
संसद भवन परिसर में चार कैंटीनें हैं। इनमें से एक संसद भवन इमारत में है, जबकि एक संसद भवन एनेक्सी में, एक संसद भवन के स्वागत कक्ष में और एक संसद भवन लाइब्रेरी में है। सभी कैंटीन उत्तर रेलवे द्वारा संचालित हैं और हर कैंटीन में खाने की चीजों की कीमतें एक हैं।
कैंटीन के लिए राशि लोकसभा के बजटीय अनुदान से मिलती है। संसद भवन परिसर में खाद्य प्रबंधन की संयुक्त समिति रोजमर्रा की गतिविधियों पर नजर रखती है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं