
- ग्रेटर नोएडा में एक मां ने मानसिक रूप से विक्षिप्त बेटे के साथ 13वीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली.
- महाराष्ट्र के वसई में एक बुजुर्ग ने बीमार पत्नी की हत्या कर खुद भी आत्महत्या की कोशिश की, दोनों बीमार थे.
- युवराज सिंह और मनीषा कोईराला जैसी हस्तियां कैंसर जैसी बीमारियों को हराकर जिंदगी की जंग जीत चुकी हैं.
यारों उठो चलो भागो दौड़ो, मरने से पहले जीना ना छोड़ो यारो... राजेश खन्ना की अवतार फिल्म का ये गाना आज भी प्रेरणा देता है कि हमें चलना है, हारकर रुकना नहीं है... नोएडा में एक मां ने खुद को हारा हुआ महूसस किया और अपने मानसिक रूप से विक्षिप्त बेटे के साथ बिल्डिंग की 13वीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली. एक मामला महाराष्ट्र से है जहां 81 साल के बुजुर्ग ने अपनी लंबे समय से बीमार पत्नी का चाकू से गला काट दिया और खुद भी सुसाइड की कोशिश की. एक तरफ वो मां जो अपने बेटे की लंबी उम्र की दुआ मांग रही थी, लगातार इलाज करवा रही थी कि उसका बेटा ठीक हो जाए, दूसरे केस में वो पति जो ताउम्र अपनी पत्नी को प्रेम देता रहा, बीमार हुई तो सेवा करता रहा... और आखिर में ये कदम उठा लिया. दोनों ही मामलों में बीमारी की बेबसी थी. उन लोगों की जान ली गई जो उनके सबसे करीब थे और जिनसे वो सबसे ज्यादा प्रेम करते थे. इतना ही उनके बिना न खुद जीना चाहते थे और न उन्हें अपने बगैर जीने के लिए छोड़ने के लिए वो तैयार नहीं थे कि कहीं हमारे जाने के बाद उनकी दुर्गति न हो जाए. ऐसे में इतना खौफनाक कदम उठा लिया, जो खबरों की सुर्खिया बना, बहुत से लोगों ने पढ़ा होगा, बहुतों ने दुख भी जताया होगा, लेकिन घर परिवार के वो लोग जो इनके साथ थे, इनकी खामोश चीख को नहीं सुन पाए, जो इस कदम को उठाने से पहले उन्होंने कई बार मारी होगी.
ग्रेटर नोएडा में एक मां अपने बेटे के साथ 13वीं मंजिल से कूद गई
ताजा घटना की बात करें तो ग्रेटर नोएडा की सोसाइटी में रहने वाली एक महिला ने अपने 11 साल के बेटे के साथ 13वीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली. साक्षी चावला ने अपने बेटे दक्ष चावला के साथ सुसाइड किया. साक्षी ने अपने पति के लिए सुसाइड नोट भी छोड़ा. इस नोट में साक्षी ने पति को सॉरी लिखा है और लिखा है कि हम दोनों आपको और टेंशन नहीं देना चाहते और ये दुनिया छोड़कर जा रहे हैं. हमारी मौत के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है. पुलिस के मुताबिक- जिस बच्चे की घटना में मौत हुई है वह मानसिक रूप से विक्षिप्त था और मां को बेटे के लिए चिंता रहती थी. पति दर्पण चावला पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. वह उस समय घर पर ही थे. पुलिस को उन्होंने बताया कि वह दूसरे कमरे में ही थे. उन्होंने एक चीख सुनी और बालकनी में पहुंचकर देखा तो पत्नी और बेटा जमीन पर पड़े हैं. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इस हादसे ने पड़ोसियों को भी झकझोर कर रख दिया है. शुरुआती जांच में बताया जा रहा है कि सुसाइड का मुख्य कारण भी बच्चे की मानसिक हालत ही थी. पुलिस फिलहाल पूरे मामले की जांच कर रही है.
81 साल के बुजुर्ग ने गंभीर रूप से बीमार 74 साल की पत्नी का गला काटा, की सुसाइड की कोशिश
दूसरा मामला मुंबई के वसई का है, जहां 81 साल के बुजुर्ग ने अपनी 74 साल की बीवी की गला काटकर हत्या कर दी और फिर खुद भी सुसाइड की कोशिश की. पति और पत्नी दोनों ही गर्दन, पीठ और घुटने की बीमारियों से पीड़ित बताए जा रहे हैं. रात करीब 8.30 बजे ग्रैबियल परेरा ने अपनी पत्नी आर्टिना परेरा पर रसोई के चाकू से कई बार हमला करके उनकी हत्या कर दी थी, इसके बाद उसी चाकू से अपनी कलाई की नसें काटकर आत्महत्या की कोशिश की. परेरा को गंभीर रूप से घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया था. घटना के समय बेटा घर से बाहर गया हुआ था. घर अंदर से बंद होने के कारण उसने दरवाजा तोड़ा और मां को खून से लथपथ मृत पाया. बेटे ने इसके बाद तुरंत पुलिस को सूचना दी. सोचिए वो पति और पत्नी जिन्होंने साथ में एक रिश्ता जिया होगा, उम्र के इस पड़ाव तक एक-दूसरे को संभाला होगा, बीमारी में साथ दिया होगा. इसके पीछे भी बीमार होने की बेबसी और दर्द, जिसने दोनों को कितना मजबूर महसूस कराया होगा, लेकिन क्या सुसाइड ही इस समस्या का हल था. यदि इस जोड़े को परिवार या समाज का साथ मिला होता, प्रेम मिला होता तो उन्हें क्या ये भयानक कदम उठाना पड़ता. उन्हें कोई सहारा दिखता कि हमें ये संभाल लेंगे तो क्या वे ये कदम उठाते.

खैर दोनों की घटनाओं में शुरुआती जांच में सुसाइड के पीछे जो वजह दिख रही है वो है बीमारी की बेबसी.. लेकिन क्या बीमारी या दिव्यांगता से आगे जिंदगी नहीं जी जा सकती? समाज में कितने ही लोग जो बड़ी बीमारियों से ग्रसित हैं और हिम्मत से जी रहे हैं. यदि हिम्मत और हौंसला हो तो इंसान हर लड़ाई लड़ सकता है.
इरा सिंघल ने दिव्यांग्ता को मात देकर पूरा किया अपना सपना
अब इरा सिंघल को ही लीजिए, जिन्होंने देश की सबसे कठिन मानी जानी वाली परीक्षाओं में से एक यूपीएससी परीक्षा में टॉप किया. उन्होंने दिव्यांगता को मात देकर अपना लक्ष्य हासिल किया. वह शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद सामान्य श्रेणी में टॉप करने वाली देश की पहली प्रतिभागी हैं. इरा का जन्म मेरठ में हुआ था, लेकिन बाद में उनका परिवार दिल्ली में शिफ्ट हो गया था. वह बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी. इरा का डीएम बनने का बचपन का सपना था. इरा ने हार नहीं मानी और आईएएस बनने का सपना पूरा किया.
पैरालंपिक खिलाड़ी अजीत सिंह यादव का जीवन भी है प्रेरणा
अर्जुन अवार्ड विना पैरालिंपियन खिलाड़ी अजीत सिंह यादव का जीवन भी प्रेरणा है. उन्होंने इटावा जिले के छोटे से गांव से निकलकर दुनिया में देश का नाम रोशन किया. उन्होंने रेल दुर्घटना में दोस्त की जान बचाने के प्रयास में अपना बायां हाथ खो दिया था. अजीत जैवलिन थ्रो की खूब प्रैक्टिस की और बीजिंग पैरा एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल किया और इसके बाद दुबई वर्ल्ड पैरा एथलीट चौंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक हासिल किया. आज बहुत से लोग उनसे प्ररेणा ले रहे हैं.
इसके साथ ही युवराज सिंह, संजय दत्त से लेकर मनीष कोइराला तक न जाने कितने ही लोग हैं, जिन्होंने कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लड़कर जंग जीती. पैरालंपिक खेलों पर नजर डाल लें, जहां दिव्यांगता और शारीरिक अक्षमता के बावजूद खिलाड़ी देश के लिए गोल्ड और सिल्वर मेडल ला रहे हैं तो जीवन हारने का नहीं, लड़ने का नाम है.... जीवन में तकलीफें और परेशानियां तो आएंगी, लेकिन हमें लड़ना है और जीतना है... सुसाइड तो सोचना भी नहीं है. धरती पर जन्म मिला है तो तकलीफें भी आएंगी, बीमारी भी आएगी, हिम्मत से पार करना है...
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