नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों के अंबार की समस्या से निपटने के लिए न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने और देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए और उपाय किए जाने का आह्वान किया।
मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को आबादी के अनुपात में न्यायाधीशों की संख्या को अपर्याप्त बताते हुए राज्यों से इस दिशा में पहल करने का आग्रह किया ताकि देशभर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा लंबित मामलों का जल्द निपटारा हो सके। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हर दस लाख लोगों पर 15.5 न्यायाधीश हैं। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिल्ली में हुए क्रूरतापूर्ण सामूहिक दुष्कर्म के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित कानून में संशोधन लाने के लिए सरकार ने तेजी से काम किया, लेकिन साथ ही यह भी माना कि इस दिशा में अभी और बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
सिंह ने कहा, "हम मुकदमों की संख्या कम करने और सुनवाई की गति बढ़ाने की चुनौती का सामना कर रहे हैं तथा इसकी अनिवार्यता के प्रति मैं सजग हूं। वर्तमान में देशभर की विभिन्न अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं और इनमें से 26 प्रतिशत तो पांच वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि 14,249 जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) क्षमता समेत अदालतों में निवेश में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
सभी अदालतों को आपस में जोड़ने वाला एक राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण परिणाम है और यह देशभर में लंबित मुकदमों की वास्तविक जानकारी मुहैया कराने का अनोखा मंच होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दिल्ली में 16 दिसंबर को चलती बस में 23 साल की युवती के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद देशभर में जबर्दस्त गुस्सा देखा गया। इस घटना ने दुष्कर्म विरोधी कानून और न्यायिक तंत्र में तुरंत हस्तक्षेप की बाध्यता पैदा की, लेकिन हमें अपने कानूनी ढांचे में दिखाई देने वाली कमियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने से संबंधित कानूनों में संशोधन के लिए तेजी से कदम उठाए, लेकिन इस दिशा में और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित करने के लिए न्यायपालिका को धन्यवाद दिया। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जो कदम उठाए गए हैं, उसके अलावा महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए और भी कदम उठाए जाने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि न्यायपालिका में सुधार मौजूदा समय की 'नई आवश्यकता' है। राजनीतिक मतभेदों के बीच कानून के मौलिक सिद्धांतों एवं प्राकृतिक न्याय को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को आबादी के अनुपात में न्यायाधीशों की संख्या को अपर्याप्त बताते हुए राज्यों से इस दिशा में पहल करने का आग्रह किया ताकि देशभर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा लंबित मामलों का जल्द निपटारा हो सके। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हर दस लाख लोगों पर 15.5 न्यायाधीश हैं। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिल्ली में हुए क्रूरतापूर्ण सामूहिक दुष्कर्म के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित कानून में संशोधन लाने के लिए सरकार ने तेजी से काम किया, लेकिन साथ ही यह भी माना कि इस दिशा में अभी और बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
सिंह ने कहा, "हम मुकदमों की संख्या कम करने और सुनवाई की गति बढ़ाने की चुनौती का सामना कर रहे हैं तथा इसकी अनिवार्यता के प्रति मैं सजग हूं। वर्तमान में देशभर की विभिन्न अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं और इनमें से 26 प्रतिशत तो पांच वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि 14,249 जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) क्षमता समेत अदालतों में निवेश में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।
सभी अदालतों को आपस में जोड़ने वाला एक राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण परिणाम है और यह देशभर में लंबित मुकदमों की वास्तविक जानकारी मुहैया कराने का अनोखा मंच होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दिल्ली में 16 दिसंबर को चलती बस में 23 साल की युवती के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद देशभर में जबर्दस्त गुस्सा देखा गया। इस घटना ने दुष्कर्म विरोधी कानून और न्यायिक तंत्र में तुरंत हस्तक्षेप की बाध्यता पैदा की, लेकिन हमें अपने कानूनी ढांचे में दिखाई देने वाली कमियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने से संबंधित कानूनों में संशोधन के लिए तेजी से कदम उठाए, लेकिन इस दिशा में और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित करने के लिए न्यायपालिका को धन्यवाद दिया। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जो कदम उठाए गए हैं, उसके अलावा महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए और भी कदम उठाए जाने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि न्यायपालिका में सुधार मौजूदा समय की 'नई आवश्यकता' है। राजनीतिक मतभेदों के बीच कानून के मौलिक सिद्धांतों एवं प्राकृतिक न्याय को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
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