पिछले कुछ हफ्तों में देश के शहरों और गांवों में उद्योग धंधे खुलने से रोज़गार ने नए अवसर पैदा हुए हैं. अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने अपनी ताज़ा आंकलन रिपोर्ट में कहा कि जून महीने में अब तक रोज़गार के अच्छे अवसर मनरेगा और अच्छे मानसून की वजह से गावों में पैदा हुए हैं. लॉकडाऊन की सबसे ज्यादा मार असंगठित क्षेत्र के प्रवासी मज़दूरों पर पड़ी. अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई (CMIE) ने मई में आंकलन किया था कि अप्रैल और मई महीने में 10 करोड़ से ज्यादा वर्कर बेरोज़गार हुए. अब अपने ताज़ा आंकलन में सीएमआईई ने कहा है लॉकडाउन की पाबंदियां हटने और शहरों और ग्रामीण इलाकों में उद्योग-धंधे खुलने की वजह से बेरोज़गारी घट रही है.
21 जून को ख़त्म हुए सप्ताह में बेरोज़गारी दर घट कर 8.5 % रह गई है जो प्री-लॉकडाउन स्तर के लगभग बराबर है. लॉकडाउन के दौरान 3 मई को खत्म होने वाले सप्ताह में बेरोज़गारी दर 27.1 % तक पहुंच गई थी. मार्च में बेरोज़गारी दर 8.75 % थी. सीएमआईई के इंस्टीटूशनल बिज़नेस हेड प्रभाकर सिंह ने एनडीटीवी से कहा,'ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर में गिरावट की बड़ी वजह मनरेगा है. मई महीने में मनरेगा के तहत रोजगार की दर 53 प्रतिशत और जून में 65 प्रतिशत बढ़ी है.खरीफ फसलों की बुआई अब तक जून में 40 प्रतिशच तक बढ़ी है जिससे मज़दूरों को गावों में अच्छा रोज़गार मिल रहा है.
हालांकि शहरी इलाकों में बेरोज़गारी दर 11.2 के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है जो लॉकडाउन के पहले के स्तर के मुकाबले अब भी 2% से कुछ ज्यादा है. छोटे और लघु उद्योगों के संघ ने कहा है की एमसएसएमई सेक्टर में संकट बरकरार है और सरकार ने जो राहत पैकेज का ऐलान किया है उसको लागु करने की प्रक्रिया धीमी है.
लघु उद्योग संघ के महासचिव अनिल भारद्धाज ने एनडीटीवी से कहा, 'एमएसएमई सेक्टर के लिए जो घोषणा सरकार ने की है उसे जल्दी से जल्दी ज़मीन पर उतारना चाहिए और लोन का आवंटन तेज़ किया जाये. अभी उसकी रफ़्तार धीमी है, अधिकतर इंडस्ट्री को उसका फायदा नहीं हो पाया है. सरकार ने 20000 करोड़ का डिस्ट्रेस फण्ड और 40000 का एक और फण्ड था जिसकी गाइडलाइन्स भी जारी नहीं हुई हैं. मुझे लगता है की समय निकलता जा रहा है.'
साफ़ है, ग्रामीण इलाकों में मनरेगा और अच्छे मानसून की वजह से खरीफ सीजन में रोज़गार के अवसर ज्यादा पैदा हो रहे हैं लेकिन लॉकडाउन की वजह से कमज़ोर हुए छोटे-बड़े उद्योगों और टूटे हुए सप्लाई चेन्स को जोड़ने अभी काफी लम्बा वक्त लगेगा.
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