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This Article is From Dec 03, 2014

मिड डे मील टेस्ट में फ़ेल होने की होड़

मिड डे मील टेस्ट में फ़ेल होने की होड़
नई दिल्ली:

देश के स्कूलों में चल रही मिड-डे मील योजना की क्वालिटी बनाए रखने के लिए समय-समय पर उसके सैंपल की जांच की जाती है। हैरानी की बात यह है कि राजधानी में दिल्ली सरकार के स्कूलों में बीते पांच सालों के दौरान जितने भी सैंपल लिए गए उनमें से सिर्फ दस फ़ीसदी ही पास हुए बाकी के 90 फ़ीसदी कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं।

मिड डे मील में ख़राबी की वजह से कई राज्यों में कई बार बच्चों को स्कूल से सीधे अस्पताल पहुंचाने तक की नौबत आ चुकी है। राजधानी दिल्ली की हालत भी बाक़ी राज़्यों से कुछ अलग नहीं है। दिल्ली सरकार के स्कूलों में चल रही मिड डे मील की सेहत पर आरटीआई के जरिये उठाए सवाल का जवाब मिला तो नतीजे सबको चौकाने वाले मिले।

यहां बीते पांच सालों में करीब 2250 सैंपल लिए गए जिसमें मुश्किल से ढाई सौ ही पास हुए है।

आरटीआई कार्यकर्ता राजहंस बंसल का कहना है कि करीब 90 फीसदी सैंपल फेल हुए हैं और कई एनजीओ तो ऐसे हैं जिनका सैंपल हर साल फेल होता रहा है। सरकार फ़ाइन ज़रूर लगा देती है लेकिन एनजीओ को ब्लैकलिस्ट नहीं करती।

दिल्ली सरकार के 1007 स्कूलों में 37 एनजीओ की मदद से मिड डे मील की योजना चल रही है और 13 एनजीओ तो ऐसे हैं जिनके सैंपल लगातार पांच साल फेल रहे हैं।

आंकड़ों के मुताबिक
- 2010 में 352 सैंपल लिए गए जिसमें सिर्फ 19 ही मानकों पर खरे उतरे
- 2011 में 565 सैंपल में से 24 ही पास हुए
- 2012 में 559 सैंपल में 541 सैंपल फेल रहे
- 2013 के 626 सैंपल में सबसे ज्यादा 125 पास हुए
और इस साल अभीतक के 142 सैंपलों में सिर्फ 19 ही पास हुए हैं

ऐसा नहीं कि ये आकड़े किसी की नज़र से छुपे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मिड डे मील कमिश्नर एनसी सक्सेना ने भी इस पर अफ़सोस जताया। उनका कहना है कि मिड डे मिल की ये हालत पूरे देशभर में ऐसी ही है। इसे सुधारने के लिए सरकार को फूड़ कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया की अनाज की क्वालिटी और सप्लाई पर ध्यान देना होगा, साथ ही सिविल सोसाइटी के लोगों को सरकार के साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है।

देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को अगर खाना खिलाने के नाम पर महज खानापूर्ति की जाएगा तो भारत का भविष्य अंधेरा होने से कोई नहीं बचा सकता। जहां बजट का खजाना करोड़ों का होता है, वहीं इसे अमल में लाने का तरीका खैरात जैसा है।

सरकारी नजरों में जब क्वालिटी की कोई कीमत नहीं है, तो फिर खाना खिलाने का ढोंग सरकार क्यों करती है। अगर इसे समय रहते रोका नहीं गया को वो दिन दूर नहीं जब मिड डे मिल के नाम पर करोड़ों के घोटालों के अलावा कोई ख़बर आप तक नहीं पहुंचेगी।

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