आईपीएस ऑफिसर मधुर वर्मा
नई दिल्ली:
#MeToo की आंच अब धीरे-धीरे भारत में फैल रही है. पिछले साल हॉलीवुड में इस कैंपेन ने हार्वे विंस्टीन जैसे बड़े और नामी निर्माता का असली चेहरा दुनिया के सामने लाकर रख दिया था. इसके एक साल बाद अब भारत में भी महिलाएं अपने साथ हुए यौन शोषण के मामलों को लेकर खुलकर बोल रही हैं. सभी मामलों में एक बात कॉमन है कि पीड़िता की 'ना' को 'हां' समझा गया, जबकि 'ना' का मतलब 'ना' ही होता है और कुछ नहीं. इस बीच ट्विटर और फेसबुक पर #MeToo की तर्ज पर #HeToo जैसे कई दूसरे हैशटैग चल पड़े हैं. ऐसे में दिल्ली में बतौर डीसीपी तैनात आईपीएस ऑफिसर मधुर वर्मा ने बेहद संवेदनशील ट्वीट किया है. उन्होंने अपने ट्वीट में Consent यानी कि सहमति को लेकर एक नोट साझा किया है. उनके ट्वीट के मुताबिक #MeToo गुजरे जमाने की बात बन सके इसके लिए सहमति का आदर करना जरूरी है.
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अपने इस नोट के जरिए डीसीपी मधुर वर्मा ने सहमति और असहमति के बीच का फर्क समझाया है. नोट के मुताबिक अगर कोई सहमत है या सहमति दे रहा है तो उसका अंदाज सकारात्मक और उत्सुक होगा. साथ ही नोट में यह भी बताया गया है कि हमें कब और किस चीज के लिए सहमति मांगनी चाहिए. नोट की मानें तो अगर हमें किसी को गले लगाना है, उसकी कोई चीज उधार लेनी है, हमें किसी दूसरे इंसान को छूना है, किस करना है या उससे कुछ साझा करना है तो हमें सहमति लेनी चाहिए.
नोट में उन्होंने यह भी बताया कि अगर आप किसी को गले लगाना चाहते हैं लेकिन दूसरा इसके लिए तैयार नहीं है तो यह असहमति है. अगर कोई आपको हंसते हुए भी 'ना' कहे तो वह भी असहमति है. आप किसी को गले लगाने ही वाले हैं लेकिन वह बीच में ही इरादा बदल दे तो यह भी असहमति की श्रेणी में आएगा. अगर किसी ने आपको पहले गले लगाने दिया लेकिन अगली बार वह आपको गले न लगाने दे तो यह सहमति नहीं असहमति है.
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गौरतलब है कि #MeeToo के तहत सबसे पहले एक्ट्रेस तनुश्री दत्ता ने अपने साथ 10 साल पहले हुए यौन शोषण के मामलों को लेकर अभिनेता नाना पाटेकर और डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री पर आरोप लगाए. उसके बाद से तो जैसे कई महिलाओं को सामने आने का हौसला मिल गया. भारत में अब तक #MeeToo के तहत एक्टर रजत कपूर, डायरेक्टर विकास बहल, कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती और सिंगर कैलाश खेर समेत कई लोगों पर संगीन आरोप लगे हैं. हाल ही में 90 के दशक की मशहूर डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और लेखिका विंता नंदा ने टीवी और फिल्मों की दुनिया में 'संस्कारी बाबूजी' के नाम से मशहूर आलोक नाथ पर 20 साल पहले लिफ्ट देने के बहाने घर में घुसकर रेप और हिंसा का आरोप लगाया है. यही नहीं मीडिया के क्षेत्र में काम कर रही कई महिलाओं ने भी अपने वरिष्ठ सीनियर्स पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं. इस कड़ी में सबसे बड़ा नाम जो सामने आ रहा है वो पूर्व वरिष्ठ पत्रकार और वर्तमान में मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर का है.
#YouToo explained in simple terms.. Only to ensure that #MeToo becomes a thing of past. Let’s all respect the consent ! pic.twitter.com/qAwAfZ36Wf
— Madhur Verma (@IPSMadhurVerma) October 7, 2018
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अपने इस नोट के जरिए डीसीपी मधुर वर्मा ने सहमति और असहमति के बीच का फर्क समझाया है. नोट के मुताबिक अगर कोई सहमत है या सहमति दे रहा है तो उसका अंदाज सकारात्मक और उत्सुक होगा. साथ ही नोट में यह भी बताया गया है कि हमें कब और किस चीज के लिए सहमति मांगनी चाहिए. नोट की मानें तो अगर हमें किसी को गले लगाना है, उसकी कोई चीज उधार लेनी है, हमें किसी दूसरे इंसान को छूना है, किस करना है या उससे कुछ साझा करना है तो हमें सहमति लेनी चाहिए.
नोट में उन्होंने यह भी बताया कि अगर आप किसी को गले लगाना चाहते हैं लेकिन दूसरा इसके लिए तैयार नहीं है तो यह असहमति है. अगर कोई आपको हंसते हुए भी 'ना' कहे तो वह भी असहमति है. आप किसी को गले लगाने ही वाले हैं लेकिन वह बीच में ही इरादा बदल दे तो यह भी असहमति की श्रेणी में आएगा. अगर किसी ने आपको पहले गले लगाने दिया लेकिन अगली बार वह आपको गले न लगाने दे तो यह सहमति नहीं असहमति है.
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