
"जब हम वहां पहु्ंचे तो कोई सुरक्षा बल नहीं था, कोई पुलिस जवान नहीं था. चारों ओर लाशें गिरी थी. महिलाएं-बच्चे रोते हुए इधर-उधर भाग रहे थे. यह नजारा देखकर हमें समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें क्या ना करें. किसकी मदद करें. किसे पहले सुरक्षित स्थान पर पहुंचाएं. मारेंगे तो हमको भी मारें यह सोचकर हम लोग मदद करने में जुट गए." यह कहना है कि पहलगाम हमले में जान पर खेलकर सैलानियों को बचाने वाले एक हीरो का.
पहलगाम आतंकी हमले के आज 7 दिन बीत चुके हैं. पिछले सप्ताह मंगलवार को ही दोपहर में 'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर बैसरन घाटी में आतंकियों ने बेगुनाह सैलानियों पर गोलीबारी की थी. आतंकियों की इस बर्बरता को लेकर पूरे देश में गम और गुस्से का माहौल है. इस घटना में आतंकियों ने लोगों से धर्म पूछकर उन्हें गोली मारी. इसे लेकर एक धर्म विशेष के प्रति लोगों में गुस्सा है. लेकिन इसी धर्म विशेष के कुछ लोगों ने उस हमले में अपनी जान पर खेलकर सैलानियों को बचाया.
सज्जाद अहमद भट्ट: सैलानी को पीठ पर बिठाकर नीचे लेकर आए, वीडियो वायरल
पहलगाम हमले बाद सैलानियों को बचाने वाले हीरो में एक हैं सज्जाद अहमद भट्ट, जिनका आतंकी हमले के दौरान एक पर्यटक को सुरक्षित जगह पर ले जाने का वीडियो वायरल हुआ था. डर को किनारे रखते हुए, उन्होंने एक घायल लड़के को अपनी पीठ पर उठाकर कई किलोमीटर तक चट्टानी इलाके से नीचे की ओर यात्रा की.
सज्जाद अहमद भट्ट ने बताया कि मेरे परिवार में किसी की मृत्यु हो गई थी, लेकिन इससे उनका हौसला नहीं टूटा. सज्जाद ने बताया, "वह बड़ा डरावना नजारा था. बच्चे और महिलाएँ मदद के लिए चिल्ला रहे थे. चारों ओर इतनी सारी लाशें देखकर हम तय नहीं कर पा रहे थे कि क्या करें और किसे बचाएँ."
सज्जाद ने आगे बताया, "मैंने अपनी जान की परवाह नहीं की. मेरे लिए तो सैलानी भी मेरा परिवार ही हैं. उन्हें बचाना हमारी जिम्मेदारी थी. हमने उनके लिए पानी का इंतजाम किया और घोड़े पर बिठाकर अस्पताल ले गए. हम उस दिन को कभी नहीं भूलेंगे. वह कयामत का दिन था."
रईस अहमद: नजारा देख लगा आज मेरा आखिरी दिन
सज्जाद अहमद भट्ट की तरह ही रईस अहमद का भी अनुभव रहा. रईस अहमद बैसरन घाटी के टट्टूवाला एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. उन्होंने बताया, "जब हम बैसरन पहुँचे तो मैंने एक शव देखा और मुझे लगा कि यह मेरा आखिरी दिन है. एक महिला मदद के लिए मेरे पास आई. रोते हुए कहने लगी- मेरे पति को बचा लो. हम उसे गेट तक ले गए और उसे आश्वासन दिया कि बाकी लोगों को अस्पताल ले जाया जाएगा."
सैयद आदिल हुसैन शाहः सैलानियों को बचाने में गंवा दी अपनी जान
इस आतंकी हमले में मारे गए एक मात्र स्थानीय सैयद आदिल हुसैन शाह की कहानी तो आप पहले से जान ही रहे होंगे. 28 वर्षीय खच्चर चालक सैयद आदिल हुसैन शाह ने हमले के दौरान आतंकवादियों का विरोध किया. उनसे हथियार छीनने की कोशिश की थी. जिसके बाद आतंकियों ने उन्हें भी गोली मार दी.

आदिल को याद करते हुए रईस अहमद ने कहा कि बैसरन घाटी के घास के मैदानों में बाड़ लगी हुई है. केवल पर्यटक ही अंदर जा सकते हैं. अगर बाड़ नहीं होती, तो कई और आदिल पर्यटकों को बचाने के लिए कूद पड़ते.
अब्दुल मजीदः व्हाट्सग्रुप पर मैसेज आया और सभी जुटने लगे
टट्टूवालों में से एक अब्दुल मजीद ने बताया कि उस रोज दोपहर 3 बजे उनके एसोसिएशन के अध्यक्ष की ओर से व्हाट्सएप ग्रुप पर एक संदेश आया कि बैसरन में एक त्रासदी हुई है और स्थानीय लोगों को तुरंत वहाँ पहुँचना चाहिए.
मजीद ने कहा, "एक सज्जाद वायरल हो गया, लेकिन ऐसे सैकड़ों सज्जाद थे जिन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी. वे आतंकवादी राक्षसी और हत्यारे लोग थे जिन्होंने हमला किया.
एक स्थानीय ने बताया, "त्रासदी से पहले हम बहुत खुश थे. मेरे घर पर बहुत से पर्यटक आए. हम उनके बहुत करीब आ गए. आतंकवादियों ने हमारे और सैलानियों के बीच दरार पैदा कर दी. मैं अभी भी पर्यटकों से अपील करता हूं कि वे कश्मीर आएं और हमारा आतिथ्य देखें. हम यहां आपके लिए खड़े हैं."
पहलगाम अल्लाह और शिव की भूमिः स्थानीय कार्यकर्ता
पहलगाम हमले के दौरान आतंकियों का सामना करने वालों में एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता भी शामिल थे. उन्होंने कहा कि मैंने कमोवेश पूरे देश की यात्रा की है. भारत की विविधता देखी है. पहलगाम में भी यही विविधता देखी जा सकती है. यह भूमि अल्लाह और शिव दोनों की है.
आप कश्मीर आएं, हम आपके साथ हैः सज्जाद भट्ट
आतंकी हमले के समय एक सैलानी को पीठ पर बिठाकर नीचे भागने वाले स्थानीय टट्टू चालक सज्जाद भट्ट ने कहा, "मैं अपने भारतीय भाइयों और सैलानियों से कहना चाहता हूं कि आपको डरने की जरूरत नहीं है. आप कश्मीर आएं, हम आपके साथ हैं."
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