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SP के गढ़ मैनपुरी में क्या इस बार BJP रच पाएगी जीत का इतिहास

1996 में मुलायम सिंह यादव सपा की टिकट पर यहां से जीते. इसके बाद कोई और पार्टी यहां से चुनाव नहीं जीत पाई. बीजेपी ने अभी तक इस सीट पर एक भी बार जीत हासिल नहीं की है.

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SP के गढ़ मैनपुरी में क्या इस बार BJP रच पाएगी जीत का इतिहास
मैनपुरी सीट पर फिलहाल सपा की डिंपल यादव का कब्जा है...

उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट (Mainpuri Loksabha seat) 1996 से समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का गढ़ रही है. बीजेपी अभी तक इस सीट को कभी नहीं जीत पाई है. इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस सीट को जीतकर इतिहास बना पाएगी या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल डिंपल यादव (Dimple Yadav) यहां से सांसद हैं. मैनपुरी में इस सीट के अंतर्गत 5 सीटें आती हैं, जिनमें करहल, मैनपुरी, भोगांव, जसवंतनगर व किशनी शामिल है. मैनपुरी के इतिहास की बात करें तो इस पर चौहान शासकों ने राज किया. उन्होंने ही यहां किलों, मंदिरों आदि का निर्माण करवाया. मैनपुरी के आसपास की जगह पर कन्नोज के शासकवंशकों का राज था. 1526 में मुगल शासक बाबर, 18वीं में मराठे फिर अवध के नवाब वजीर ने शासन किया. 1801 में यहां ब्रिटिश शासकों ने राज किया.

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इस सीट के राजनीति इतिहास पर एक नजर

इस सीट  के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो इस पर 1957 में सबसे पहले पीएसपी की टिकट पर बंसीदास धांगर ने जीत हासिल की थी. 1962 में कांग्रेस के बादशाह गुप्ता और फिर 1967 से 1971 में कांग्रेस के ही महाराज सिंह सत्ता पर काबिज रहे. इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के रघुनाथ सिंह वर्मा ने कांग्रेस के महाराज सिंह को हराया. बीएलडी का जनता पार्टी में विलय हो गया.1980 के चुनाव में रघुनाथ सिंह वर्मा जनता पार्टी सेक्यूलर की टिकट पर जीते. 1984 में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव जीते और वे यहां से सांसद चुने गए. 1989 जनता दल और 1991 में जनता पार्टी से उदय प्रताप सिंह ने इस सीट पर जीत हासिल की.  

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1996 से इस सीट पर है सपा का कब्जा

1996 में मुलायम सिंह यादव सपा की टिकट पर यहां से जीते. इसके बाद कोई और पार्टी यहां से चुनाव नहीं जीत पाई. 1998 और 1999 में एसपी के बलराम सिंह यादव इस सीट पर काबिज रहे.  2004 में एक बार मुलायम सिंह यादव जीते, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 2004 के उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव मैनपुरी सांसद चुने गए. 2009 और 2014 में मुलायम फिर इस सीट से जीते. 2014 में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था. इसके बाद उन्होंने मैनपुरी लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. 2014 में हुए उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव के कुनबे के तेज प्रताप यादव सपा की टिकट पर चुनाव जीते.वह मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई रतन सिंह यादव के बेटे रणवीर सिंह यादव के बेटे हैं. 2019 में भी यहां से मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी बहू डिंपल यादव ने इस सीट पर जीत हासिल की. 1996 से यह सीट सपा की घरेलू सीट रही है.2014 में मोदी लहर के बावजूद मुलायम सिंह यादव ने बड़ी जीत हासिल की थी. उनके इस्तीफा देने के बाद उनके बड़ेभाई के पोते तेज प्रताप यादव भी बतौर सपा उम्मीदवार तीन लाख वोटों से अधिक पर जीत हासिल की थी. 

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किलों के लिए प्रसिद्ध है मैनपुरी

किलों के लिए प्रसिद्ध मैनपुरी  UP का एक प्रमुख जिला है. यहां अकबर औछा, अम्बरपुर वेटलैंड, समान वन्यजीव अभ्यारण, बर्नहाल और करीमगंज प्रसिद्ध हैं. यहां के अकबरपुर औछा गांव का नाम शासक अकबर के नाम पर रखा गया है. अपने काल के दौरान अकबर ने यहां एक किले का निर्माण करवाया था. यहां पर कई हिंदू मंदिर भी हैं. यहीं पर एक ऋषि स्थान भी है, जिसका निर्माण फर्रुखाबाद के चौधरी जय चंद ने करवाया था. हर साल मार्च-अप्रैल के बीच आने वाली नवरात्रि की नवमी पर च्यवन ऋषि की याद में मेले का आयोजन किया जाता है. काफी संख्या में लोग इस मेले में शामिल होते हैं. भोगांव की स्थापनी राजा भीम ने की थी. उन्ही के नाम पर इस जगह का नाम भीमगांव या भीमग्राम रखा गया है.  इसके अलावा अम्बरपुर वेटलैंड करहल-किशनी मार्ग पर स्थित है. इस जगह पर विश्व के सबसे लम्बे उड़ने वाले 400 सारस मौजूद है. इसके समीप पर ही कुदिईया वेटलैंड स्थित है.

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मयन ऋषि के नाम पर पड़ा मैनपुरी... इसके पीछे ये कहानी है प्रसिद्ध

मैनपुरी के नगरिया मोहल्ले में मयन ऋषि रहते थे. कहा जाता है कि उन्हीं के नाम पर मैनपुरी का नाम पड़ा. मयन के बचपन में ही पिता का देहांत हो गया था. उनकी मां ने उन्हें पालपोसकर बड़ा किया. मयन जब जवान हुए तो उनकी शादी बगल के धारऊ में तय की गई थी. मयन बारात लेकर धारऊ रवाना हुए. मयन का पटका तो घर पर ही रह गया. इस बीच बारात धारऊ पहुंच गई, वहां उनका खूब सत्कार हुआ. लेकिन हर किसी की निगाहें दूल्हे को ढूंढ रही थी. उधर, मयन जब पटका लेने घर पहुंचे तो उनकी मां नाद में खाना खा रही थी. पूरा खाना झूठा हो गया था. ये देखकर मयन ने कहा कि मां आप ऐसे खाना क्यों खा रही हो. बाराती अब लौटकर क्या खाएंगे. मां ने जवाब दिया कि बेटा आज मैं पेटभर खा लूं वर्ना कल को बहू आएगी तो शायद ही भरपेट खाना मिल पाए. ये बात मयन के मन को छू गई. उन्होंने प्रण लिया कि वह शादी नहीं करेंगे और अपनी मां की सेवा करेंगे. मां ने बहुत समझाया लेकिन मयन नहीं माने.

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उधर, धारऊ गांव में  बाराती इंतजार करते रहे. दिन और महीने बीतने लगे. फिर समय का चक्र ऐसा हुआ कि वे बाराती वहीं इंतजार करते करते पत्थर के बन गए. मां के लिए आजीवन शादी न करने का प्रण लेने वाले मयन बाद में मयन ऋषि कहलाए. मैनपुरी में कुछ प्रतिमाएं हैं, जिनके लिए कहा जाता है कि ये पत्थर बने बाराती हैं. उनकी वहां पूजा की जाती है. जब भी नई बहू आती है तो वे जाकर वहीं पूजा करते हैं. फिर बहू घर आती है. इस कहानी को अक्सर यहां रहने वाले लोग सुनाते हैं....

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