अगर आप नेक काम करने का इरादा अपने मन में रखते हैं तो दुनिया की कोई भी मुश्किलें आपको उस काम को करने से नहीं रोक सकती. आज हम बात कर रहे हैं, 27 साल की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता रेलू वासवे के बारे में, जो रोजाना नाव से 18 किलोमीटर नदी का सफर तय करती हैं.
नासिक के नंदुरबार जिले में रहने वाले रेलू को आदिवासियों के एक समूह ने आंगनबाड़ी में आने से रोक दिया. जिसके बाद रेलू ने आदिवासियों तक पहुंचने का ये रास्ता ढूंढ निकाला है.
Maharashtra: Relu Vasave, an Anganwadi worker from Nandurbar rows 18 km daily to attend to children under 6 yrs of age & expecting mothers in interior villages.
— ANI (@ANI) November 23, 2020
She says, "Rowing daily is tough but it's important that babies & expecting mothers eat nutritious food & be healthy" pic.twitter.com/Y7ObYdVfSE
रेलू महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के सुदूरवर्ती आदिवासी गांव चिमलखाड़ी में आंगनबाड़ी में काम करती हैं. जिस गांव में वह रहती है वहां सड़क नहीं है, ऐसे में बसों तक पहुंचने के लिए स्थानीय लोगों का नाव से 18 किलोमीटर का सफर कर नदी पार करनी पड़ती है. रेलू ने अपने काम के लिए एक मछुआरे से नाव उधार ली है और उसी से ही नदी पार करती है.
क्या है रेलू का काम
रेलू का काम 6 साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके विकास पर काम करती है. वह उनके स्वास्थ्य पर नजर रखती है. साथ ही सरकार की ओर से जो आदेश मिले हैं पोषण संबंधी खुराक भी देती है.
25 नवजात और कुपोषित बच्चे, और सात गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण मिल सके, इसके लिए रेलू अप्रैल महीने से ही हफ्ते में 5 दिन नाव से 18 किलोमीटर का सफर करती हैं.
न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए, रेलू का कहना है, कि नाव चलाते हुए हाथ दुखते हैं, लेकिन जरूरी ये है महत्वपूर्ण है कि बच्चे और गर्भवती माताएं पौष्टिक भोजन खाएं और स्वस्थ रहें.
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