महाराष्ट्र में ऐसा लग रहा है कि शिवसेना अब बीजेपी से चुन-चुनकर बदला लेने पर उतारू हो गई है. तभी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने अपने ट्विटर पर एक ऐसा कॉर्टून शेयर किया है जिसमें एक बाघ (शिवसेना का पार्टी चिह्न) घड़ी वाला एक लॉकेट (एनसीपी का चिह्न) अपने गले में पहने हुए है, उसके एक 'पंजे' में कमल का फूल (बीजेपी का चिह्न) दरअसल साल 2014 में शिवसेना को बीजेपी ने झिड़क दिया था और अकेले चुनाव लड़कर अपनी सरकार भी बना ली थी. बीजेपी उस समय मोदी लहर पर सवार थी और कभी राज्य में शिवसेना की सरकार में सहयोगी बनकर काम चलाने वाली बीजेपी अब बड़े भाई की भूमिका में आ गई थी. शिवसेना उस समय अपने बुरे दौर में पहुंच गई थी. इस चुनाव में बीजेपी को 122 शिवसेना को 63 और कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें मिली थीं. बीजेपी ने एनसीपी से समर्थन लेकर सरकार बना ली. हालांकि शिवसेना की ओर से यह बार-बार कहा गया कि वह सब कुछ भूल कर बीजेपी को समर्थन देने के लिए तैयार है लेकिन बीजेपी ने उस समय शिवसेना की पूरी तरह से अनदेखी कर दी.
संजय राउत का ट्वीट
व्यंग चित्रकाराची कमाल!
— Sanjay Raut (@rautsanjay61) October 25, 2019
बुरा न मानो दिवाली है.. pic.twitter.com/krj2QAnGmB
इस बार विधानसभा चुनाव में मिली सीटें
#UPDATE Results declared for all 288 Assembly constituencies of Maharashtra. BJP secures 105 seats, Shiv Sena secures 56 seats, Congress secures 44 seats, NCP secures 54 seats. #MaharashtraAssemblyPolls pic.twitter.com/2WEFlIhtb1
— ANI (@ANI) October 24, 2019
हालांकि बाद में राज्य में समीकरण बदले और शिवसेना भी बीजेपी सरकार में शामिल हो गई. लेकिन महाराष्ट्र सरकार के किसी भी बड़े मंत्रालय में शिवसेना नेताओं को जगह नहीं दी गई. इस 2019 के लोकसभा चुनाव के ऐलान होने तक शिवसेना एकदम विपक्ष की भूमिका में आ गई. हालांकि बाद में बीजेपी ने शिवसेना को मना लिया और दोनों ने मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता भी. लेकिन लोकसभा में फिर बीजेपी को इतनी सीटें आ गईं कि उसको सहयोगियों के समर्थन की जरूरत ही नहीं रह गई और नतीजा यह हुआ कि शिवसेना को फिर उसको मन मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली यही हाल कुछ जेडीयू के साथ भी हुआ. शिवसेना अंदर ही अंदर मन मसोस कर रह गई और उद्धव ठाकरे सिर्फ बयानों तक ही सीमित रह गए.
लेकिन इस बार शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को उतार पहले ही अपनी इच्छा जाहिर कर दी है. पार्टी आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है. नतीजे भी कुछ ऐसे आए हैं कि बीजेपी बिना किसी सहयोग के सरकार नहीं बना सकती है. पिछली बार जहां भाजपा की 122 सीटें थी वहीं इस बार उसके खाते में सिर्फ 105 सीटें आई हैं. शिवसेना की सीटों का आंकड़ा भी पिछली बार के मुकाबले 63 से घटकर 56 हुआ है लेकिन राजग सरकार की स्थिरता के लिये उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है. वहीं, कांग्रेस की बात करें इसे 44 सीटें मिली हैं. शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को इस बार 54 सीटें मिली हैं, जो 2014 के मुकाबले 13 सीटें अधिक है और अब चर्चा यह है कि अगर बीजेपी के साथ शिवसेना की बात नहीं बनती है और कांग्रेस-एनसीपी उसे समर्थन दे देती है तो सीटों का आंकड़ा 154 पहुंच जाता है. यह आंकड़ा बहुमत से 9 ज्यादा होगा. हालांकि, शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का एक साथ आना फिलहाल दूर की कौड़ी लगती है. क्यों कि यह फैसला शिवसेना के लिए वैचारिक समझौता होगा.
फिलहाल शिवसेना की पूरी कोशिश है कि दूसरे विकल्प की चर्चा कर बीजेपी को दबाव में लिया जाए और 1995 के एक पुराने फॉर्मूले पर अमल करवा लिया जाए. इसके मुताबिक ढाई साल शिवसेना सरकार चलाए और ढाई साल बीजेपी. लेकिन बीजेपी चाहती है कि पूरे पांच साल उसी के पास मुख्यमंत्री का पद रहे और वह शिवसेना को डिप्टी सीएम पद का देने के लिए राजी हो सकती है. यहां एक बार गौर करने वाली यह है कि 50-50 का फॉर्मूला 1999 में बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे ने दिया था जिस पर शिवसेना उस समय राजी नहीं हुई थी और अबकी बार बीजेपी के सामने यही सवाल है.
मुकाबला: क्या वाकई बीजेपी को बड़ी जीत मिली है?
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