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महाराष्ट्र बजट: लोकलुभावन वादों और वित्तीय हकीकत के बीच कैसे संतुलन बनाएंगे अजित पवार?

क्या सरकार अपनी लाडकी बहिन योजना के तहत महिलाओं को दी जाने वाली सहायता राशि बढ़ाने का ऐलान करेगी? इसका सस्पेंस सोमवार दोपहर तक खत्म हो जाएगा.

महाराष्ट्र बजट: लोकलुभावन वादों और वित्तीय हकीकत के बीच कैसे संतुलन बनाएंगे अजित पवार?
मुंबई:

अजित पवार महाराष्ट्र के वे राजनेता हैं जिन्होंने राज्य का बजट कई बार पेश किया है. चाहे उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार रही हो, एकनाथ शिंदे की महायुति 1 या वर्तमान में सत्ता में मौजूद देवेंद्र फडणवीस की महायुति 2, अजित पवार हमेशा वित्त मंत्री के रूप में राज्य के खजाने की चाबी संभालते आए हैं. लेकिन इस साल का बजट उनके लिए खासतौर पर चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि राज्य की वित्तीय स्थिति महायुति के चुनावी वादों के साथ टकरा रही है. क्या सरकार अपनी लाडकी बहिन योजना के तहत महिलाओं को दी जाने वाली सहायता राशि बढ़ाने का ऐलान करेगी? इसका सस्पेंस सोमवार दोपहर तक खत्म हो जाएगा.

लाडकी बहिन योजना महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान एक गेम-चेंजर साबित हुई और महायुति की सत्ता में वापसी में अहम भूमिका निभाई, लेकिन इस योजना ने राज्य की वित्तीय स्थिति पर भारी असर डाला है. वित्तीय विशेषज्ञों की इस लोकलुभावन योजना को लेकर जताई गई आशंकाएं सही साबित हो रही हैं. महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए शुरू की गई इस योजना की वजह से अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर असर पड़ा है.

क्या बंद हो जाएगा शिव भोजन थाली योजना?
हाल ही में खबर आई थी कि सरकार शिव भोजन थाली योजना को बंद करने पर विचार कर रही है. यह योजना उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री कार्यकाल में गरीबों को कम कीमत पर पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई थी. इस योजना के तहत लाभार्थियों को सब्सिडी दर पर भरपेट खाना मिलता था. बजट में इस योजना के भविष्य को लेकर कोई फैसला लिया जा सकता है. इसी तरह, एक और योजना आनंदाचा सिधा को जारी रखने को लेकर भी सस्पेंस बना हुआ है. इस योजना के तहत गरीबों को दिवाली, गणेश चतुर्थी, अंबेडकर जयंती और अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा जैसे अवसरों पर मात्र ₹100 में विशेष खाद्य किट दी जाती थी. महाराष्ट्र सरकार ने इन दोनों योजनाओं पर अब तक ₹13,000 करोड़ खर्च किए हैं.

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हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील योजना के तहत छात्रों को अंडे देने की योजना भी बंद कर दी. इस योजना के लिए राज्य सरकार ने ₹50 करोड़ आवंटित किए थे, लेकिन अब स्कूलों को अंडे बांटने के लिए सार्वजनिक प्रायोजन (सपॉन्सरशिप) की व्यवस्था करने को कहा गया है. नवंबर 2023 में शुरू की गई इस योजना का मकसद बच्चों में प्रोटीन की कमी को दूर करना था.

राज्य सरकार के ठेकेदारों को बकाया भुगतान न होना भी महाराष्ट्र की बिगड़ती वित्तीय सेहत को दर्शाता है. हाल ही में कई सरकारी विभागों द्वारा ₹90,000 करोड़ की बकाया राशि न चुकाने के विरोध में कई ठेकेदार और उनके कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे.

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क्या और अधिक बढ़ेगा राजकोषीय घाटा?
माना जा रहा है कि महाराष्ट्र का राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) इस साल ₹2 लाख करोड़ को पार कर सकता है, जिससे सरकार को अपने खर्चों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है और लोकलुभावन योजनाओं को जारी रखना मुश्किल हो सकता है.

लाडकी बहिन योजना के तहत पहले ही ₹46,000 करोड़ का बजट तय किया गया था, जिसे दिसंबर में बढ़ाकर ₹14,000 करोड़ और कर दिया गया. इस योजना के तहत 21 से 65 वर्ष की आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को ₹1,500 की आर्थिक सहायता दी जाती है. चुनाव से पहले महायुति ने इसे बढ़ाकर ₹2,100 करने का वादा किया था, लेकिन महाराष्ट्र की डांवाडोल अर्थव्यवस्था को देखते हुए यह अब मुश्किल नजर आ रहा है. हालांकि, सरकार में एनसीपी की मंत्री अदिती तटकरे ने और सस्पेंस बढ़ाते हुए कहा कि महायुति ने कभी यह वादा नहीं किया था कि यह बढ़ोतरी इसी वित्तीय वर्ष में लागू होगी. इसके अलावा, पिछले कुछ महीनों में लाखों महिलाओं को इस योजना के लिए अयोग्य भी घोषित किया गया है.

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