प्रतीकात्मक फोटो
भोपाल:
मध्यप्रदेश में एचआईवी पीड़ित गर्भवती महिला ने उसके साथ भेदभाव किए जाने का आरोप लगाया है. उसवे यह आरोप अपने नाते-रिश्तेदारों पर नहीं बल्कि अस्पताल पर लगाया है. पीड़ित महिला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर की रहने वाली है.
बीस साल की एचआईवी पीड़ित को प्रसव के फौरन बाद सीहोर से भोपाल के अस्पताल भेजा गया. भोपाल के अस्पताल ने महज़ दो घंटे में ही उन्हें सीहोर रवाना कर दिया. शरीर में खून की कमी के बावजूद 12 घंटे के अंदर पीड़ित को तीन बार अस्पताल के चक्कर काटने पड़े. इस भेदभाव से पूरा परिवार आहत है. उनकी एक रिश्तेदार ने भोपाल के अस्पताल के खिलाफ आरोप लगाते हुए कहा कि ''उन्होंने हमसे कहा दो मिनट बाद आना, फिर बुलाया ... जब हमने मैडम को फोन लगाया तो चीखने लगे कहा तीन बजे रात में आकर हम पर अहसान नहीं किया.''
यह भी पढ़ें : बिहार : एचआईवी पीड़ित महिला के ऑपरेशन में सरकारी अस्पताल ने की बड़ी लापरवाही
सीहोर से 22 किलोमीटर दूर गांव में रहने वाला यह परिवार पीड़ित को लेकर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के सुल्तानिया अस्पताल पहुंचा. सीहोर में अस्पताल ने बताया था कि महिला की हालत गंभीर है इसलिए उसे बड़े अस्पताल ले जाना चाहिए. अस्पताल तक जब हमने खबर पहुंचाई तो अब मामले में रिपोर्ट तलब कर कार्रवाई की बात की जा रही है.
अस्पताल के अधीक्षक डॉ करण पीपरे ने कहा ''मैं खुद जाकर जांच करूंगा. कोई लापरवाही हुई तो कार्रवाई होगी. बहुत संवेदनशील है बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.''
कांग्रेस का कहना है कि सरकार को इस असंवेदनशील रवैये के लिए माफी मांगनी चाहिए. कांग्रेस प्रवक्ता नूरी खान ने कहा एचआईवी पीड़ित महिला को दर-दर भटकना पड़ा. सीएम को माफी मांगनी चाहिए, सोचना चाहिए स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर कैसे भ्रमित कर रहे हैं. वहीं बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा डिलिवरी हो जाने के बाद डॉक्टरों को लगा कि उनमें खून की कमी थी इसलिए उन्हें भोपाल रेफर किया गया. यहां भी उनकी देखभाल की गई फिर सीहोर भेजा गया कहीं कोई भेदभाव नहीं हुआ.
VIDEO : हर जिंदगी है जरूरी
सूत्रों का कहना है कि कुछ दिन पहले भी एक एचआईवी पीड़ित प्रसूता को अस्पताल से जबरन भगाया गया था, जिसकी डिलिवरी निजी अस्पताल में हुई. टीकमगढ़ जिले में एक पीड़ित की लैब रिपोर्ट को लीक कर उसे मानव बम बता दिया गया. कुछ ही घंटों में अस्पताल ने उसके इलाज से इनकार कर दिया और उसके दोनों जुड़वा बच्चों की 30 मिनट के अंदर मौत हो गई. ये सारी घटनाएं अप्रैल के बाद हुईं, जब संसद ने एचआईवी और एड्स रोकथाम और नियंत्रण विधेयक 2017 पारित कर किया, जो चिकित्सा उपचार, पीड़ित लोगों के लिए नौकरियों में बराबर के अधिकार की गारंटी देता है.
बीस साल की एचआईवी पीड़ित को प्रसव के फौरन बाद सीहोर से भोपाल के अस्पताल भेजा गया. भोपाल के अस्पताल ने महज़ दो घंटे में ही उन्हें सीहोर रवाना कर दिया. शरीर में खून की कमी के बावजूद 12 घंटे के अंदर पीड़ित को तीन बार अस्पताल के चक्कर काटने पड़े. इस भेदभाव से पूरा परिवार आहत है. उनकी एक रिश्तेदार ने भोपाल के अस्पताल के खिलाफ आरोप लगाते हुए कहा कि ''उन्होंने हमसे कहा दो मिनट बाद आना, फिर बुलाया ... जब हमने मैडम को फोन लगाया तो चीखने लगे कहा तीन बजे रात में आकर हम पर अहसान नहीं किया.''
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सीहोर से 22 किलोमीटर दूर गांव में रहने वाला यह परिवार पीड़ित को लेकर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के सुल्तानिया अस्पताल पहुंचा. सीहोर में अस्पताल ने बताया था कि महिला की हालत गंभीर है इसलिए उसे बड़े अस्पताल ले जाना चाहिए. अस्पताल तक जब हमने खबर पहुंचाई तो अब मामले में रिपोर्ट तलब कर कार्रवाई की बात की जा रही है.
अस्पताल के अधीक्षक डॉ करण पीपरे ने कहा ''मैं खुद जाकर जांच करूंगा. कोई लापरवाही हुई तो कार्रवाई होगी. बहुत संवेदनशील है बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.''
कांग्रेस का कहना है कि सरकार को इस असंवेदनशील रवैये के लिए माफी मांगनी चाहिए. कांग्रेस प्रवक्ता नूरी खान ने कहा एचआईवी पीड़ित महिला को दर-दर भटकना पड़ा. सीएम को माफी मांगनी चाहिए, सोचना चाहिए स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर कैसे भ्रमित कर रहे हैं. वहीं बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा डिलिवरी हो जाने के बाद डॉक्टरों को लगा कि उनमें खून की कमी थी इसलिए उन्हें भोपाल रेफर किया गया. यहां भी उनकी देखभाल की गई फिर सीहोर भेजा गया कहीं कोई भेदभाव नहीं हुआ.
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सूत्रों का कहना है कि कुछ दिन पहले भी एक एचआईवी पीड़ित प्रसूता को अस्पताल से जबरन भगाया गया था, जिसकी डिलिवरी निजी अस्पताल में हुई. टीकमगढ़ जिले में एक पीड़ित की लैब रिपोर्ट को लीक कर उसे मानव बम बता दिया गया. कुछ ही घंटों में अस्पताल ने उसके इलाज से इनकार कर दिया और उसके दोनों जुड़वा बच्चों की 30 मिनट के अंदर मौत हो गई. ये सारी घटनाएं अप्रैल के बाद हुईं, जब संसद ने एचआईवी और एड्स रोकथाम और नियंत्रण विधेयक 2017 पारित कर किया, जो चिकित्सा उपचार, पीड़ित लोगों के लिए नौकरियों में बराबर के अधिकार की गारंटी देता है.
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