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This Article is From May 02, 2024

Loksabha Election 2024: पंजाब में कहां खड़े हैं राजनीतिक दल और किस मुद्दे पर लड़ा जा रहा है चुनाव

पंजाब में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में एक जून को मतदान कराया जाएगा. इस बार वहां कोई गठबंधन चुनाव मैदान में नहीं हैं. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, भाजपा और शिरोमणि अकाली दल अकेले-अकेले चुनाव लड़ रहे हैं. आइए देखते हैं इस बार कैसा है पंजाब का चुनाव.

Loksabha Election 2024: पंजाब में कहां खड़े हैं राजनीतिक दल और किस मुद्दे पर लड़ा जा रहा है चुनाव
नई दिल्ली:

पंजाब (Punjab) की सभी 13 लोकसभा सीटों पर अंतिम चरण में एक जून को मतदान होगा. इस बार पंजाब में मुकाबला चतुष्कोणीय नजर आ रहा है. पंजाब में राजनीति करने वाले दलों ने इस बार कोई गठबंधन नहीं किया है. इस बार हर सीट पर आम आदमी पार्टी (AAM AADMI PARTY), अकाली दल (Shiromani Akali Dal), भाजपा (BJP), कांग्रेस (Congress)और बसपा (BSP)ने उम्मीदवार उतारे हैं. विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक विजय हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर है तो भाजपा मोदी मैजिक के सहारे उम्मीद से है. इस बार के चुनाव में फसलों की एमएसपी के साथ-साथ नशाखोरी, राम मंदिर और भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा है. 

साल 2019 के चुनाव में पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी. कैप्टन अमरिंदर सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने राज्य की 13 में से आठ सीटों पर कब्जा जमाया था. लेकिन अब कैप्टन के साथ-साथ कई कांग्रेसी का कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं. वहीं कुछ ऐसा ही हाल राज्य में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी का भी है. उसके भी कई नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं. नेताओं की दलबदल ने भाजपा को मजबूत बनाया है. वह दूसरे दलों से आए नेताओं की बदौलत इस बार करिश्माई प्रदर्शन करने की उम्मीद में है.

पंजाब में भाजपा की कोशिश

तीन कृषि कानूनों के सवाल पर अकाली दल ने भाजपा से अपना करीब ढाई दशक पुराना गठबंधन तोड़ लिया था. इस गठबंधन में रहकर भाजपा को कुछ सीटें मिल जाती थीं, लेकिन अकालियों के अगल होने पर भाजपा ने चुनावी जीत के लिए कुछ नए रास्ते तलाशे.उसने कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, उनकी पत्नी और कांग्रेस सांसद परनीत कौर, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़, कांग्रेस नेता संतोख चौधरी की पत्नी करमजीत कौर, कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू, कांग्रेस नेता तजिंदर सिंह बिट्टू और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल आदि को भाजपा में शामिल कराया.उसी तरह से आप सांसद सुशील कुमार रिंकू भी भाजपा में शामिल हो चुके हैं.भाजपा ने इनमें से कई लोगों को टिकट भी मिला दिया है. इस हिंदुओं की पार्टी होने की छवि से पीछा छुड़ाने की भाजपा की कोशिश माना जा रहा है.

पंजाब में कांग्रेस का संकट

वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से शुरू हुआ कांग्रेस का संकट रुकने का नाम नहीं ले रहा है.चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो गया. जहां आम आदमी पार्टी ने 117 में से 92 सीटें जीत लीं, वहीं कांग्रेस को केवल 18 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. अब लोकसभा चुनाव में उसे अपना 2019 वाला प्रदर्शन दोहराने का दबाव है. वह भी उस स्थित में जब उसके सभी बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदेश अमरिंदर सिंह राजा वडिंग पर पार्टी का प्रदर्शन सुधारने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. 

आप की गारंटियां बनीं सवाल
कांग्रेस जैसा ही संकट आम आदमी पार्टी के सामने भी है. उसकी एकमात्र सीटिंग सांसद पार्टी से लोकसभा चुनाव का टिकट लेने के बाद भाजपा में शामिल हो चुका है. राघव चड्ढा, डॉ. संदीप पाठक, हरभजन सिंह समेत सात लोगों को आप ने पंजाब से राज्य सभा में  भेजा था. इनमें से पाठक छोड़कर बाकी के सांसदों का कोई अता-पता नहीं है. वह भी ऐसे समय में जब पार्टी भारी संकट से गुजर रही है. पार्टी में नेताओं की कमी ऐसी है कि राज्य के सात मंत्रियों को ही चुनाव मैदान में उतार दिया गया है.इस बार के चुनाव में मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की प्रतिष्ठा भी दांव पर है और उन पर जिम्मेदारी भी बढ़ी है.अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद उन्हें दूसरे राज्यों में भी चुनाव प्रचार करने के लिए जाना पड़ रहा है. 

जिन गारंटियों का वादा कर आम आदमी पार्टी सत्ता में आई थी, उनमें से अधिकांश अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं. किसानों को मुआवजा नहीं मिल पा रहा है. आप ने महिलाओं को एक हजार रुपये हर महीने देने और राज्य कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन का वादा किया था, लेकिन मान सरकार उसे अबतक पूरा कर पाने में नाकाम रही है. इसके साथ ही राज्य पर बढ़ता कर्ज भी एक समस्या है. हालांकि फ्री बिजली पाने वाले लोग आप के समर्थन में नजर आ रहे हैं. 

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए दिल्ली में समझौता किया है, लेकिन पंजाब में दोनों में कोई समझौता नहीं है. इस गुत्थी को जनता में समझा पाना इन दोनों दलों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.

अकाली दल की चुनौती

वहीं पंजाब में भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टी के संस्थापक प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद पहली बार चुनाव मैदान में है. ऐसे में पार्टी के नए नेतृत्व सुखबीर सिंह बादल के सामने पार्टी को खड़ा करना बड़ी चुनौती है. वह भी ऐसे समय में जब पार्टी विधानसभा चुनाव में मात्र तीन सीट पर सिमट गई है. अकाली दल का समर्थन गांवों में माना जाता है. अकाली दल ने तीन कृषि कानून के नाम पर भाजपा से समझौता तोड़ लिया था. ऐसे में उसे किसानों का उसे समर्थन मिल सकता है. 

पंजाब में कहा खड़ी है बसपा
अकाली दल ने पिछला लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था. लेकिन यह गठबंधन कोई कमाल नहीं दिखा पाया था. इसके बाद बसपा ने यह चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है. बसपा ने अबतक नौ उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. पंजाब बसपा के संस्थापक कांशीराम की जन्मभूमि है.पंजाब में दलित आबादी करीब 30 फीसदी है. इसके बाद भी बसपा कभी अपेक्षित सफलता पंजाब में नहीं हासिल कर पाई है. यहां के दलित मुख्य तौर पर अकाली दल और कांग्रेस के बीच बंट हुए हैं. ऐसे में सिकुड़ते हुए जनाधार के बीच अपना आधार बढ़ाना और प्रदर्शन सुधारना बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. 

इस बार के चुनाव में किसानों की समस्याएं एक बड़ा मुद्दा है. राज्य के किसान भाजपा को छोड़ बाकी के दलों के समर्थन में हैं. लेकिन एमएसपी का वादा पूरा न करने की वजह से वे आम आदमी पार्टी से भी थोड़े नाराज हैं. ऐसे में कांग्रेस और अकाली दल किसानों को अपनी ओर करने में लगे हुए हैं.वहीं राज्य के शहरी इलाकों में भाजपा राम मंदिर को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है. वहीं दलबदल कराकर वह सिखों के साथ-साथ दलितों और जाट वोटों में भी सेंध लगाने की तैयारी में है. 

पंजाब के चारों प्रमुख राजनीतिक दलों की रणनीति कितनी कामयाब होगी, यह तो चार जून को ही पता चल पाएगा कि किसकी रणनीति कितनी सफल होती है.

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