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This Article is From Feb 19, 2018

यूपी में राहुल गांधी के लिए अच्छे संकेत नहीं, लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कैसे बनेगा मोर्चा

एनसीपी नेता शरद पवार खुद को बड़ा नेता मानते हैं और टीएमसी की नेता ममता बनर्जी भी राहुल की अगुवाई में काम करने का मन नहीं बना पा रही हैं. यही वजह है कि अभी कुछ दिन पहले ही विपक्षी दलों की बैठक बुलाने के लिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को मोर्चा संभालना पड़ा. 

यूपी में राहुल गांधी के लिए अच्छे संकेत नहीं, लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कैसे बनेगा मोर्चा
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के लिए घोषित किए प्रत्याशी
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में अलग-अलग प्रत्याशी
राजस्थान उपचुनाव में मिली जीत के बाद था अच्छा मौका
क्या 2019 के लोकसभा में एनडीए के खिलाफ बन पाएगा बड़ा मोर्चा
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019  में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना करने के लिए विपक्ष से भले ही एक मोर्चा बनाने की आवाज सामने आ रही हो लेकिन यह इतना आसान नहीं लग रहा है. दरअसल इस मोर्चे के लिए सबको साथ लाने की कोशिश लगी कांग्रेस के सामने बड़ी दिक्कत पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ही हैं तो दूसरी ओर एनसीपी नेता शरद पवार खुद को बड़ा नेता मानते हैं और टीएमसी की नेता ममता बनर्जी भी राहुल की अगुवाई में काम करने का मन नहीं बना पा रही हैं. यही वजह है कि अभी कुछ दिन पहले ही विपक्षी दलों की बैठक बुलाने के लिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को मोर्चा संभालना पड़ा. 

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लेकिन बात करें समाजवादी पार्टी की तो विधानसभा चुनाव से पहले बड़े जोरशोर से शुरू हुई राहुल गांधी और अखिलेश यादव की दोस्ती भी ज्यादा दिन न चल पाई. उत्तर प्रदेश में मिली करारी का ठीकरा सपा नेता कांग्रेस पर ही फोड़ने लगे थे. हालांकि राहुल और अखिलेश लगातार इस दोस्ती तोड़ने की बात से इनकार करते रहे.  लेकिन अब जब उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं तो वहां भी दोनों पार्टियों  ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं.  सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गोरखपुर सीट के उपचुनाव के लिये प्रवीण निषाद और फूलपुर सीट से नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल की उम्मीदवारी पर भी मुहर लगा दी. तो दूसरी ओर कांग्रेस ने भी डॉक्टर सुरहिता करीम को गोरखपुर और मनीष मिश्रा को फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए प्रत्याशी बनाया है. 

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तो दूसरी ओर मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ कोई भी समझौता इनकार करने से इनकार दिया है. ऐसे में उसका किसी ऐसे मोर्चे में साथ जाना नामुमकिन है जिसमें समाजवादी पार्टी शामिल हो. कुल मिलाकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर बिलकुल वैसी ही चुनौती है जो 2004 में पूर्व कांग्रेस सोनिया गांधी के सामने थी लेकिन उन्होंने यूपीए को बनाने में कामयाबी पाई थी. राजस्थान में में लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीतकर कांग्रेस ने बीजेपी को तगड़ा संदेश दिया है. उत्तर प्रदेश में भी उसके पास मौका था अगर वह सपा और बीएसपी को मनाने में कामयाब हो जाती तो उसके लिए पूरे देश में संदेश देने का पूरा मौका था. फिलहाल इन दो सीटों त्रिकोणीय लड़ाई भी दिलचस्प हो सकती है. 

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