Lok Sabha Election Result 2024: पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) इतिहास रचने के रास्ते पर अग्रसर हैं. वे लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री के तौर पर देश की कमान संभालने जा रहे हैं. संविधान भवन के सेंट्रल हॉल में उन्हें एनडीए (NDA) का नेता चुन लिया गया. उनके शपथ ग्रहण का समय भी तय हो गया है. वे रविवार को शाम सवा सात बजे प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करेंगे. हालांकि मोदी का इस मुकाम को हासिल करना आसान नहीं था. पूरा विपक्ष एकजुट होकर नरेंद्र मोदी की घेराबंदी में जुटा था, लेकिन चुनावी रण में पीएम नरेंद्र मोदी के पांच प्रणों ने पूरा नजारा बदल दिया.
बचपन में चाय बेचने वाला एक शख्स अगर किसी देश का तीसरी बार लगातार प्रधानमंत्री बनता है तो यह उस संविधान की वजह से है जिससे दुनिया का यह सबसे बड़ा लोकतंत्र चलता है. लेकिन भारत का यह संविधान ही इस चुनाव में विमर्श का एक मुद्दा बना रहा.
दरअसल संविधान का सवाल चुनाव में विपक्ष की तरफ से एक चुनावी मुद्दा बना दिया गया था और उसकी असली वजह थी, अबकी बार चार सौ पार वाला नारा. लोकतंत्र में हर पार्टी अपने लिए ज्यादा से ज्यादा सीटों की चाहत रखती है, लेकिन बीजेपी (BJP) के ही कुछ नेताओं के बयान से विपक्ष को बीजेपी पर हमला बोलने के लिए विपक्ष को मौका मिल गया. उन नेताओं ने यह कहना शुरू किया कि 400 से ज्यादा सीटें इसलिए चाहिए कि संविधान को बदलना है.
विपक्ष ने थमा दिया संविधान का मुद्दा
भारत का संविधान हमारे लोकतंत्र की सबसे पवित्र किताब है. आजादी के दीवानों और नए राष्ट्र निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले योद्धाओं ने इसे बहुत लंबी बहस और सोच विचार के बाद तैयार किया था. इस संविधान के निर्माण पर राष्ट्रीय आंदोलन का साया था, महात्मा गांधी का आशीर्वाद था और डॉ भीमराव आंबेडकर का विवेक लगा था. इसलिए जैसे ही संविधान बदलने की हल्की सी आहट सुनाई दी विपक्ष ने पीएम मोदी की घेराबंदी तेज कर दी.
विपक्ष के इन हमलों को पीएम मोदी ने संविधान के प्रति अपने रुख को साफ करने का जरिया बना दिया. सबसे पहले उन्होंने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि संविधान को कोई भी बदल नहीं सकता, कोई यानी कोई भी नहीं. पहले चरण के चुनाव के समय दिए गए बयान के बाद ही पीएम मोदी संविधान को लेकर विपक्ष पर लगातार आक्रामक होते गए और उन्होंने संविधान को ही एक चुनावी मुद्दा बना दिया.
संविधान हर हिंदुस्तानी को उसकी गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है. उसी संविधान से आरक्षण भी निकला है जिसने पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज को वक्त के साथ बेहतर जिंदगी का जरिया दिया. कांग्रेस (Congress) इस बार आरक्षण को लेकर बेहद आक्रामक रही जातिगत गिनती के साथ वह आरक्षण की संवैधानिक सीमा को खत्म करने की बात कर रहे थे.
आरक्षण और संपत्ति के बंटवारे के मुद्दों पर घमासान
आरक्षण का मुद्दा इस देश में हमेशा से अहम रहा है. संविधान निर्माण के साथ ही अनुसूचित जाति के लिए 15 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई थी. ओबीसी (OBC) के लिए आरक्षण की मांग लंबे समय से हो रही थी, जिसे प्रधानमंत्री रहते हुए वीपी सिंह ने 1990 में लागू किया, जिसके तहत ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान मिला. सन 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीब लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की. खास बात यह रही कि जहां वीपी सिंह को पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण देने का कोई फायदा नहीं हुआ वहीं नरेंद्र मोदी को 2019 के चुनाव में इसका भरपूर लाभ मिला. पीएम मोदी ने इस चुनाव में भी आरक्षण को यूं ही आगे चलाते रहने की गारंटी दी, तो साथ ही अपने मतदाताओं को यह भी बताते रहे कि कांग्रेस आएगी तो आरक्षण में बंदरबांट कर देगी.
यह चुनावी घमासान आरक्षण के हक और हकदारों तक ही नहीं रुका बल्कि इससे आगे संपत्ति का सवाल भी आ गया. दरअसल चुनाव के दौरान इस विवाद को हवा दे दी कांग्रेस के ओवरसीज प्रमुख रहे सैम पित्रोदा ने. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेम पित्रोदा के बयान को बहुत बड़ा चुनावी विमर्श बना दिया. बात फिर संपत्ति तक ही नहीं रुकी बल्कि महिलाओं के मंगल सूत्र तक जा पहुंची. लेकिन इन सारे मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाकर और अपने भाषणों के फोकस में रखकर पीएम मोदी जनता का दिल जीतने में कामयाब रहे.
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष पर जोरदार हमला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का केंद्र बिंदु विकास रहा है. अपनी योजनाओं के जरिए मोदी सरकार ने हर तबके को विकास की धारा में शामिल किया, हर तबके तक विकास योजनाओं का लाभ पहुंचाया. इसके साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार पर सख्त तेवर अपनाए. अपनी रैलियों में वे जनता को लगातार यही संदेश देते रहे कि भ्रष्टाचार को लेकर वे जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलते हैं. इसके अलावा उन्होंने परिवारवाद पर भी जमकर निशाना साधा. इन मुद्दों के सहारे जो संदेश वे जनता को देना चाहते थे उसमें उन्हें कामयाबी मिली.
चुनाव के वक्त विपक्ष के दो-दो मुख्यमंत्रियों का रास्ता जनता के बीच न जाकर जेल तक पहुंच गया. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दे दिया था, जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पद नहीं छोड़ा, साथ ही प्रचार के लिए उनको कुछ दिनों की जमानत भी मिल गई. लेकिन विपक्ष के ये मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए. इनका आरोप है कि इन्हें फंसाया गया और पीएम मोदी ने इसको एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया कि वे किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचारियों को छोड़ेंगे नहीं.
प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार को एक चुनावी मुद्दा बना दिया. यह कुछ उसी तरह से है जैसे वीपी सिंह के लगाए आरोपों से कांग्रेस को नुकसान हुआ था, या फिर नरसिम्हा राव पर लगे आरोपों से कांग्रेस को नुकसान हुआ था, या फिर मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में तमाम घोटालों के आरोपों ने 2014 में कांग्रेस को 44 पर पहुंचा दिया था. कांग्रेस भी जानती थी कि भ्रष्टाचार का आरोप चिपका तो फिर छुड़ाना मुश्किल हो जाएगी, इसलिए वह पीएम मोदी पर सवाल उठाने लगी. लेकिन चुनाव के नतीजों का निष्कर्ष यही है कि लोगों ने पीएम मोदी पर ही भरोसा किया है. इसी तरह मतदाताओं ने पीएम मोदी के इस आरोप पर भी पूरा यकीन किया कि विपक्ष परिवारवाद से ग्रस्त है. विपक्षी दल बीजेपी पर भी परिवारवादी होने का आरोप लगाते हैं क्योंकि बहुत सारे उम्मीदवारों की पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है, लेकिन चुनाव परिणामों को देखकर लगता है कि लोगों ने पीएम मोदी की दी हुई परिवारवाद की परिभाषा को सही माना.
वंशवाद के मुद्दे पर विपक्ष पर निशाना
प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक जिस पार्टी में पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार नेतृत्व करता है वही वंशवाद है. उस हिसाब से कांग्रेस में राहुल गांधी चौथी पीढ़ी के है समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव दूसरी पीढ़ी के हैं. राष्ट्रीय जनता दल में तेजस्वी यादव दूसरी पीढ़ी के हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा में हेमंत सोरेन दूसरी पीढ़ी के हैं, टीएमसी में अभिषेक बनर्जी दूसरी पीढ़ी के हैं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना में उद्धव ठाकरे दूसरी पीढ़ी के हैं जबकि तीसरी पीढ़ी भी तैयार हो रही है. डीएमके (DMK) में स्टालिन दूसरी पीढ़ी के हैं जबकि तीसरी पीढ़ी भी तैयार हो चुकी है.
विपक्ष के पीएम मोदी पर बगैर परिवार के होने के आरोप ने मोदी के तेवर को और तीखा बना दिया. बस मौका पाकर पीएम मोदी ने चुनावी चौका जड़ दिया और यह नारा देश भर में एक नए नरैटिव के रूप में फैला दिया कि पूरा देश ही मेरा परिवार है, जिसके कारण 'मोदी का परिवार' वाली बात घर-घर तक फैल गई.
भारतीय कच्छतिवू द्वीप श्रीलंका को देने का मुद्दा
इन सबके अलावा पीएम मोदी ने देशकाल परिस्थिति के हिसाब से कई मुद्दों को बड़ा बना दिया. इंदिरा गाँधी के जमाने में हिंद महासागर में जिस कच्छतिवू द्वीप को श्रीलंका को दे दिया गया था उसको भी पीएम मोदी ने चुनाव में एक सवाल बनाया कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय भूखंड से कोई समझौता हो सकता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में ऐसे सवालों को उठाया जो देखने में पहले साधारण से लगे लेकिन वोटों पर उनकी असाधारण छाप देखने को मिली.
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