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This Article is From Oct 07, 2015

स्वायत्त संस्था का राजनीतिकरण न करें साहित्यकार : साहित्य अकादमी

स्वायत्त संस्था का राजनीतिकरण न करें साहित्यकार : साहित्य अकादमी
साहित्यकार अशोक वाजपेयी
नई दिल्ली: प्रख्यात साहित्यकार नयनतारा सहगल एवं अशोक वाजपेयी के साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के निर्णय को बुधवार को विपक्षी दलों द्वारा समर्थन मिला तथा कांग्रेस ने कहा कि इससे देश में ‘असहिष्णुता’ के प्रति क्रोध झलकता है।

बहरहाल, अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल और हिन्दी कवि वाजपेयी के कदम पर सवाल उठाते हुए कहा कि लेखकों को विरोध प्रदर्शन के लिए अलग रास्ता अपनाना चाहिए तथा स्वायत्त साहित्यिक संस्था का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपात काल के दौरान भी अकादमी ने कोई रुख नहीं अपनाया था।

कांग्रेस ने किया लेखकों का समर्थन
विपक्ष ने ‘बहुलतावादी’ भारत के विचार के समर्थन में सामने आने के लिए दोनों लेखकों की सराहना की।

इस कदम का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि छुटभैया राजनीतिक नेता देश की विविधता को नकार कर और उसे धूमिल कर भारत की अंतरात्मा को चोट पहुंचा रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री की लगातार चुप्पी के चलते ये तथाकथित छुटभैये राजनीतिक नेता अपने शब्दों से, कामों से, बयानों से, परोक्ष आक्षेपों और उकसावों से भारत की विविधता को नकार कर उसे धूमिल कर रहे हैं और भारत की अंतरात्मा पर हमला कर रहे हैं।’’ भाकपा नेता डी राजा ने भी नयनतारा के कदम का समर्थन किया और कहा कि उनका निर्णय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं संघ परिवार के संगठनों द्वारा दिखाई जा रही ‘अहिष्णुता’ के खिलाफ देश के गुस्से को दिखाता है।

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी का बयान
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, ‘‘भारत की परिकल्पना के मूल आधार पर हमला हो रहा है। नयनतारा को सलाम करने और उनकी तारीफ करने की जरूरत है और भारत की इस परिकल्पना के प्रति उनके खड़े रहने के लिए उन्हें तिरंगे की सलामी दी जानी चाहिए।’’

अकादमी के अध्यक्ष का बयान
अकादमी के अध्यक्ष एवं स्वयं एक विख्यात कवि, लेखक एवं आलोचक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने लेखकों से अनुरोध किया कि वे विरोध का दूसरा तरीका अपनाये और साहित्यिक संस्था को राजनीति में न घसीटें। उन्होंने कहा, ‘‘अकादमी कोई सरकारी संगठन नहीं बल्कि एक स्वायत्त संस्था है। यह पुस्कार किसी चयनित कृति के लिए लेखक को दिया जाता है तथा पुरस्कार को लौटाने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि यह पद्म पुरस्कारों की तरह नहीं है।’’

तिवारी ने कहा कि अकादमी पुरस्कृत कृतियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करवाती है तथा पुरस्कृत लेखक को बहुत सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिलता है। यदि लेखक पुरस्कार लौटा भी देता है तो उसे जो मान-सम्मान मिला उसका क्या होगा।

विरोध का दूसरा तरीका अपनाएं लेखक
उन्होंने कहा, ‘‘लेखकों को विरोध का दूसरा तरीका अपनाना चाहिए था। वे साहित्य अकादमी पर दोष कैसे लगा सकते है जो 60 साल से अस्तित्व में हैं। आपातकाल के समय में भी अकादमी ने कोई रुख नहीं अपनाया था।’’ उन्होंने जोर देकर कहा कि साहित्यिक दायरों की परंपराओं के अनुसार अकादमी विभिन्न भाषाओं की कृतियों के अनुवाद, पुरस्कार प्रदान करने तथा साहित्यिक विषयों पर संगोष्ठी एवं कार्यशालाएं आयोजित करवाने में संलग्न रही है।

तिवारी ने कहा, ‘यदि साहित्य अकादमी भी इसमें कूद जाए और अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी का विरोध करना शुरू कर दे तो क्या वह अपने मूल कार्य से नहीं भटक जाएगी।’

उन्होंने कहा, ‘मैं समझ सकता हूं कि लेखक साहित्य अकादमी के विरुद्ध नहीं बल्कि सरकार के खिलाफ हैं। अब यदि यह एजेंडा है तो क्या साहित्य अकादमी को इस एजेंडा में शामिल होना चाहिए और अपना साहित्यक कार्य पीछे छोड़ देना चाहिए।’

हिंदी कवि अशोक वाजपेयी ने भी अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया है। इसके पीछे उन्होंने कई कारण बताए जिनमें से एक हाल के दिनों में लेखकों एवं तर्कशास्त्रियों पर होने वाले हमले एवं धर्म के नाम पर हिंसा फैलाना भी है।

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