मंदिर आंदोलन से जुड़े वे लोग जिन्हें आखिरी सांस तक था पूरा विश्वास - मंदिर वहीं बनेगा

अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर भव्य तैयारियां चल रही हैं. 5 अगस्त यानी बुधवार को पीएम मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और सीएम योगी आदित्यनाथ इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर हिस्सा लेंगे.

मंदिर आंदोलन से जुड़े वे लोग जिन्हें आखिरी सांस तक था पूरा विश्वास - मंदिर वहीं बनेगा

गोरखधाम पीठ के महंत अवैद्यनाथ अब इस दुनिया में नही हैं (फाइल फोटो)

खास बातें

  • कई सालों तक चला मंदिर आंदोलन
  • BJP को मंदिर आंदोलन से हुआ था फायदा
  • कई प्रमुख लोग अब इस दुनिया में नही हैं
नई दिल्ली :

अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर भव्य तैयारियां चल रही हैं. 5 अगस्त यानी बुधवार को पीएम मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और सीएम योगी आदित्यनाथ इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर हिस्सा लेंगे. अयोध्या में इस कार्यक्रम को लेकर भव्य तैयारियां हो रही हैं. लोगों का कहना है कि सदियों बाद अयोध्या को इस तरह सजाया गया है. लंबे विवाद और सालों तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद मंदिर के पक्षकारों को आज यह दिन देखने को मिल रहा है. लेकिन मंदिर आंदोलन के कई प्रमुख नेता जिन्होंने इस दिन को देखने के लिए पूरा जीवन खपा दिया वे आज इस दुनिया में नही हैं. इनमें प्रमुख अशोक सिंघल, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,  श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे रामचंद्र परमहंस और गोरखनाथ मन्दिर के भूतपूर्व पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ हैं. इन सबने मंदिर आंदोलन को लेकर एक लंबी लड़ाई लड़ी है और साथ में कई आरोप भी झेले हैं.  

बात करें विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल की तो बीएचयू से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर चुके इस नेता ने पूरा जीवन अयोध्या में राम मंदिर के लिए खपा दिया. आरएएस के प्रचारक के तौर पर काम कर चुके अशोक सिंघल को ही मंदिर आंदोलन का प्रमुख शिल्पकार माना जाता है. साल 1984 में दिल्ली के विज्ञान में उनकी अगुवाई में धर्म संसद का आयोजन किया गया और उसी में मंदिर आंदोलन की नींव रखी गई. अशोक सिंघल की साधु-संतो के बीच अच्छी छवि थी और राम मंदिर आंदोलन के लिए उन्होंने कई बार धर्म संसद का आयोजन किया था.

वहीं श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे रामचंद्र परमहंस का योगदान भी इस आंदोलन के लिए कुछ कम नहीं था. रामचंद्र परमहंस के बारे में कहा जाता है कि 22 दिसंबर 1949 को उन्होंने ही बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखी थीं. उसके बाद उन्होंने लंबी कानून लड़ाई लड़ी. लेकिन आपको जानकार हैरत होगी कि मंदिर के लिए पक्षकार जहां अदालत में रामचंद्र परमहंस थे तो मुस्लिम पक्ष की ओर से उनके प्रिय मित्र हाशिम अंसारी थे. लोगों का कहना है कि कई बार दोनों लोगों के पास सुनवाई के दिन अदालत जाने के लिए पैसे नहीं होते थे तो एक ही रिक्शे में बैठकर कोर्ट चले जाते थे. एक ओर जहां ये विवाद दो समुदायों के बीच खाई चौड़ी कर चुका था तो दूसरी एक ही रिक्शे में बैठे इन दोनों की तस्वीर देख लोग हैरत में पड़ जाते थे.  96 साल की उम्र में हाशिम अंसारी का साल 2016 में निधन हो गया तो उनसे पहले रामचंद्र परमहंस साल 2003 में 91 साल की उम्र में दुनिया छोड़ दी. 

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं. लेकिन उनका इस मुद्दे को लेकर नजरिया हमेशा अलग रहा है. वो 6 दिसंबर 1992 को हुई घटना का खुलकर विरोध करते रहे हैं. एनडीटीवी से बातचीत में एक बार उन्होंने कहा था कि उस दिन जो हुआ वह उसका प्लान नहीं था.  हालांकि उनके कई भाषणों को भी विवाद के नजरिए से देखा जाता है. लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में जब बीजेपी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा निकाली तो वाजपेयी पार्टी के साथ खड़े रहे. इतना गठबंधन की सरकार बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने साफ कहा था कि अभी उनकी पार्टी के पास बहुमत नहीं है राम मंदिर का मुद्दा इस बार उनके एजेंडे में नही हैं.

1986 में अयोध्या में विवादित स्थल का ताला खुलवाने और उसके पहले हुए घटनाक्रम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले महंत अवैद्यनाथ का हर काम मंदिर आंदोलन से जुड़ा होता था. वह एक ऐसे संत थे जो मंदिर आंदोलन के साथ-साथ हिन्दुओं मे व्याप्त जातिवाद पर भी कड़ा प्रहार करते थे. उन्होंने सामाजिक समरसता के लिए कई काम शुरू किए. साथ ही अयोध्या में राम मंदिर उनका लक्ष्य भी था. वो राम मंदिर आंदोलन के लिए पूरे देश में दौरा करते थे. मंहत अवैद्यनाथ, अशोक सिंघल और रामचंद्र परमहंस के बीच गहरी दोस्ती थी और उनके बातचीत के केंद्र में हमेशा राम मंदिर ही होता था. महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद उनकी जगह  गोरखधाम पीठ की जिम्मेदारी सीएम योगी आदित्यनाथ को दी गई थी अब वो यहां के प्रमुख महंत हैं. 

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