विज्ञापन
This Article is From Oct 10, 2014

कैलाश सत्यार्थी : बाल अधिकारों के लिए संघर्ष के अगुआ

कैलाश सत्यार्थी : बाल अधिकारों के लिए संघर्ष के अगुआ
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से बाल अधिकारों की रक्षा और उन्हें और मजबूती से लागू करवाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया, 80 हजार बाल श्रमिकों को मुक्त कराया और उन्हें जीवन में नई उम्मीद दी।

उनके दृढ़ निश्चय एवं उत्साह के कारण ही गैर-सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन का गठन हुआ। वह देश में बाल अधिकारों का सबसे प्रमुख समूह बना और 60 वर्षीय सत्यार्थी बच्चों के हितों को लेकर वैश्विक आवाज बनकर उभरे।

वह लगातार कहते रहे कि बच्चों की तस्करी एवं श्रम गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और जनसंख्या वृद्धि का कारण है।

दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओड़िशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मजदूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया।

उन्होंने बाल तस्करी एवं मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है।

सत्यार्थी कहते रहे कि वह बाल मजदूरी को लेकर चिंतित रहे और इससे उन्हें संगठित आंदोलन खड़ा करने में मदद मिली।

बाल मजदूरी कराने वाले फैक्टरियों में छापेमारी के उनके प्रारंभिक प्रयास का फैक्टरी मालिकों ने कड़ा विरोध किया और कई बार पुलिस ने भी उनका साथ नहीं दिया, लेकिन धीरे-धीरे उनके काम की महत्ता को पहचान मिली।

उन्होंने बच्चों के लिए आवश्यक शिक्षा को लेकर शिक्षा के अधिकार का आंदोलन चलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सत्यार्थी को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले जिसमें डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड (2009 अमेरिका), मेडल ऑफ द इटालियन सीनेट (2007 इटली), रॉबर्ट एफ केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (अमेरिका) और फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) आदि शामिल हैं। उन्होंने ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर मुहिम चलाई जो कई देशों में सक्रिय है। उन्हें रुगमार्क के गठन का श्रेय भी जाता है जिसे गुड वेब भी कहा जाता है। यह एक तरह का सामाजिक प्रमाण पत्र है जिसे दक्षिण एशिया में बाल मजदूर मुक्त कालीनों के निर्माण के लिए दिया जाता है।

सत्यार्थी को बाल अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पहले भी कई बार नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।

सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है और नोबल पुरस्कार पाने वाले सातवें भारतीय हैं। सबसे पहले मदर टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार दिया गया था जिनका जन्म अल्बानिया में हुआ था।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Previous Article
टिकट नहीं मिलने से नवाब मलिक नाराज, अजित पवार के घर पहुंचकर समझाने के बावजूद चुनाव लड़ने पर अड़े
कैलाश सत्यार्थी : बाल अधिकारों के लिए संघर्ष के अगुआ
उम्र 36 साल, आर्किटेक्ट, जानें कौन हैं सना मलिक जो अणुशक्ति नगर से बन सकती हैं NCP की उम्मीदवार
Next Article
उम्र 36 साल, आर्किटेक्ट, जानें कौन हैं सना मलिक जो अणुशक्ति नगर से बन सकती हैं NCP की उम्मीदवार
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com