केंद्रीय श्रम मंत्रालय (union labour ministry) ने सोमवार को लोकसभा में बताया था कि प्रवासी मजदूरों की मौत (migrant deaths data) पर सरकार के पास आंकड़ा नहीं है, ऐसे में मुआवजा देने का 'सवाल नहीं उठता है'. वहीं दूसरी तरफ देश भर में कई ऐसे मामले है जिनमें मजदूरों की मौत हुई और उनके परिजनों को आज भी सरकारी मदद का इंतजार है. कोरोना वायरस संक्रमण को कम करने के लिए सरकार की तरफ से लगाए गए लॉकडाउन के बाद लाखों की संख्या में मजदूर पैदल ही घर की तरफ निकल गए थे. रास्ते में ही कई मजदूरों की मौत हो गयी थी.
ऐसा ही एक मजदूर परिवार साइकिल से उत्तर प्रदेश से छत्तीसगढ़ जा रहा था. रास्ते में उनके के साथ एक दुर्घटना हो गयी. सड़क हादसे में मजदूर और उसकी पत्नी की मौत हो गयी थी. हादसे में उसके 2 बच्चे बच गए थे.मृतक कृष्णा साहू लखनऊ के जानकीपुरम इलाके में झोपड़पट्टी में अपनी पत्नी और तीन साल के बेटे और चार साल की बेटी के साथ रहता था. दोनों पति-पत्नी लखनऊ इसलिए आए थे कि किसी तरह मेहनत-मजदूरी कर अपना और अपने बच्चों का पालन-पोषण कर पाए. माता-पिता के मौत के बाद अब दोनों बच्चे अपने चाचा के साथ रहते हैं. बच्चों के चाचा रामकुमार अब दोनों का देखभाल करते हैं. लेकिन सरकार की तरफ से इन दोनों बच्चों को अबतक कोई मदद नहीं मिली है.
बातचीत में रामकुमार बताते हैं कि दोनों बच्चे अब उनके साथ अच्छे से रहते हैं शुरुआती दिनों में उन्हें अपनी मां की काफी याद आती थी. साथ ही उनका कहना है कि सरकार की तरफ से अभी तक कोई मदद बच्चों को नहीं मिला है. छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से घोषणा की गयी है लेकिन अब तक उन्हें इसका लाभ नहीं मिला है. साथ ही उन्हें भी रोजगार संकट का सामना करना पड़ा है.
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