
- PRADA के कोल्हापुरी चप्पलों के डिजाइन की नकल का मामला कोर्ट पहुंचा
- याचिका में लग्जरी इटेलियन ब्रांड के खिलाफ कार्रवाई और कारीगरों को मुआवजा देने की मांग
- कोल्हापुरी चप्पलों की को-ब्रांडिंग और रेवेन्यू साझेदारी की मांग की गई है
- PRADA की कोल्हापुरी चप्पलों की नकल कर बनाई चप्पल की कीमत सवा लाख
मशहूर इटेलियन लग्जरी फैशन ब्रांड ‘प्राडा' PRADA के कोल्हापुरी चप्पलों के डिजाइन की नकल का मामला अदालत जा पहुंचा है. इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें लग्जरी इटेलियन ब्रांड प्राडा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है और साथ ही ये भी मांग की गई है कि इटेलियन ब्रांड को कोल्हापुरी चप्पल बनाने वाले कारीगरों को मुआवजा चुकाना चाहिए. याचिका में कोर्ट की निगरानी में ब्रांड और कारीगर संगठनों के बीच सहयोग की मांग की गई है.
कोर्ट में PIL दाखिल की गई क्या मांग
इसमें कोल्हापुरी चप्पलों की को-ब्रांडिंग, क्षमता निर्माण, और रेवेन्यू साझेदारी जैसे कदम शामिल हैं ताकि कारीगरों को उनके पारंपरिक हुनर का उचित लाभ मिलने के साथ पहचान भी मिल सकें. PIL में सरकारी संस्थाओं और प्राधिकरणों को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे कोल्हापुरी चप्पल जैसे GI उत्पादों के निर्माताओं के लिए संगठन बनाएं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर GI उल्लंघन के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के लिए नीतियां तैयार करें.
1.25 लाख की PRADA की कोल्हापुरी चप्पल
सस्ती व टिकाऊ और आम लोगों की बरसों से पसंदीदा रही कोल्हापुरी चप्पल लग्जरी ब्रांड प्राडा की वजह से चर्चा में है हालांकि हाथ से बनाई जाने वाली चमड़े के इस चप्पल को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि दिग्गज फैशन डिजाइनर कंपनी प्राडा यह चप्पल सवा लाख रुपये में बेच रही है. बरसों से भारतीय शिल्प का प्रतीक रही कोल्हापुरी चप्पल की हूबहू नकल कर इटली की बड़ी कंपनी प्राडा ने इसे ‘स्प्रिंग/समर 2026' शो में प्रदर्शित किया,
आखिर किस बात पर विवाद
इसका श्रेय दिये जाने को लेकर लोगों के बीच बहस छिड़ गयी. कारीगर इस बात से बेहद व्यथित और निराश हूं कि जिस तरह से प्राडा ने भारतीय और बेहद पारंपरिक चीज को अपनाया और वो भी शिल्पकारों या उस संस्कृति को कोई बिना श्रेय दिये. हालांकि कई दिनों बाद जब भारत में इस बात को लेकर विवाद बढ़ गया तो प्राडा ने स्वीकार किया और कहा कि डिजाइन भारतीय हस्तनिर्मित चप्पल से ‘प्रेरित' है.
प्राडा ने क्या कुछ कहा
प्राडा ने कहा कि ‘मेन्स 2026 फैशन शो' में जो सैंडल प्रदर्शित की गयी वे अब भी डिजाइन स्टेज में हैं और रैंप पर मॉडलों द्वारा पहनी गयी, किसी भी चप्पल के व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है. प्राडा के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के ग्रुप हेड लोरेंजो बर्टेली ने ‘महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर' के एक पत्र के जवाब में कहा, “हम जिम्मेदार डिजाइन तौर तरीकों, सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और स्थानीय भारतीय कारीगर समुदायों के साथ सार्थक आदान-प्रदान के लिए बातचीत शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जैसा कि हमने अतीत में अन्य उत्पादों में किया है ताकि उनके शिल्प की सही पहचान सुनिश्चित हो सके.”
क्यों खास है कोल्हापुरी की चप्पलें
कोल्हापुरी चप्पलें आमतौर पर महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर, सांगली, सतारा और सोलापुर के आसपास के जिलों में हस्तनिर्मित की जाती हैं, जहां से इन्हें यह नाम भी मिला है. कोल्हापुरी चप्पलों का निर्माण 12वीं या 13वीं शताब्दी से चला आ रहा है. मूल रूप से इस क्षेत्र के राजघरानों द्वारा संरक्षित कोल्हापुरी चप्पल स्थानीय मोची समुदाय द्वारा वनस्पति-टैन्ड चमड़े का उपयोग करके तैयार की जाती थीं और पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती थीं. इसमें किसी कील या सिंथेटिक घटकों का उपयोग नहीं किया जाता है.
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