- केरल के कासरगोड में मुस्लिम लीग की मजबूती बरकरार, पर BJP यहां निकाय चुनावों में लगातार अपना दबदबा बढ़ा रही है.
- त्रिशूर लोकसभा सीट जीतने और तिरुवनंतपुरम निकाय चुनाव में सफलता से BJP को केरल में मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली है.
- 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले क्या ये संकेत हैं कि केरल की राजनीति अब त्रिकोणीय मुकाबले की ओर बढ़ रही है?
केरल के निकाय चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बीजेपी के लिए नए दरवाजे खोल रही है. पहले पार्टी ने राजधानी तिरुवनंतपुरम में 15 सीटों पर जीत हासिल की, कोझिकोड में सीटें लगभग दोगुनी की, कोल्लम में छह सीटें हासिल की और फिर कासरगोड में भी अपने दूसरे स्थान को बरकरार रखा. कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने यहां के स्थानीय निकाय चुनाव में 39 में से 24 सीटें हासिल कीं तो लेफ्ट पार्टी ने दो सीटें जीतीं जो कि पिछली बार के मुकाबले दोगुना है. वहीं एनडीए ने 12 सीटों पर कब्जा किया. बता दें कि पिछले चुनाव में एनडीए के पास 14 सीटें थीं. कासरगोड निकाय में यूडीएफ की 24 में से 23 सीटें इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को मिली हैं. दरअसल, यहां बीते कई वर्षों से यूडीएफ और एनडीए के बीच कड़ी टक्कर रही है.

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कासरगोड में मुस्लिम लीग का वर्चस्व
पिछले कई दशकों से कासरगोड में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने अपना वर्चस्व बनाया हुआ है. केरल के बाकी हिस्सों के उलट कासरगोड में वामदलों की मौजूदगी लगभग न के बराबर है. हालांकि पिछली बार जीते एक सीट के मुकाबले उन्हें इस बार दो सीटें जरूर मिली हैं. लगभग 38 फीसद मुस्लिम आबादी वाले इस जिले में IUML 1965 से ही जीतती चली आई है. कासरगोड में पहले 38 वार्ड थे जिनकी संख्या अब 39 हो गई है. हालांकि पिछले तीन चुनावों में यहां के दक्षिण क्षेत्र में बीजेपी ने अपनी मजबूत पकड़ बनाई है और कांग्रेस-मुस्लिम लीग के लिए एक चुनौती के रूप में उभरी है पर अब तक जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है वहां इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ही जीतती आ रही है. यही कारण है कि कांग्रेस यहां अपनी सहयोगी मुस्लिम लीग को उतारती रही है. जबकि निकाय की जिन सीटों पर मुसलमानों की आबादी कम है वहां अब बीजेपी को जीत हासिल हो रही है. चुनाव से पहले वामदल के कासरगोड के चुनाव प्रभारी मोहम्मद हनीफा ने आरोप लगाया था कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और बीजेपी दोनों चुनावी फायदे के लिए लोगों का ध्रुवीकरण कर रही है. साथ ही उन्होंने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग पर गंभीर आरोप लगाया था कि जहां-जहां मुस्लिम लीग को हार का खतरा है वहां फर्जी वोटर जोड़े गए हैं.
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कासरगोड का बदलता समीकरण
निकाय चुनाव में कासरगोड में प्रभुत्व इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का ही रहा है जो 70 के दशक से अब तक यूडीएफ का एक स्थायी और अहम सहयोगी बना हुआ है. हालांकि यहां की राजनीति में बीजेपी के आने से पहले तक यहां मुकाबला साफ तौर पर यूडीएफ (मुस्लिम लीग + कांग्रेस) और वामदल के बीच रहा है. विधानसभा चुनावों की बात करें तो यहां की उदुमा, कान्हांगड़, होसदुर्ग सीटों पर CPM और CPI ने लंबे समय तक जीत दर्ज किया. इन इलाकों में भूमि सुधार आंदोलन, ट्रेड यूनियन और किसान संगठन मजबूत रहे. यहीं से कासरगोड की पहचान लेफ्ट प्रभाव वाले जिले के रूप में बनी. यहां के किसान और खेतीहर मजदूरों, बीड़ी मजदूर, दलित और आदिवासी आबादी में और ग्रामीण इलाकों में CPM ने अपना दबदबा बना कर रखा. यह स्थिति 80-90 के दशक तक बनी रही. तब बीजेपी ने धीरे धीरे शहरी इलाकों पर अपनी पकड़ मजबूत बनानी शुरू की.

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जब बीजेपी ने पकड़ मजबूत बनानी शुरू की...
2015 के निकाय चुनाव में बीजेपी ने कासरगोड के निकाय चुनावों में 13 सीटें जीत कर सबको चौंका दिया. 2020 में एक नई सीट जीत कर बीजेपी ने इस संख्या को 14 पर पहुंचाया. हालांकि 2025 में दो सीटें घट कर बीजेपी की संख्या 12 रही पर दक्षिणपंथी पार्टी की कासरगोड में लगातार बनी हुई पैठ और अब राजधानी तिरुवनंतपुरम में मिली जीत केरल की राजनीति में एक बड़े बदलाव के संकेत दे रहा है. अब बीजेपी राज्य में दूसरी बड़ी पार्टी बनने की सीधी चुनौती दे रही है. यही कारण है कि बीते वर्ष बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में कासरगोड लोकसभा क्षेत्र में एक अनोखा नया रिकॉर्ड दर्ज किया. तब बीजेपी ने यहां ऐतिहासिक दो लाख वोटों के आंकड़े को पार किया था. उसके प्रत्याशी एमएल अश्विनी को 2 लाख 19 हजार 558 वोट मिले थे.
केरल में बीजेपी क्या कर रही है?
केरल में जहां त्रिशूर और तिरुवनंतपुरम जैसे इलाकों को राजनीतिक रूप से निर्णायक माना जाता है. त्रिशूर में बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर ली है और तिरुवनंतपुरम के निकाय चुनाव में उसने इस बार बाजी मार ली है. यह बीजेपी की लंबी योजनाबद्ध प्रक्रिया का नतीजा है कि जहां पहले इस पार्टी को केवल प्रतीकात्मक वोट ही मिला करते थे वो अब कई इलाकों में अपने वोट शेयर से निर्णायक स्थिति में पहुंच रही है. इसका मतलब ये भी है कि मतदाता लेफ्ट पार्टी का विकल्प तलाशने लगे हैं. संभव है कि उन्हें वामदलों की वैचारिक राजनीति के सामने विकास और पहचान की नैरेटिव ज्यादा पसंद आ रही है. दरअसल, बीजपी केरल में जिन तीन अहम स्तरों पर काम में जुटी है उनमें से एक पहचान और विकास का नैरेटिव एक है. जबकि दूसरा, अपने संगठन के विस्तार में बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की मौजूदगी और तीसरा, स्थानीय परंपराओं और सांस्कृतिक मुद्दों को उठाने में भी पार्टी जोर शोर से जुटी है.
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विकल्प की तलाश
कासरगोड केरल का एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक जिला है. यहां मलयालम, कन्नड़, तुलु (द्रविड़ भाषा) और उर्दू बोलने वाली आबादी रहती है. लेफ्ट ने पहले यहां की विविधताओं को अपनी राजनीति से साधा, पर अब पहचान, आस्था और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे एक बड़ी आबादी के बीच अपना असर दिखा रहे हैं. बीजेपी खासतौर पर युवाओं, पहली बार वोट करने वालों और उन वर्गों पर फोकस किया है जो वामदल की परंपरागत राजनीति से खुद को कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं पर कांग्रेस या इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की ओर भी उनका रुझान नहीं है और विकल्प की तलाश कर रहे हैं.
बदल रही है केरल की राजनीति
बहुत संभव है कि कासरगोड में लंबे समय से चली आ रही बीजेपी की जीत, लोकसभा चुनाव में त्रिशूर सीट जीतना और अब राजधानी तिरुवनंतपुरम में बीजेपी का जीतना कुल मिलाकर पूरे केरल में अपना मनोवैज्ञानिक असर छोड़ेगा. 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले क्या ये संकेत हैं कि केरल की राजनीति अब त्रिकोणीय मुकाबले की ओर बढ़ रही है? क्या विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी कुछ कमाल कर सकेगी? फिलहाल ये दूर की कौड़ी ही लगती है. विधानसभा में कुल 140 सीटें हैं. जहां 2021 में वामदल ने 99 सीटें जीतकर अपना प्रभुत्व कायम किया था. यूडीएफ बाकी के 41 सीटों पर अपना परचम लहराया था. वहीं बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी. बेशक लेफ्ट के किले के दरवाजे पर बीजेपी ने निकाय चुनाव में दस्तक दी है. यहां तक कि लोकसभा चुनाव में भी सीट हासिल कर ली है. क्या बीजेपी विधानसभा चुनाव में भी मौजूदगी दर्ज कर सकेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा पर इतना तो तय है कि केरल की राजनीति अब पहले जैसी नहीं रही.
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